सतयुग : कैसे थे लोग? कैसी थी लाइफ स्टाइल? कलयुग कितना बाकी है ?


स्टोरी हाइलाइट्स

सतयुग ;आदियुग को शास्त्रों ने सत्ययुग कहा है। इस समय सत्त्वगुण सृष्टि में प्रधान था। मनुष्य में त्याग, तप, एकाग्रता, सत्य, कलयुग कितना बाकी है

सतयुग : कैसे थे लोग? कैसी थी लाइफ स्टाइल?,कलयुग कितना बाकी है-

आदियुग को शास्त्रों ने सत्ययुग कहा है। इस समय सत्त्वगुण सृष्टि में प्रधान था। मनुष्य में त्याग, तप, एकाग्रता, सत्य, अहिंसादि शम-दम स्वभाव से थे। शरीर सुपुष्ट थे। अत: शीतोष्ण आदि द्वन्द्वों से भय नहीं था। मन सम्पूर्ण सबल था। फलतः संकल्प को मूर्त होने के लिये कोई दूसरी चेष्टा या पदार्थ की आवश्यकता नहीं थी। संकल्प करते ही संकल्प मूर्त (अभीष्ट पदार्थ या स्थिति) बन जाता था। यह आश्चर्य की बात नहीं है। पाश्चात्त्य मनोवैज्ञानिक एवं संत भी मुक्तकण्ठ से स्वीकार करते हैं कि सन्देहहीन विचार (संकल्प) निश्चयपूर्ण होता है। 

कलयुग कितना बाकी है
एक पार्चात्त्य संत ने कहा है-"यदि तुम आल्प्स पर्वत से कहो- 'जा, भूमध्य सागर में डूब जा!'तो तुम्हारी आज्ञा का पालन होगा। केवल तुम्हें अपनी आज्ञा के पालन होने में स्वयं सन्दिग्ध नहीं होना चाहिये।" सत्ययुग में सन्देह का मन में लेश तक नहीं था, फलतः संकल्प पूर्णवीर्य था। शारीरिक भोगों में प्रवृत्ति नहीं थी। अन्तर्मुख वृत्ति थी। पृथ्वी पर जनसंख्या कम थी और वन अधिक थे। भूमि, तरु- सब अत्यन्त उर्वर थे। फलत: मनुष्य को आहारादि की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं थी। संग्रह करने की प्रवृत्ति न होने से स्थान का प्रश्न भी नहीं था। 

कलयुग कितना बाकी है
सत्ययुग में न नगर थे और न ग्राम। मनुष्य वृक्षों के नीचे या गिरि-गह्वरों में रहते थे। वे मूर्ख नहीं- परम ज्ञानी थे। नि:स्पृह होने के कारण उन्होंने समाज नहीं बनाया। क्योंकि मनुष्य में स्वार्थ, विषयेप्सा, क्रोधादि दुर्गुण नहीं थे। अत: उन्हें नियम बद्ध करने की आवश्यकता भी थी। उनके लिये वेदों के विधि-निषेध का विधान सोचना उपयोगी नहीं था। उस समय मनुष्य शान्त, वैरहीन, सर्वसुहृद् और समदर्शी थे। वे शम-दम सम्पन्न थे। तपस्या में उनकी स्वाभाविक रुचि थी। शुक्लवर्ण, जटाधारी, चतुर्भुज, वल्कल पहने, कृष्ण मृगचर्म ओढ़े, यज्ञोपवीत धारण किये, दण्ड एवं कमण्डलुधारी भगवान् श्रीनारायण उस युग के आराध्य थे। 

भगवान की यह तमोमयी मूर्ति ही उस समय के मानव-स्वभाव के अनुरूप थी। हंस, सुपर्ण, वैकुण्ठ, धर्म, योगेश्वर, अमल, ईश्वर, परमपुरुष, अव्यक्त और परमात्मा भगवान के ये नाम उस युग में कीर्तित होते थे। ये भगवन्नाम भी उस युग के मनुष्य की रुचि एवं मानसिक स्थिति को व्यक्त करते हैं; क्योंकि समाज नहीं बना था, अत: वर्ण एवं आश्रम के धर्म अनादि होकर भी व्यवहृत नहीं हो रहे थे। रक्षा, वाणिज्य एवं सेवा की आवश्यकता ही नहीं थी। वेदत्रयी अनादि होकर भी उसका तप एवं ज्ञानकाण्ड ही व्यवहार में आते थे। इसीलिये शास्त्रों में उस समय एक ही वर्ण, एक ही आश्रम, तथा एक ही वेदका वर्णन आता है।
Latest Hindi News के लिए जुड़े रहिये News Puran से.