स्टोरी हाइलाइट्स
उपनिषदों में कहा गया है कि आत्म साक्षात्कार करने वाला साधक अहंकार/घमंड से मुक्त हो जाता है|
अतुल विनोद
उपनिषदों में कहा गया है कि आत्म साक्षात्कार करने वाला साधक अहंकार/घमंड से मुक्त हो जाता है| ऐसा व्यक्ति जगत को ही ईश्वर मानने लगता है| जगत और ईश्वर का भेद खत्म हो जाता है| वह ब्रह्म ज्ञान यानी ब्रह्म के ज्ञान स्वरूप को जान लेता है| और जो व्यक्ति ब्रह्म को जान लेता है| वह आत्मा भाव में स्थित हो जाता है| यानी वह अजर अमर हो जाता है| वह शुद्ध हो जाता है| अद्वैत हो जाता है और आत्म तत्व हो जाता है| वह आनंद का प्रतिरूप बन जाता है, ऐसा व्यक्ति कहता है कि मैं पवित्र अंतरात्मा हूं और मैं ही सनातन विज्ञान का पुण्य आत्मतत्व हूँ, मैं शोध किया जाने वाला परात्पर आत्म हूँ| मैं ही ज्ञान और आनंद की एकमात्र मूर्ति हूँ|
आत्म साक्षात्कार कर लेने वाला व्यक्ति संसार के प्रपंच से, मानसिक रूप से मुक्त हो जाता है| विषय वासना उसे नहीं सताती| विष और अमृत को देखकर वह विष का त्याग कर देता है| जिसने परमात्मा का साक्षात्कार कर लिया, शरीर के नष्ट होने पर भी वह नष्ट नहीं होता| वह नित्य हो जाता है, निर्विकार और स्वयं प्रकाश हो जाता है|
जैसे दीपक की छोटी सी रोशनी भी अंधकार को खत्म कर देती है, उसी तरह थोड़ा सा ज्ञान भी अज्ञान के रुप में पसरे हुए अंधकार को खत्म कर देता है, नष्ट कर देता है| इसी अवस्था को सत्य, स्वरूप, आनंदघन कहते हैं| आवागमन का चक्र सिर्फ एक भाव है बाकी आत्मा तो आवागमन से सदैव मुक्त है|