अध्यात्म: सब कारणों का कारण अक्षर पुरुष है..

स्टोरी हाइलाइट्स
यह संपूर्ण जगत मेरे अव्यक्त रूप के द्वारा व्याप्त है। समस्त जीव मुझ में है, किन्तु मैं उनमें नहीं हूँ। इस नश्वर स्वप्निक संसार की रचना अक्षर..
अध्यात्म: सब कारणों का कारण अक्षर पुरुष है..
यह संपूर्ण जगत मेरे अव्यक्त रूप के द्वारा व्याप्त है। समस्त जीव मुझ में है, किन्तु मैं उनमें नहीं हूँ। इस नश्वर स्वप्निक संसार की रचना अक्षर पुरुष, जिसे शास्त्रों में गोकुलधाम वासी श्री कृष्ण ने कहा है कि गीता कहती है कि शरीर दो प्रकार के हैं। एक शरीर वह है जो व्यक्त है तथा दिखाई देता है। दूसरा शरीर वह है जो अव्यक्त हैं तथा दिखाई नहीं देता है, निराकार है।
यह नहीं दिखाई देने वाला अव्यक्त स्वरूप मन है और रचना मन के द्वारा ही होती है। इसीलिए कहा जाता है कि संसार की रचना निराकार ब्रह्म ने की है।
यह समस्त रचना स्वप्न है तथा अक्षर पुरुष के चित्त में नींद (मोहजल) के अंदर है परन्तु रचना करने वाला अक्षर पुरुष इसके अंदर नहीं है। क्योंकि स्वप्न की रचना करने वाला स्वयं अपने द्वारा रचित स्वप्न के अंदर नहीं आ सकता है।
"वास्तव में वे सब भूत मेरे में स्थित नहीं हैं। मेरी योग माया और प्रभाव को देखे कि इन भूतों को उत्पन्न करने वाला तथा पोषण करने वाली मेरी आत्मा भी इन भूतों में स्थित नहीं है।"
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गीता का यह श्लोक पिछले श्लोक को काटता है। पिछले श्लोक में यह कहा गया है कि यह सब रचना अक्षर पुरुष के अंदर है लेकिन यहां यह कहा गया है कि यह समस्त रचना अक्षर पुरुष के अंदर नहीं है।
अक्षर पुरुष अपनी इच्छा शक्ति (माया) के द्वारा यह रचना करते हैं। इस स्वप्न रूपी संसार में जो कुछ भी चल एवं विचल दिखाई देता है वह माया है। इसे दिखाई देने वाले प्रत्येक चल एवं विचल में ब्रह्म के रूप में सर्वत्र अक्षर पुरुष का मन व्याप्त है। इस प्रकार सर्वत्र माया और ब्रह्म का पसारा है।
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इस श्लोक में यह भी कहा गया है कि इन भूतों को उत्पन्न करने वाला तथा इनका पोषण करने वाला अक्षर पुरुष का मन (आत्मा) भी इसके अंदर नहीं है। यह मन रचना करता है, यहां सर्वत्र मन की सत्ता है परन्तु मन स्वयं नहीं है।
अक्षर पुरुष और उनका मन दोनों ही सत्य हैं प्रकाश स्वरूप हैं ये अपने द्वारा रचित असत्य माया के संसार के अंदर नहीं जा सकते हैं। माया अंधकार स्वरूप है, अक्षर और उनका मन प्रकाश स्वरूप है। प्रकाश एवं अंधकार का कोई मेल नहीं है।
यह दिखने वाला स्वाप्निक संसार सपने के सपने का सपना है। ये सारे भूत नारायण के चित्त में हैं, नारायण आदि-नारायण (ईश्वर) के चित्त में है तथा आदि-नारायण अक्षर पुरुष के चित्त में है। इस प्रकार यह सारा संसार वास्तव में अक्षर पुरुष के चित्त में नहीं है।
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अतः सृष्टि का कारण नारायण है, नारायण का कारण आदि नारायण है तथा आदि नारायण का कारण अक्षर पुरुष है। इस प्रकार सब कारणों का कारण अक्षर पुरुष है परन्तु अक्षर पुरुष का कोई कारण नहीं है।
बजरंग लाल शर्मा