अक्साई चिन कंफ्लिक्ट क्या है? क्यों अक्साई का नाम आने पर चिढ़ जाता है चीन?

What is the history of Aksai Chin?
वो लाइन जो लद्दाक के क्षेत्रों को अक्साई चिन से अलग करती है ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ के रूप में जानी जाती है। अक्साई चिन भारत और चीन के बीच चल रहे दो मुख्य सीमा कंफ्लिक्ट में से एक है। चीन के साथ दूसरा कंफ्लिक्ट अरुणाचल प्रदेश से संबंधित है।
चीन, पाकिस्तान और भारत के संयोजन में तिब्बती पठार के उत्तरपश्चिम में स्थित अक्साई चिन एक विवादित क्षेत्र है। ये कुनलुन पर्वतों के ठीक नीचे स्थित है। ऐतिहासिक रूप से अक्साई चिन भारत को रेशम मार्ग से जोड़ने का ज़रिया था और भारत और हज़ारों साल से मध्य एशिया के पूर्वी इलाकों (जिन्हें तुर्किस्तान भी कहा जाता है) और भारत के बीच संस्कृति, भाषा और व्यापार का रास्ता रहा है। भारत से तुर्किस्तान का व्यापार मार्ग लद्दाख़ और अक्साई चिन के रस्ते से होते हुए काश्गर शहर जाया करता था।
1950 के दशक से ये क्षेत्र चीन क़ब्ज़े में है पर भारत इस पर अपना दावा जताता है और इसे लद्दाक राज्य का उत्तर पूर्वी हिस्सा मानता है। अक्साई चिन जम्मू कश्मीर और लद्दाक के कुल क्षेत्रफल के पांचवें भाग के बराबर है। चीन ने इसे प्रशासनिक रूप से शिनजियांग प्रांत के काश्गर विभाग के कार्गिलिक ज़िले का हिस्सा बनाया है।

Understanding Sino-Indian border issues
नाम की उत्पत्ति:-‘अक्साई चीन’ (ﺋﺎﻗﺴﺎﻱ ﭼﯩﻦ) का नाम उईग़ुर भाषा से आया है, जो एक तुर्की भाषा है। उईग़ुर में ‘अक़’ (ﺋﺎق) का मतलब ‘सफ़ेद’ होता है और ‘साई’ (ﺴﺎﻱ) का अर्थ ‘घाटी’ या ‘नदी की वादी’ होता है।उईग़ुर का एक और शब्द ‘चोअल’ (ﭼﯚل) है, जिसका अर्थ है ‘वीराना’ या ‘रेगिस्तान’, जिसका पुरानी ख़ितानी भाषा में रूप ‘चीन’ (ﭼﯩﻦ) था। ‘अक्साई चिन ‘ के नाम का अर्थ ‘सफ़ेद पथरीली घाटी का रेगिस्तान’ निकलता है।चीन की सरकार इस क्षेत्र पर अधिकार जतलाने के लिए ‘चीन’ का मतलब ‘चीन का सफ़ेद रेगिस्तान’ निकालती है, लेकिन अन्य लोग इसपर कंफ्लिक्ट रखते हैं।
भौगोलिक विवरण:- अक्साई चिन लगभग 5,000 मीटर ऊंचाई पर स्थित एक नमक का मरुस्थल है। इसका क्षेत्रफल 42,685 किमी² (16,481 वर्ग मील) के आसपास है। भौगोलिक दृष्टि से अक्साई चिन तिब्बती पठार का भाग है और इसे ‘खारा मैदान’ भी कहा जाता है। ये क्षेत्र लगभग निर्जन है और यहां पर स्थायी बस्तियां नहीं है। इस क्षेत्र मे ‘अक्साई चीन’ (अक्सेचिन) नाम की झील और ‘अक्साई चीन’ नाम की नदी है। यहां वर्षा और हिमपात ना के बराबर होता है क्योंकि हिमालय और अन्य पर्वत भारतीय मानसूनी हवाओं को यहां आने से रोक देते हैं।
भारत का आरोप:-भारत का आरोप है कि चीन ने जम्मू-लद्दाक की 41180 वर्ग किलोमीटर जमीन पर गैर कानूनी कब्ज़ा कर रखा है।
China believes India wants Aksai Chin back
इसमें 5180 वर्ग किलोमीटर अक्साई चिन का लद्दाखी क्षेत्र है।
चीन, सीमा का निर्धारण करने वाली मैकमोहन रेखा को नहीं मानता। चीन अरुणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर भी अपना दावा करता रहा है। 17 हजार फीट की ऊंचाई पर अक्साई चिन के भौगोलिक हालात ऐसे हैं कि यहां इंसान रह नहीं सकता लेकिन गुस्से और तनातनी के बीज यहां बखूबी पनपते रहे हैं।
भारत के लद्दाक से सटा है ये अक्साई चिन|
चीन के जिनजियांग प्रांत से सटा हुआ है यही अक्साई चिन ।
इसी अक्साई चिन से होकर गुजरता है जिनजियांग-तिब्बत हाइवे।
क्साई चिन का ये इलाका दरअसल सदियों पुराना व्यापारिक रास्ता भी है।
मौजूदा दौर में यहां चीन का कब्जा है।
India versus China: A review of the Aksai Chin border dispute
पूर्वोत्तर भारत सीमा कंफ्लिक्ट की जड़:-
भारत और चीन के बीच सरहद के झगड़े का दूसरा मोर्चा है भारत के पूर्वोत्तर में। ये वो इलाका है जहां से काल्पनिक मैकमोहन लाइन गुजरती है और दोनों मुल्कों को अलग करती है। नक्शे पर उकेरी गई यही लकीर दरअसल 1896 में LAC यानि वास्तविक नियंत्रण रेखा के तौर पर देखी गई। जिसे भारत चीन के साथ अपनी सरहद मानता है। पहले इस इलाके को नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी कहा जाता था यानि आज का अरुणाचल प्रदेश। लेकिन चीन अरुणाचल प्रदेश को भी अपना इलाका करार देता है और सिक्किम में भी दखलंदाजी करता रहता है। 1962 में इसी इलाके में भारत-चीन की जंग भी हुई थी।
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सीमा कंफ्लिक्ट का इतिहास:-
भारत-चीन सीमा कंफ्लिक्ट की जड़ सालों पहले पड़ी थी। ये दौर था 1834 का। पंजाब में सिखों का राज था। 1834 में वो लद्दाख तक जा पहुंचे और लद्दाख को जम्मू में मिलाने का ऐलान कर दिया। सिखों की फौज ने बाकायदा तिब्बत पर हमला कर दिया, लेकिन चीन की सेनाओं ने उन्हें हरा दिया और खदेड़ते हुए लद्दाख और लेह पर कब्जा कर लिया।
सिख और चीनियों के बीच 1842 में एक समझौता हुआ जिसमें तय हुआ कि एक-दूसरे की सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया जाएगा। अंग्रेजों ने 1846 में सिखों को हरा दिया और लद्दाख पर ब्रिटिश राज कायम हो गया। उन्होंने चीन के अधिकारियों से मिलकर सरहद का मुद्दा सुलझाने की कोशिश की। तय हुआ कि प्राकृतिक चिन्हों के जरिए ही सरहद तय की जाएगी और सीमा पर बाड़ की जरूरत नहीं है। यहीं से असली सरहद गायब हो गई और कई लकीरों में दोनों देश उलझ कर रह गए। नक्शे पर बनी सरहद की पहली लकीर जॉनसन लाइन है।
1865 में सर्वे ऑफ इंडिया के अफसर डब्लू एच जॉनसन ने एक दिमागी रेखा खींची जिसके मुताबिक अक्साई चिन का इलाका जम्मू लद्दाक में आता है। जॉनसन ने नक्शे पर उकेरी ये रेखा जम्मू कश्मीर लद्दाक के महाराजा को दिखाई। लेकिन जॉनसन के काम की आलोचना हुई। उसे ब्रिटिश राज ने नौकरी से निकाल दिया, चीन ने कभी इसे नहीं माना और भारत ने हमेशा अपनाया।
नक्शे पर बनी सरहद की दूसरी लकीर जॉ़नसन-आरदाग लाइन है। 1897 में ब्रिटिश फौज के अफसर सर जॉन आरदाग ने कुनलुन पहाड़ों से गुजरती हुई एक और सरहद खींची। ये वो दौर था जब ब्रिटिश राज को रूस के बढ़ते प्रभुत्व से खतरा लगने लगा था। चीन कमजोर था। आरदाग ने ब्रिटिश राज को समझाया कि ये सरहद फायदेमंद होगी। लेकिन ये लकीर सिर्फ किताबों तक रह गई। नक्शे पर बनी सरहद की तीसरी लकीर मैक्कार्टनी-मैक्डॉनल्ड लाइन है।
1890 में ब्रिटेन और चीन दोस्त बन गए, ब्रिटेन को चिंता सता रही थी कि कहीं अक्साई चिन का इलाका रूस न कब्जा ले। 1899 में चीन ने अक्साई चिन के इलाके में दिलचस्पी दिखाई सो ब्रिटेन ने सरहद में बदलाव का इरादा बनाया। ये बदलाव सुझाया जॉर्ज मैककार्टनी ने और अक्साई चिन का ज्यादातर इलाका चीन में डाल दिया। चीन ने इसपर खामोशी लगा ली, ब्रिटिश राज ने इसे चीन की सहमति समझ ली। ये लाइन ही मौजूदा वास्तविक नियंत्रण रेखा है।
नक्शे पर बनी सरहरद की चौथी लकीर मैकमोहन लाइन है। 1913-14 में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधि शिमला में मिले और सरहद पर बातें हुईं। ब्रिटिश अफसर हेनरी मैकमोहन ने समझौते के साथ एक नक्शा पेश किया। जो तिब्बत और भारत की पूर्वी सरहद तय कर रहा था। चीन को ये मंजूर नहीं हुआ, वो समझौते के लिए तैयार न हुआ।
मैकमोहन लाइन का आधार हिमालय था, हिमालय के दक्षिणी हिस्से भारत से जोड़े गए।1947 में भारत की आजादी के बाद से ही सरकार ने जॉनसन लाइन को ही आधिकारिक सरहद माना जिसमें अक्साई चिन भारत का हिस्सा था। उधर, चीन ने जिनजियांग और पश्चिमी तिब्बत को जोड़ने वाला 1200 किलोमीटर लंबा हाइवे बना डाला, इसका 179 किलोमीटर का हिस्सा जॉनसन लाइन के दक्षिणी हिस्से को काटते हुए अक्साई चिन से होकर गुजरता था।
भारत-चीन कंफ्लिक्ट:-चीन ने जब 1950 के दशक में तिब्बत पर क़ब्ज़ा किया तो वहाँ कुछ क्षेत्रों में विद्रोह भड़के जिनसे चीन और तिब्बत के बीच के मार्ग के कट जाने का ख़तरा बना हुआ था। चीन ने उस समय शिंजियांग-तिब्बत राजमार्ग का निर्माण किया जो अक्साई चिन से निकलता है और चीन को पश्चिमी तिब्बत से संपर्क रखने का एक और ज़रिया देता है। भारत को जब ये ज्ञात हुए तो उसने अपने इलाक़े को वापस लेने का यत्न किया।
1957 तक तो भारत को ये तक पता नहीं चल सका कि चीन ने अक्साई चिन के इसी विवादित हिस्से में सड़क तक बना ली है। 1958 में चीन के नक्शे में पहली बार ये सड़क प्रकट हुई। ये 1962 के भारत-चीन युद्ध का एक बड़ा कारण बना। वह रेखा जो भारतीय लद्दाक के क्षेत्रों को अक्साई चिन से अलग करती है ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ के रूप में जानी जाती है।
अक्साई चिन भारत और चीन के बीच चल रहे दो मुख्य सीमा कंफ्लिक्ट में से एक है। चीन के साथ अन्य कंफ्लिक्ट अरुणाचल प्रदेश से संबंधित है।
चीन अरुणाचल के दक्षिण तिब्बत होने का दावा करता है।
चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है और इस इलाके में भारतीय नेताओं, विदेशी अधिकारियों तथा दलाई लामा की यात्रा का नियमित विरोध करता है।
चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत कहता है वहीं भारत का मानना है कि अकसाई चीन को लेकर कंफ्लिक्ट है जिस पर चीन ने 1962 की जंग में कब्जा कर लिया था।
What's behind the India and China border brawls?