कितनी कीमत लगाई है आपने अपनी? P अतुल विनोद
सवाल अटपटा है लेकिन हर व्यक्ति इससे दो चार होता है| उसे पता हो या ना हो लेकिन वो अनजाने में ही अपनी कीमत लगा लेता है|
यदि उसके पास कार बैंक बैलेंस और बंगला है तो निश्चित ही वो अपनी कीमत ज्यादा लगाएगा|
हम अपनी लाइफ में अपने अचीवमेंट से खुद की कीमत आंकते हैं| ये अचीवमेंट ज्यादातर भौतिक होते हैं?
दरअसल समाज में भौतिक उपलब्धियों से मूल्याङ्कन करने की परिपाटी है| हमारा अवचेतन उसी का परिपालन कर रहा है|
हम अपने बच्चों को भी बचपन से यही सिखाते हैं … बेटा यदि तुम्हारे पास बैंक बेलेंस, कार और बंगला नहीं होगा तो लाइफ में तुम्हारी वेल्यु जीरो रहेगी| बड़ा होने पर यदि उसे ये सब न मिले तो लाइफ ख़राब लगती है फिर जीना बेकार| क्यूँ नहीं आप उसे जीना सिखाते|
नौकर चाकर से भी व्यक्ति का मूल्य तय होता है| ज्यादा नौकर तो ज्यादा वेल्यु?
ये वेल्यु क्या है जिसमे वेल्यु ही नहीं| ये कैसी कीमत?
एक व्यक्ति इस आधार पर नहीं आंका जाता कि उसने ह्रदय, मन , मस्तिष्क और आत्मा के स्तर पर क्या पाया?
इसी सोच के कारण आज लोग बड़े स्तर पर आत्महत्या कर रहे हैं| खुदके बचे रहने से संतोष नहीं रहता बस बाहरी चीज़ें बची रहें|
जब हमारे पास पैसा साधन और संसाधन आने लगता है तो हम अप फील करते हैं| इससे हमें लगता है कि हमारी कीमत बढ़ रही है हम अच्छा महसूस करते हैं|
हम दूसरे इंसान को भी उसके पास मौजूद सामान के आधार पर तौलते हैं|
हम अपनी चीज़ों को लगातार बढाते रहना चाहते हैं… यदि उनमे बढ़ोत्तरी थम जाये तो व्यक्ति खुदका मूल्य कम करने लगता है|
यदि मेरे पास एक कार, घर और जॉब है यदि वो लंबे समय तक कांस्टेंट रहे तो क्या होगा?
बुरा फील होगा
कार और घर अपग्रेड ना हो, इनकम में इजाफा न हो तो लाइफ बेकार लगने लगती है|
हमने खुद से ज्यादा मूल्य हमसे पैदा होने वाली चीज़ों को देना शुरू कर दिया है इसी वजह से ९० फीसदी लोगों को अपनी लाइफ में इंटरेस्ट नहीं है|
अपने आसपास १० लोगों से पूछिए क्या वो अपनी लाइफ को कीमती मानते हैं? क्या वो लाइफ से संतुष्ट हैं?
यदि नहीं तो किस वजह से?
मैन रीज़न बाहरी ही होगा .. अंदर के खालीपन का कारण भी काम, धंधा या चीज़ों की घटबढ़ ही होगी|
हमे अपने मूल्य बदलने होंगे खुदके लिए भी और दूसरों के लिए भी … बच्चों से भी कहना होगा … खुदको पैसा कमाने और चीज़ें खरीदने की मशीन मत बनाओ … मशीन ही बनना है तो ख़ुशी, शांति, सहयोग देने वाली बनो …जीवन को अच्छी तरह जीना लक्ष्य होना चाहिए या अच्छी तरह जीने के लिए ज़रूरी पैसा और वस्तुएं?
जो अच्छी तरह जीना सीख लेगा उसे ये सब साधन आसानी से मिलेंगे... यही लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन है...
हमारा जीवित् होना ही हमारे लिए काफी हो … हमारा अकेले होना भी हमे मूल्यवान लगे … चीज़ें न रहें तब भी हम हल्का और सुखद महसूस करें ..
प्रकृति का मुल्यांकन का तरीका अलग है| आपके और उसके मूल्य अलग हैं|
खुदका नेचुरल मूल्य इस तरह से जाने?
हफ्ते में एक बार अपने आसपास के किसी निर्जन स्थान में जाकर कुछ देर बैठें…मोबाइल साइलेंट कर दें और देखें ..अकेले में आप जितने सहज होंगे उतना ही आपका प्राकृतिक मूल्य होगा और एकांत जितना काटने को दौड़े प्रकृति की नज़रों में उतना कम मूल्य होगा…
ज्यादा से ज्यादा में खुश होने का मतलब है कम से कम आंतरिक मूल्य और कम से कम में खुश, शांत और सहज होने का मतलब है उतना ही अधिक आन्तरिक मूल्य|
प्राचीन काल में राजा महाराजा के बच्चों को जंगल में स्थित आश्रम भेजने का मतलब भी यही सिखाना था
कम से कम में ज़िन्दगी को जी लेने की आदत डालना.. जीना वस्तुओं का मोहताज नहीं हो…
पशु, पक्षी और जीव जंतुओं के पास कपड़े तक नहीं होते फिर भी चहचहाते हैं|
फूलों के पास अपना क्या होता है फिर भी खुशबू देते हैं|
मनुष्य को छोड़कर प्रकृति ने किसी जीव जंतु को मोहताज नहीं बनाया … इसे जितनी बुद्धि दी इसने उतनी ही निर्भरता पैदा कर ली|
अब तो एक घंटे मोबाइल बिजली या पंखे AC के बिना नहीं जिया जाता … टॉयलेट जाने के लिए भी ऑटो-ट्राली बन रही हैं कुर्सी से पैर ज़मीन पर नही ट्राली पर होंगें ...खड़े होते ही आपकी वाइस कमांड से वो आपको वाश रूम या लोबी में पंहुचा देगी| कुछ सदी बाद प्रकृति मनुष्य को पैर देना ही बंद कर देगी .. वो सब अंग गायब होते जायेंगे जिनका उपयोग नहीं होगा| सब कुछ चीज़ें ही होंगी तो ... आपकी २ आँखें छोटा से दिमाग ही काफी होगा बाकी सब तो आप मशीनों और गेजेट्स से कर लेंगे?
जीवन के साथ जितना जोड़ेंगे लाइफ उतनी बोझिल होगी जितना घटाएंगे उतनी अपने आपमें पूर्ण …
इसका मतलब चीज़ों से भागना नही इसका मतलब चीज़े होते हुए भी खुदको आत्मनिर्भर रहने देना ...
जीने की लिए कोई उद्देश्य नहीं होता जीना ही अपने आपमें सबसे बड़ा उद्देश्य है|
ईश्वर ने भेजा है जीने के लिए बस जियो इतना ही काफी है|
जीवन में जीने के अकाल जीने स्व बड़ी कोई मीनिंगफुल चीज़ नहीं है|
"आप अनमोल हीरे हैं, लेकिन लोग आपका मूल्य अपने फायेदे नुकसान के हिसाब से लगायेंगे.. उन्हें आपसे जितना फायेदा है उनके लिए आप उतने ही कीमती हैं| इसलिए उनके हिसाब से खुदको मत तौलिये .. अपना वास्तविक मूल्य बढ़ाने आज से ही जुट जाएँ|"
"यदि आप दुनिया बदलने में अपना योगदान देना चाहते हैं तो लोगों का मूल्यांकन उनके आनंद प्रेम और करुणा के आधार पर करें न की उनके पास मौजूद वस्तुओं के आधार पर .. "