आखिर ऊंच-नीच से कब मुक्त होगा भारत? देश की आत्मा को लहुलुहान करती जाति-धर्म की सियासत -- P अतुल विनोद


स्टोरी हाइलाइट्स

आखिर ऊंच-नीच से कब मुक्त होगा भारत? देश की आत्मा को लहुलुहान करती जाति-धर्म की सियासत -- P ATUL VINOD जाति और धर्म के नाम पर जो कुछ हुआ, हो रहा है वो आप जानते हैं| २१वी सदी में भी हम 19वी सदी के ज़हर को पीने को मजबूर हैं| मूर्खताओं की हद है| जाहिलों की फौज़ है| दिमागी दिवालियापन इस कदर सर पर चढ़ा हुआ है कि हम दिमाग को एक पल भी नहीं खोलना चाहते| इन मूढ़ताओं पर सिलसिलेवार नज़र डालते हैं| तुलसीदास जी लिख गए .. "ढोल, गवार, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़न के अधिकारी" यहाँ ताड़न शब्द का अर्थ है देखरेख, परवाह| धर्म कहता है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता| तुलसीदास जी इस तरह पूजी जाने वाली नारी की देखरेख की बात कहते हैं| वे अपनी पत्नी को अपना गुरु मानते हैं तो प्रताड़ना की बात कैसे कह सकते हैं? जब वे नारी की देखरेख और केयरिंग की बात क्र रहे हैं तो इसी लाइन में लिखे शूद्र शब्द के लिए भी देखरेख और केयरिंग ही ताडन शब्द का अर्थ निकला जाना था लेकिन उल्टा अर्थ निकाल कर आज भी भड़कावे का जातां चल रहा है और लोग मनमाने अर्थ को मान भी रहे हैं| अब बताते हैं शूद्र की ताड़ना के पीछे तुलसीदास जी का क्या मंतव्य है? मनु कहते हैं जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत् द्विजः | वेद-पाठात् भवेत् विप्रः ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः| मनु कहते हैं हम सब जन्म से शूद्र हैं| जन्म लेने वाला बालक कैसा होता है? सहज, निर्मल, पूरी तरह खाली| इन सबकी परवाह करो, ताड़न करो यानी नज़र बनाए रखो| पशु पर नज़र नहीं रखी तो वो दूर जा सकता है| गवार यानि बुद्धिहीन की परवाह नहीं की तो वो बड़ी गलती कर सकता है| नारी की देखरेख नहीं की तो उसके साथ कोई पापी गलत कार्य कर सकता है और शूद्र यानि बालक, सीधा सरल सहज व्यक्ति की परवाह करना भी कर्तव्य है| नारी के ताड़न पर भी बबाल मचा और शूद्र को तो नीच करार दिया गया| तुलसी और मनु की भी मजम्मत होती रहती है| जब मनु और राम हुए … उस ज़माने की भाषा कौन सी थी? श्रुति और स्मृति के आधार पर संस्कृत और हिंदी में उनके सन्देश और कथाओं को लिखा गया| जब लिखा गया तब जात पात का अस्तित्व नहीं था| वर्णाश्रम थे जिसमे योग्यता के आधार पर कार्य विभाजन था| फिर ये जात-पात कब आई? इन्हें किसने बढ़ावा दिया फिर कानून में इन जातियों को किसने शामिल करके जातिवाद को कानूनी जामा पहना दिया? यजुर्वेद में एक  प्रार्थना है जो कहती है  “हे परमात्मा , आप मेरी ब्राहमण और क्षत्रिय योग्यताएं बहुत ही अच्छी कर दो”| यहाँ ब्राहमण और क्षत्रिय योग्यता है न कि जाति| इसलिए किसी के भी साथ शूद्र बताकर भेदभाव नहीं किया जा सकता उलटा हम सब जन्म से शूद्र हैं| हम सब शूद्र के रूप में पैदा होते हैं यानि न्यूट्रल फॉर्म में, इसके बाद हम आपने कर्म से अलग अलग योग्यता विकसित करते हैं| भारत सहित पूरी दुनिया में ऊंच नीच हमेशा रही इसका आधार हमेशा ताकत और पैसा रहा है| भारत में जात-पात के नाम से भी उंच नीच होती रही| अंग्रेजों और आक्रमण- कारियों ने फूट डालने के लिए जाति और धर्म व्यवस्था को कानूनी जामा पहनाना शुरू किया| वर्गीकरण की ये प्रक्रिया संविधान लिखे जाने के कारण स्थायी लकीर हो गयी| आरक्षण के कारण जाति को साथ रखना दलितों की मजबूरी हो गयी| देश की स्वतंत्रता के बाद हर व्यक्ति को अपने कर्म के आधार पर जाति तय करने का अधिकार मिलना था लेकिन आरक्षण ने अपनी जाति को ढोने को मजबूरी बना दिया| अब जातियों की कहानियाँ ताज़ा करने का मतलब है नयी पीढ़ी को फिर से उंच नीच का पाठ पढ़ा देना| अपने आपको सवर्ण और दलित मानने वाले लोग धर्म और संविधान के साथ धोखा कर रहे हैं| हिन्दू धर्म में किसी को ऊँचा नहीं कहा गया तो ये सवर्ण कहाँ से पैदा हो गए और जब किसी को नीचा भी नहीं कहा तो ये दलित कैसे पैदा हो गए? न धर्म आपको ऊँचा नीचा बनाता न संविधान, तो ये दलित बनाम सवर्ण कैसे आया .. दरअसल ये समाज में व्याप्त उस मानसिकता की देन है जो थोड़ा सा ज्ञान और पैसा आते ही खुदको अभिजात्य मानने लगता है| दलितों में भी अफसर और धनवान बने लोग आपने ही परिवार के गरीब रिश्तेदारों को तवज्जो नहीं देते क्यूँ? क्योंकि ये ऊंच-नीच जात पात की नहीं है ये है रसूख, पद, प्रतिष्ठा, धन, यश, वैभव, कथित उच्च शिक्षा और रहन सहन की| इस तरह का भेदभाव घर में भी होता है एक भैय्या ज्यादा पढलिखकर अफसर बन जाए तो अपने ही चतुर्थ श्रेणी भाई का घर आना उसे अखरता है| उसका परिचय देना उसके लिए शर्म की बात है| गाँव से आई कम पढ़ी लिखी माँ का अपनी सोसायटी में परिचय देने में उसे झिझक होती है| उंच नीच एक मानसिकता है जो मानव की सबसे बढ़ी कमजोरी है| ये उंच नीच हर जगह व्याप्त है| अधिकारी नेता को नीचा समझता है नेता अधिकारी को| आईएएस आईपीएस को नीचा समझता है तो आईपीएस आईएएस को| उंच-नीच, जात-पात, हिन्दू-मुस्लिम वाद एक शैतानी सोच है जो बटवारे, क़त्ल-ए-आम और बलात्कार की बुनियाद को मजबूत करते रहे हैं| जाति और धर्म के भेद पर खड़े भारतीय न सिर्फ सदियों तक गुलाम रहे बल्कि अन्य देशों से पीछे भी हो गए| जातिवाद का फायेदा उठाकर इस्लामी आक्रान्ताओं से हिन्दू बिरादरी को तोड़कर हिन्दुओं में से ही मुस्लिम खड़े कर  दिए| भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले सभी हिन्दू थे| आप भारतीय शब्द को हिन्दू मान सकते हैं| इस शब्द का वर्णन वेदों में भी आता है| हिमालयात् समारंभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तद्देव निर्मितम् देशम् हिंदुस्थानम् प्रचक्षते॥ अर्थात, उत्तर में हिमालय से आरम्भ कर के दक्षिण में इन्दु सागर (हिन्द महासागर) तक का जो क्षेत्र है उस देव निर्मित देश को हिंदुस्थान कहते हैं, और यहाँ रहने वाले हिन्दू कहलाते हैं| ये हिन्दू सनातन धर्म को मानने वाले थे, मुस्लिम बने हिन्दुओं ने ही आपस में लड़कर भारत का विभाजन करा दिया|लड़ाने वाले विदेशी थे| “मोहम्मद अली जिन्ना” जैसे लोगों ने इसी हिन्दू विरासत से पैदा होकर अपने ही देश के टुकड़े करवा दिए| जिन्ना के परदादे हिन्दू थे| इकबाल के दादा ब्राह्मण थे| असदुद्दीन ओबेसी और फारुख अब्दुल्ला खुलकर कहते हैं कि उनके पूर्वज हिन्दू थे| जानते हैं लेकिन फिर भी छोटा सा छुद्र स्वार्थ्य देश की अस्मिता पर भारी पड़ जाता है| आज हिन्दू हिन्दू को वोट देगा, मुस्लिम मुस्लिम को, बौध बौध को, दलित दलित को| ये बटवारा अयोग्य शासकों की फौज खडा करता है| अब नये नये जिन्ना खड़े हो गये हैं, जिस शाखा से पैदा हुए उसे ही काटने में लग गए हैं| इस भारतीय हिन्दू जनसँख्या का इतना बटवारा कैसे हुआ? किसने किया? इतिहास बता देगा| जब तक हम दंगे,अपराध को जाति और धर्म की नज़र से देखना बंद नहीं करेंगे समस्या बरकार रहेगी| जातियता की बातें बंद होनी होनी चाहिए| जाति धर्म के नाम पर कोई अलग कानून न हों| आरक्षण का आधार गरीबी हो न कि जाति| कोई भी नागरिक जाति धर्म के नाम पर किसी तरह का अलग अस्तित्व और स्टेट्स न रख सके|