Constipation in AYURVEDA Remedies, Causes, Symptoms, Medicines
पेट के रोगों की आयुर्वेदिक और घरेलु चिकित्सा
उदर रोग और उनके उपचार
कब्ज के कारण- मानव शरीर में जितने भी रोग उत्पन्न होते हैं, उन सब का आरम्भ प्रायः उदर रोग से होता है। एक कहावत है कि पेट खराब तो शरीर खराब' और यह कहावत कुछ मिथ्या भी नहीं है। अनुपयुक्त आहार का प्रभाव सबसे पहिले उदर पर ही पड़ता है। सन्तुलित सात्विक हमारे शरीर में विद्यमान सभी धातुओं को पुष्ट करता है। किन्तु असन्तुलित, असाल्विक और असामयिक भोजन सबसे पहले पाचन तन्त्र पर ही प्रहार करता है, जिसके कारण अनेक प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। उदर रोगों में मुख्य व्याधि मलावरोध अर्थात् कब्ज है इस रोग के शिकार लगभग अस्सी प्रतिशत मनुष्य तो मिलेंगे ही। इसमें स्त्री या पुरुष का भी कुछ भेद नहीं है।
यद्यपि आयुर्वेदज्ञों ने मलावरोध को कोई स्वतन्त्र रोग नहीं माना है, तथापि अब, इस युग में तो यह एक प्रकार से महारोग ही है।

मलावरोध के अनेक कारण हो सकते हैं। सर्व प्रथम गरिष्ठ भोजन को ही लें, जो कि पचता भी नहीं और निःसरित भी नहीं होता और होता भी है तो फिर पतले दस्त कर देता है। पेट में दर्द, अफरा, वमनेच्छा, वमन आदि सब मलावरोध के ही उपसर्ग रूप में प्रकट होते हैं। मलावरोध के अन्य कारणों में-आलस्य में पड़े रहना, परिश्रम न करना,व्यायाम न करना, दिन में सोना, रात्रि में जागना, मादक द्रव्यों का सेवन करना आदि अनेक अव्यवहारिक क्रियाएं हैं, जो पाचन तन्त्र के अनुकूल नहीं होती। शोक, चिन्ता, क्रोध, हिंरा- प्रतिहिंसा का उदय होना,अधिक स्त्री संसर्ग और अश्लील विचारों में डूबे रहना आदि से भी मलावरोध हो जाता है।
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businessman in the toilet with problems of constipation[/caption]
मल- मूत्र का वेग रोकना, विभिन्न रोगों में ऐसी दवाएँ खाना जो मल को खुश्क कर देती हों, इन सब कारणों से भी कब्ज का हो जाना स्वाभाविक है। कब्ज के लक्षण- कब्ज रहने पर शरीर में अनेक उपसर्ग उत्पन्न हो जाते हैं। उनमें लक्षण भी भिन्न- भिन्न होते हैं। संक्षेप में पेट पर भारीपन, अफरा, पेटदर्द, जी मिचलाना आदि उपद्रव तो चाहे जब देखे जा सकते हैं। सिर दर्द, सर्वांग दर्द, चक्कर आना, खाँसी, श्वास, बबासीर आदि तथा ज्वर भी हो जाता है।
रोगी को अनेक बार प्रतीत होता है कि दस्त होगा, किन्तु होता नही। इसलिये बार- बार शौच के लिये जाता तथा बहुत समय तक वहाँ बैठा रहता है। फिर निराश लौट आता है। बार- बार थोड़ा- थोड़ा दस्त होना भी मलावरोध का ही सूचक है। मलावरोध की स्वाभाविक चिकित्सा- रोग कोई भी हो, कैसा भी हो, उसे असाध्य नहीं मान लेना चाहिये। मनुष्य उपाय करे तो उसे सफलता भी मिल जाती है। कभी- कभी देखा गया है कि आहार-विहार को सन्तुलित और सात्विक करने, परिश्रम और व्यायाम करने आदि से ही बहुत कुछ लाभ हो जाता है।
वस्तुतः स्वाभाविक उपाय ही सर्वोपरि समझने चाहिये, औषधादि का सेवन तो रोग-निवृत्ति में सहायक उपाय ही है। किन्तु वर्तमान समय में लोगों ने औषधि को ही मुख्य उपाय समझ लिया है, बात- बात पर डॉक्टर के पास जाते हैं और उन ऐलोपैथिक दवाओं का आश्रय लेते हैं, जो सामयिक लाभ तो दिखाती है, किन्तु विभिन्न तन्त्रों में गड़बड़ी उत्पन्न कर देती हैं। परिणाम स्वरूप अन्य व्याधियाँ प्रत्यक्ष दिखाई देने लगती हैं। किन्तु ध्यान रखें कि कोई भी औषधि तब तक स्थायी लाभ नहीं पहुँचा सकती, जब तक रोग के कारणों को दूर न किया जाय । स्वाभाविक चिकित्सा का मूल मन्त्र यही है कि जिन एक कारणों से रोग उत्पन्न हुआ है, सर्व प्रथम उनका निवारण करो। अपने आहार को सुधारो।। सामान्य सात्विक भोजन और उच्च विचार मनुष्य के स्वास्थ्य को भी सदा अनूकूल रखते हैं।
यदि विबन्ध (कब्ज) रहता ही है तो यह ध्यान रखो कि आहार विहार में संयय के बिना काबू में नहीं आयेगा । वरन् वह लोकोक्ति ही चरितार्थ होगी कि 'रोग बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की'। कुछ नियम बनायें, सन्तुलन बनायें और अपनी दिनचर्या को नियमित करें। प्रातः काल प्रसन्न मन से शय्या छोड़कर उठे। ईश्वर में विश्वास हो तो उसका स्मरण करें। न विश्वास हो तो विश्वकल्याण की भावना करें और भ्रमण के लिये ऐसे मार्ग से जायें, ऐसे स्थान में घूमें जहाँ धूल- धक्कड़ न हो।
ठण्डी, मन्दी, प्रदूषण रहित वायु की प्राप्ति हो सके तो वह अमृत के तुल्य होगी। प्रातः काल ताजा पानी का सेवन अधिक लाभकारी होता है। किन्तु पानी शुद्ध प्रदूषित पदार्थों एवं कृमि आदि से भी रहित हो। नित्य प्रति प्रातःकाल समय पर शौच जायें। कब्ज की स्थिति में भी शौच के लिये जाना आवश्यक है। उससे मल उतरने में सुविधा रहेगी, न भी उतरे तो उस आदत को न छोड़ें। शौच के पश्चात् स्नान अवशय करें। ग्रीष्मादि ऋतुओं में ठण्डे पानी से नहायें और शीत ऋतु में गुनगुने से अधिक गर्म पानी से स्नान भी शरीर के अनूकूल नहीं रहता। वरन उससे त्वचा पर कालापन आता है। हरी सब्जियाँ अधिक खाएँ- पालक, बथुआ, मूली, टमाटर, सहजना (शोभांजन) आदि सभी सुपाच्य और स्वाभाविक रूप से अंग- प्रत्यंग की क्रियात्मकता की वृद्धि में सहायक होते हैं। पालक का सूप, टमाटर या अदरक का सूप, नीबू निचोड़ कर पीने से मलाशय पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है और यह सेवन में स्वादिष्ट भी लगते हैं।
फलों में अमरूद पाचन तन्त्र को अनूकूल रूप से प्रभावित करता है। इसके सेवन से कब्ज आदि अनेक विकार दूर हो जाते हैं। यदि प्रातःकालीन नाश्ते में केवल ताजा अमरूद खायें तो उससे कब्ज न रहने में बहुत सहायता मिलेगी। यदि चाहें तो अमरूद के टुकड़े काटकर, नमक, कालीमिर्च एवं नीबू आदि डालकर भी ले सकते हैं। अन्य फलों में पपीता, आम, सन्तरा, अंजीर, आलूबुखारा आदि उत्तम हैं। तात्पर्य यह है कि सभी ऋतुफल मानव प्रकृति के अनुकूल रहते हैं, उनके सेवन से लाभ ही अधिक होता है। कब्ज में चिकनाई भी हितकर रहती है किन्तु वह आवश्यक मात्रा में ही लेनी चाहिये| रोटी चुपड़ी, खिचड़ी आदि में घृत का सेवन लाभदायक रहेगा| किन्तु घृत के साथ मोटी रोटी, बाटी, चूरमा, पकवान या मिष्ठान प्रभृति वस्तुएं पाचन तन्त्र पर प्रभाव डालती हैं। कब्ज के रोगी को उनसे बचना चाहिए।
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