वैदिक काल में स्त्रियों का मुकाम क्या था? मैत्रेयी जिसके ज्ञान के आगे धराशाई हुए याज्ञवल्क्य


स्टोरी हाइलाइट्स

एक बार की बात है। राजा जनक के दरबार में आध्यात्मिक वाद-विवाद चल रहा था, जिसमें भाग लेने के लिए उस राज्य के सभी संत-महात्मा एकत्र हुए।

एक बार की बात है। राजा जनक के दरबार में आध्यात्मिक वाद-विवाद चल रहा था, जिसमें भाग लेने के लिए उस राज्य के सभी संत-महात्मा एकत्र हुए। इसे आप सत्य क्या है और क्या नहीं, इसका पता लगाने की एक प्रतियोगिता भी कह सकते हैं। जनक सिद्ध पुरुष थे, एक ऐसे राजा जो अपने भीतर सत्य का साक्षात्कार कर चुके थे। इसलिए उन्होंने ऐसा आयोजन किया कि अध्यात्म मार्ग पर चलने वाला राज्य का हर व्यक्ति उसमें भाग ले सके। जैसे-जैसे वाद-विवाद बढ़ता गया, वह गूढ़ होता गया। शुरू में सभा में मौजूद हर व्यक्ति ने तर्क -वितर्क में भाग लिया, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, लोग बैठकर बस नजारा देखने लगे। दरअसल, कोई भी यह समझने की स्थिति में नहीं था कि वास्तव में चल क्या रहा है क्योंकि पूरा वाद-विवाद बेहद गूढ़ हो चुका था। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है। अंत में केवल दो ही लोग बचे। एक याज्ञवल्क्य और दूसरी मैत्रेयी। दोनों के बीच कई दिनों तक वाद-विवाद चलता रहा। बिना सोए, बिना खाए, यह वाद-विवाद बस चलता ही गया। हर व्यक्ति बैठकर यह नजारा देख रहा था, पर कोई यह नहीं समझ सका कि क्या चल रहा है क्योंकि पूरी चर्चा गूढ़ हो गई थी। अंत में याज्ञवल्क्य मैत्रेयी के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सके। याज्ञवल्क्य अपने आध्यात्मिक तेज और तीक्ष्ण बुद्धि के लिए पूरे राज्य में विख्यात थे, फिर भी मैत्रेयी के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सके। उन्होंने क्रोधित और उत्तेजित होकर मैत्रेयी से कहा कि अगर उसने एक भी प्रश्न और पूछा, तो उसके छोटे-छोटे टुकड़े कर दिए जाएंगे। इस पर जनक बीच में आ गए। उन्होंने याज्ञवल्क्य से कहा, ‘‘हालांकि आप सब कुछ जानते हैं, फिर भी आपको भीतर इस ज्ञान का जीवंत अनुभव नहीं हुआ है और यही वजह है कि आप मैत्रेयी के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाए।’’ इसके बाद जनक ने भरे दरबार में मैत्रेयी को सम्मानित किया। याज्ञवल्क्य को अपनी मर्यादाओं का बोध हुआ। वह मैत्रेयी के चरणों में जा गिरे और आग्रह किया कि मैत्रेयी उन्हें अपना शिष्य बना लें। मैत्रेयी ने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने कहा, ‘‘आप मेरे पति बन सकते हैं, शिष्य नहीं।’’ दरअसल, मैत्रेयी यह देख चुकी थीं कि कोई और आदमी इतना ऊंचा नहीं पहुंच पाया था। हालांकि याज्ञवल्क्य ने अभी भी वह नहीं पाया था, जो मैत्रेयी पा चुकी थीं, लेकिन उस समय मैत्रेयी को इतना पहुंचा हुआ दूसरा कोई और आदमी नहीं दिखा, इसलिए उन्होंने याज्ञवल्क्य को पति रूप में स्वीकार करने का फैसला किया। दोनों ने परिवार बसाया और कई सालों तक साथ रहे। वैदिक काल में जो क्रियाएं पुरुषों के लिए उपलब्ध थीं, उन्हें करने का स्त्रियों को भी बराबर का अधिकार था। कुछ समय बाद एक दिन याज्ञवल्क्य मैत्रेयी से बोले, ‘‘इस संसार में मैं बहुत रह चुका। अब मैंने तय किया है कि मेरे पास जो भी है, उसे मैं तुम्हें दे दूंगा और अपने आप को पाने के लिए वन चला जाऊंगा।’’ मैत्रेयी ने कहा, ‘‘आपने यह कैसे सोच लिया कि मैं इन सांसारिक चीजों में रम जाऊंगी? जब आप सच्चे खजाने की खोज में जा रहे हैं, तो भला मैं इन तुच्छ चीजों के साथ क्यों रहूं? क्या मैं कौडिय़ों से संतुष्ट हो जाऊंगी?’’ फिर वे दोनों वन चले गए और सिद्ध प्राणियों की तरह अपना बाकी जीवन व्यतीत किया। ऐसी कई कहानियां हैं, जो इस बात को साफ करती हैं कि वैदिक काल में अध्यात्म के मामले में स्त्रियां पुरुषों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलती थीं।