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हज़ारों करोड़ कहाँ गये, हर बात पर केवल सियासत.. दिनेश मालवीय

सार

हम आज एक बहुत अजीब दौर से गुजर रहे हैं. बात कुछ भी हो, विषय कुछ भी हो, मुद्दा कुछ भी हो-सियासत होकर ही रहती है. महाराष्ट्र में नेताओं द्वारा एक-दूसरे को नंगा करने की होड़ लगी है, ताजा मुद्दा दिल्ली में यमुना नदी के प्रदूषण से बावस्ता है. दिल्ली में यमुना नदी के गंदे नाले में तब्दील होने पर सियासत हो रही है...

janmat

विस्तार

हम आज एक बहुत अजीब दौर से गुजर रहे हैं. बात कुछ भी हो, विषय कुछ भी हो, मुद्दा कुछ भी हो-सियासत होकर ही रहती है. महाराष्ट्र में नेताओं द्वारा एक-दूसरे को नंगा करने की होड़ लगी है. भोपाल के सरकारी अस्पताल में आग लगने से बच्चों की मौत पर भी सियासी पॉइंट स्कोरिंग चल रही है. इस सियासत बाजी में असली मुद्दा खो जाता है. यह भी हो सकता है, कि इसका मकसद भी यही हो,क्योंकि हमाम में सभी नंगे हैं. जब भी जो दल सरकार में होता है, वह वही करता है, जिसकी वह विपक्ष में रहकर आलोचना करता है.


 
जब वह विपक्ष में आ जाता है, तो उन्हीं बातों की आलोचना करने लगता है, जो सरकार में रहकर वह करता है. ताजा मुद्दा दिल्ली में यमुना नदी के प्रदूषण से बावस्ता है. दिल्ली में यमुना नदी के गंदे नाले में तब्दील होने पर सियासत हो रही है. गंगा की सफाई को लेकर सियासत हो रही है. मैं बहुत कम उम्र का था, तब से अखबारों में दिल्ली में यमुना नदी में घातक प्रदूषण के बारे में पढ़ता आ रहा हूँ. टेलीविजन पर न्यूज चैनल शुरू होने पर गाहे-बगाहे इस पर बहुत तीखी बहसें और ख़बरें सुनने को मिलती रही हैं. छठ महापर्व पर एक बार फिर यमुना नदी के जानलेवा प्रदूषण का मुद्दा बहुत ज़ोर से उठा है. यमुना नदी में तैरता ज़हरीला फैन दिखाया जा रहा है. श्रद्धावान लोग उसी में नहाकर अपने धार्मिक अनुष्ठान कर रहे हैं.
 

 

जो दल सरकार में है और जो विपक्ष में है, दोनों इस जानलेवा प्रदूषण के लिए एक-दूसरे पर तोहमत लगा रहे हैं. इतनी चिल्लपों हो रही है, कि असल बात नेपथ्य में जा रही है. विशेषज्ञ अपनी प्रयोगशालाओं में यमुना जल के प्रदूषण की जांच की प्रक्रिया टीवी कैमरों के सामने सीधी दिखाकर अपनी विशेष योग्यता साबित करने में लगे हैं. असली मुद्दा यह है, कि पिछले वर्षों में जब यमुना नदी की सफाई पर 2100 करोड़ रूपये कह्र्च हो गये, तो वे रूपये कहाँ गये. कुछ लोग कह रहे हैं, कि यह राशि ऊँट के मुँह में जीरे के बराबर है. अब सोचिये, क्या 2100 करोड़ रूपये कम होते हैं. दिल्ली की बड़ी संख्या में कॉलोनियों का गंदा पानी सीधा यमुना में जाकर मिल रहा है. इसके अलावा यमुना के किनारे जो उद्योग लगे हैं, उनका गंदा पानी भी यमुना में सीधा आकर मिल रहा है.
 

 

क्या यह सब किसी को दिख नहीं रहा? बिल्कुल दिख रहा है. लेकिन कोई कुछ ठोस काम करने को तैयार नहीं है. नदी के प्रदूषण को रोकने के लिए सिर्फ पैसा खर्च करने से बात नहीं बनने वाली. इसके लिए जिस स्तर पर राजनैतिक इच्छाशक्ति और जागरूकता चाहिए, वह पूरी तरह नदारद है. क्या दिल्ली में यमुना को प्रदूषण मुक्त करना कभी चुनाव का मुद्दा बना? जवाब है, बिल्कुल नहीं. चुनाव के समय अपने घोषणापत्रों में कोई मुफ्त या आधे दाम पर बिजली-पानी की बात करेगा, तो कोई राष्ट्रवाद या धर्म की बात करेगा. लेकिन यमुना नदी को प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए उसमें मिलने वाले कॉलोनियों और उद्योगों के गंदे पानी को रोकने के लिए कोई गंभीर नहीं रहता. कोई बात करता भी है, तो यह महज औपचारिकता ही होती है.
 

 

करीब 35 साल पहले मैं किसी काम से कानपुर गया था. आदत मुताबिक़ मैं शाम को शहर से बाहर घूमने निकल गया. सूना था, कि इस नगर में गंगा नदी भी है. मैंने जिससे भी इस लोक और देव नदी का पता पूछा, वह मुझे ऐसे देखने लगा, जैसे कि मैं किसी दूसरे लोक से आया हुआ विचित्र जीव होऊँ. मेरी समझ में नहीं आया, लेकिन मैं उनकी बतायी दिशा में बढ़ता गया. कुछ दूर चलकर मुझे डामर की तरह पानी से भरा स्थान नज़र आया. मैंने सोचा, कि गंगा नदी आगे होगी. मैंने एक व्यक्ति से पूछा, कि गंगा कितनी दूर है? उसने कहा, यही तो गंगा है. मुझे तो जैसे काटो तो खून नहीं.
 
मैंने उस व्यक्ति से पूछा, कि गंगा की यह हालत कैसे हो गयी? उसने कहा, कि नदी के आसपास चमड़े की फेक्टरियों से निकलने वाले गंदे पानी से ऐसा हुआ है. मैंने पूछा कि इसे रोकने का किसीने प्रयास नहीं किया? वह अजीब-सा मुँह बिचकाकर ऐसे चला गया, जैसे कह रहा हो,कि “कितने बेवकूफ हो तुम!”.
 
मध्य प्रदेश में अस्पतालों की पावर ऑडिट
 
भोपाल के एक सरकारी अस्पताल में short circuit से लगी आग में अनेक नन्हे बच्चों के जलकर मर जाने के बाद आदेश जारी  हुआ, कि सभी सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों का पॉवर ऑडिट किया जाए. लेकिन हर दो साल में ऐसा करने की कानूनी बाध्यता तो पहले से ही है. इस तरह की कार्यवाही के लिए किसी दुर्घटना का इंतज़ार क्यों किया जाता है?  जो प्रावधान हैं, उनके लिए अलग से कोई आदेश का क्या औचित्य है. औचित्य तो यह है, कि पॉवर ऑडिट सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही की जाए.