किसान के यूरिया संकट पर कांग्रेस का आंदोलन कुत्ते को ज्ञापन के साथ पूरा हो गया है. छिंदवाड़ा में हुए इस आंदोलन में कांग्रेस का ताकतवर राज्य नेतृत्व उपस्थित था..!!
कमलनाथ की कर्मभूमि में आयोजित यह आंदोलन सकारात्मक प्रभाव छोड़ सकता था लेकिन कुत्ते के गले में ज्ञापन बांधकर कांग्रेस नेताओं ने न केवल अपने आंदोलन की हवा खुद ही निकाल दी है, बल्कि आयोजकों के गुब्बारे में ही पिन चुभा दी है. यह अजब गजब और बेवकूफी भरा कारनामा सोच समझ कर किया गया? या इसके पीछे भी कांग्रेस की खींचतान का खेल है? यह समझना मुश्किल है.
आदमी कुत्ते को इस लायक समझे कि उसे समस्या के निराकरण की जिम्मेदारी दी जा सके, यह तो कुत्ते का सम्मान है, लेकिन जिस मुद्दे के समाधान की जिम्मेदारी कुत्ते को दी गई है उस मुद्दे का जरूर यह अपमान कहा जाएगा.
कांग्रेस के इस आंदोलन में राज्य कांग्रेस अध्यक्ष और विधानसभा नेता प्रतिपक्ष भी उपस्थित थे. आंदोलन में काफी भीड़ भाड़ देखी गई. ज्ञापन लेने कोई अफसर नहीं पहुंचा तो कुत्ते को ही सिस्टम का काल भैरव समझकर कांग्रेसियों ने ज्ञापन सौंप दिया. यह कोई मजाक नहीं बल्कि मानसिकता का विषय है. जिस गंभीर मुद्दे पर आंदोलन किया जा रहा है, उस मुद्दे को लेकर कांग्रेस कितनी गंभीर है, यह इसी से समझा जा सकता है.
इसके साथ ही शासन के प्रतिनिधि को ज्ञापन दिया जाना था. कांग्रेस ने प्रतीक स्वरूप कुत्ते को ही सिस्टम का प्रतीक मान लिया. यह भी कांग्रेस के अहंकार और वर्तमान नेतृत्व के वैचारिक दिवालियापन का प्रतीक समझा जा सकता है.
कांग्रेस का पशु पक्षी के प्रति बड़ा प्रेम है. अभी तक राहुल गांधी कार्यकर्ताओं को कभी बब्बर शेर कहते हैं तो कभी रेस, बारात और लंगड़ा घोड़े के रूप में रेखांकित करते हैं. अब तो मध्य प्रदेश की कांग्रेस, शासन के सिस्टम को ही कुत्ते का प्रतीक मान लिया है. जिस शासन को पाने के लिए कांग्रेस अजब गजब ढंग से राजनीति और मुद्दे उठा रही है, वह तो ओटीटी पॉलिटिक्स का नमूना है. रियल से ज्यादा रील की चिंता है.
अब तो कांग्रेस जिला अध्यक्षों के कामकाज की मॉनीटरिंग भी ऐप से करेगी. रील लीडर रियल एक्शन के साथ पॉपुलर नहीं होता बल्कि इसी तरह के अनयूजुअल एक्शन से वीडियो वायरल होते हैं. इसलिए ऐसा माना जा सकता है कि, यह कोई आकस्मिक नहीं है, बल्कि पार्टी की सोची समझी योजना का हिस्सा है. जब तक कोई एबनार्मल एक्शन नहीं होगा तब तक कांग्रेस को मीडिया अटेंशन नहीं मिलेगा इसलिए कांग्रेस आंदोलन के तरीके बदल रही है. इन्हीं तरीकों में कुत्ते को ज्ञापन देने का भी मामला देखा जा सकता है.
विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस के विधायकों ने वीडियो वायरल करने के लिए जिस तरह के प्रदर्शन किए हैं, वह भी अजब-गज़ब ही है. कभी सांप लेकर विधानसभा पहुंचते हैं, कभी गिरगिट लेकर जाते हैं तो कभी भैंस बनकर बीन बजाने का नजारा पेश करते हैं. ऐसे ऐसे पॉलिटिकल इनोवेशन कांग्रेस की तरफ से देखने को मिल रहे हैं. जो सामान्य सोच से ऊपर है. यह सारे इनोवेशन आदमी..कुत्ते को काटे ऐसी सोच पर आधारित हैं.
आजादी के बाद कांग्रेस अधिकांश समय सत्ता की पार्टी रही है. केंद्र में बीजेपी की सत्ता आने के पहले तो कांग्रेस यह सोचती भी नहीं थी कि कभी उन्हें विपक्ष की राजनीति करना पड़ेगा. मध्य प्रदेश में भी दो दशक पहले तक कांग्रेस का ही राज हुआ करता था. अब धीरे-धीरे कांग्रेस को एमपी में विपक्ष की राजनीति करते हुए बीस साल से ज्यादा हो गए हैं.
कभी भी कांग्रेस कोई भी जन आंदोलन खड़ा करने में सफल नहीं हो सकी. राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति बहुत आशाजनक नहीं है फिर भी कांग्रेस विपक्ष के रूप में इन सच्चाइयों को उजागर नहीं कर पाई है. अभी तक एक भी करप्शन का कोई मामला उजागर करने में कांग्रेस को सफलता नहीं मिली है. नर्सिंग घोटाले का मामला उठाया गया था और उसकी दूसरी किस्त बाद में उजागर करने की बात की गई थी लेकिन अंततः सब कुछ मिलजुल कर साध लिया गया
विपक्ष की राज्य में सत्ता पक्ष के साथ मिलकर काम करने की मज़बूरी बन गई है. किसी भी राज्य में विपक्ष विरोध का अभिनय करता है लेकिन वास्तविक रूप से आम आदमी द्वारा भुगती जा रही परेशानियों को सामने लाने से परहेज किया जाता है. राजनीति के सभी खिलाड़ी व्यवसाय और धंधे से जुड़े होते हैं. इसके लिए सरकार से सहयोग की जरूरत होती है.
धंधे और व्यवसाय की सुरक्षा के लिए सरकार के साथ मेलजोल मजबूरी बन जाता है. दिखावे के लिए आंदोलन और प्रदर्शन कई बार किए जाते हैं लेकिन अपने आंदोलन को भी किसी ने किसी रूप में निष्प्रभावी कर दिया जाता है. कुत्ते को ज्ञापन देकर किसानों द्वारा झेले जा रहे हैं यूरिया संकट का कांग्रेस द्वारा मजाक उड़ाना कहा जा सकता है.
विपक्ष के रूप में कांग्रेस की भूमिका उल्लेखनीय नहीं कही जा सकती. महंगाई, बेरोजगारी और करप्शन को लेकर मीडिया में जितनी खबरें प्रकाशित होती है, उनका भी प्रॉपर उपयोग कांग्रेस नहीं कर पाती. जमीन पर से वास्तविक सच्चाई को उजागर करना तो दूर, जो तथ्य मीडिया में आ जाते हैं, उनको भी प्रॉपर ढंग से उठाया नहीं जाता.
इसे अक्षमता कहा जाएगा या सामंजस्य समझना मुश्किल होता है. मध्य प्रदेश के नेता भी पिछले चुनाव में वोट चोरी की बातें करने लगे हैं. जब पार्टी का संगठन बूथ से नहीं बल्कि ट्वीट से चलेगा तो फिर जमीन पर पब्लिक कनेक्ट धीरे-धीरे खत्म ही हो जाएगा.
कांग्रेस ने कुत्ते को ज्ञापन सौंपकर राजनीति के ‘कुत्ता काल’ का बेहतरीन अभिनय किया है. कुत्ते की वफादारी असंदिग्ध है. राजनीति से इस वफादारी की अपेक्षा है. एमपी की राजनीति में कुत्ते को सामने लाने के लिए कांग्रेस को प्रसाद जरूर मिलेगा.