‘खोटा सिक्का, खोटी नीतियां’ बजती ज्यादा हैं और चलती कम हैं. राहुल गांधी ने कांग्रेस संगठन में जान फूंकने के लिए नव सृजन कार्यक्रम लॉन्च किया..!!
ईमानदारी से काम करने वाले ऊर्जावान जिला अध्यक्ष पदों पर चयन के लिए पारदर्शी व्यवस्था की लंबी चौड़ी बातें की गयीं. आदत के मुताबिक राहुल गांधी ने संगठन सृजन कार्यक्रम को अपनी टीम के हवाले छोड़ दिया. टीम ने उनके नाम पर जिला अध्यक्षों की नियुक्तियों में न केवल पॉलिटिकल मिस्चीफ़ की बल्कि इसमें कई नेताओं द्वारा लेनदेन के आरोप भी लगाए जा रहे हैं.
जो भी जिला अध्यक्ष बनाए गए हैं, उसमें दो नाम जयवर्धन सिंह और ओमकार सिंह मरकाम ऐसे हैं, जो राज्य स्तर पर कांग्रेस के नेतृत्व की क्षमता और छवि रखते हैं. इन दोनों नेताओं को डिमॉरलाइज़ किया गया है. इनको जिला अध्यक्ष बनाकर दिग्विजय सिंह को भी राजनीतिक संदेश दिया गया है.
कमलनाथ को अध्यक्ष पद से हटाने के बाद राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में जो नेतृत्व सौंपा था, वह कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की इच्छा के विरुद्ध ही लगता था. तब से ही लगातार राज्य में कांग्रेस की गुटबंदी बढ़ती जा रही है.
राहुल गांधी ने भोपाल में ही बारात, रेस और लंगड़े घोड़े का जिक्र किया था. राज्य स्तर पर सक्रिय जिन ऊर्जावान नेताओं को जिलों में भेजा गया है, क्या उनको ही राहुल गांधी की टीम लंगड़े घोड़े के रूप में देखती है. मध्य प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की इन नियुक्तियों में सीधी कोई भूमिका नहीं हो सकती क्योंकि राहुल गांधी और उनकी टीम ने इस नव सृजन कार्यक्रम को अपनी देखरेख और नियंत्रण में पूरा किया है.
इन नियुक्तियों में एक जो स्पष्ट संदेश मिल रहा है, वह यह है कि जिन नेताओं ने दिल्ली में राहुल गांधी की टीम को मैनेज कर रखा है, उन्होंने न केवल अपने हिसाब से जिलों में नियुक्तियां करा ली हैं बल्कि अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने में भी सफलता हासिल की है.
एमपी में राजनीतिक हालात ऐसे हैं कि, आने वाले चुनाव में भी कांग्रेस की चुनावी जीत की संभावनाएं बहुत उज्ज्वल नहीं कहीं जा सकती. लेकिन राज्य कांग्रेस में जितने भी पदधारी हैं, वह अपने आपको मुख्यमंत्री का उम्मीदवार मानते हैं.
उम्मीदवार मानना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन ऐसा मानते मानते दूसरे नेता को उसमें बाधक मानकर, कमजोर करने की कोशिश करना पार्टी हित में नहीं हो सकता है. ओंकार सिंह मरकाम और जयवर्धन सिंह के मामले में ऐसा ही हो रहा है. इन दोनों नेताओं को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा था. परफॉर्मेंस की दृष्टि से जब नजर डाली जाती है, तब नए नेतृत्व पर दृष्टि जाती है.
कांग्रेस में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. पार्टी में संगठन होता ही नहीं है. इस पार्टी में यही परंपरा है, जो पद पर है और जो गांधी परिवार और उनके यहां काम करने वाली टीम को साधने में सफल है, वही सफल और प्रभावी नेता घोषित हो जाता है. जमीन पर उसकी क्या स्थिति है, उसको जानने की कांग्रेस में कोई तो हिम्मत ही नहीं कर पाता.
भोपाल में जिलाध्यक्ष रहे मोनू सक्सेना जो विभिन्न आंदोलनों में बहुत सक्रिय माने जाते हैं. यहां तक कि, उन्होंने अपनी एक आंख तक पार्टी आंदोलन में गंवाई है. विधानसभा के चुनाव में एडजस्टमेंट के चलते उन्हें पद से हटाकर दूसरे को पद दिया गया था. नव सृजन में मेरिट में उनको मौका मिलना चाहिए था, लेकिन नहीं मिल पाया. वह लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. आरोप लगा रहे हैं.
जब मेरिट की पार्टी में कोई आवश्यकता ही नहीं है. गांधी परिवार की नजर में नेता की मेरिट वही है, जो उनके साथ-साथ उनके स्टाफ और टीम की खुशामद और गिफ्ट देने में सिद्धहस्त हो. जिला अध्यक्षों की पूरी सूची संगठन सृजन की चोरी प्रदर्शित कर रही है. राहुल गांधी इलेक्शन कमीशन पर वोट चोरी का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन हलफनामा देने से बच रहे हैं. यहां तो कांग्रेस के भीतर उन्हीं के संगठन सृजन कार्यक्रम की चोरी हो गई है.
अगर इसी की जांच राहुल गांधी करा लें और कांग्रेस के संगठन को ही ईमानदारी से मजबूत कर सकें तो वोट चोरी अपने आप रुक जाएगी. जमीन पर कांग्रेस का वजूद लगातार घटता जा रहा है. जमीन पर काम करने वाला नेता कांग्रेस में पद हासिल ही नहीं कर सकता. उसके लिए तो प्रार्थना और परिक्रमा की नीति ही काम आएगी.
जिला अध्यक्षों की लिस्ट काँग्रेस में नेताओं की पट्ठेबाजी का उदाहरण है. हर नेता ने अपने-अपने इलाके में अपने पठ्ठों को बनाने में सफलता हासिल की है. मेरिट के आधार पर कोई भी चयन दिखाई नहीं पड़ता है. इन नियुक्तियों के लिए राज्य में आक्रोश प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ फूट रहा है जबकि इन नियुक्तियों की पूरी जिम्मेदारी राहुल गांधी और उनकी टीम की है.
अगर उन्होंने किसी के सुझाव पर काम किया है तब भी संगठन सृजन का उपयोग उनकी टीम ने राजनीतिक बेईमानी करने के लिए किया है. कांग्रेस को मजबूत बनाना लक्ष्य था. नया सृजन करना मकसद था लेकिन अब तो ऐसा लगता हैकि, संगठन सृजन विसर्जन बन गया. जो लोग राज्य स्तर पर पहले से ही सक्रिय है, उन्हीं को जिलों में भेज देना, क्या यह सृजन माना जाएगा.
इसका मतलब है कि कांग्रेस राज्य में नया नेतृत्व उभारने में पूरी तरह से असफल रही है. जिन विधायकों को जिला अध्यक्ष बनाया गया है, उनको अभी तक अपने विधानसभा क्षेत्र में ही विरोध का सामना करना पड़ता था. अब जिला संगठन के कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं का असंतोष झेलना पड़ेगा. जो चुनाव में पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है.
बुजुर्ग और युवा नेताओं की टकराहट इन नियुक्तियों में देखी जा सकती है. कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और राहुल गांधी के मध्य प्रदेश के समर्थकों के बीच मतभेद भी यह नियुक्तियां उजागर कर रही हैं. जो जयवर्धन सिंह राज्य स्तर पर कांग्रेस को सक्षम और प्रभावी नेतृत्व दे सकते हैं उनको पॉलिटिकल डिमोट कर जिले में भेजना भले ही पॉलिटिकल नासमझी हो, लेकिन जिन्होंने ऐसा किया है, उनके लिए तो यह उनकी बड़ी राजनीतिक सफलता मानी जाएगी.
संगठन सृजन अभियान से एक उम्मीद बनी थी कि शायद कांग्रेस मध्य प्रदेश में कुछ ईमानदारी से करना चाहती है. लेकिन इन नियुक्तियों ने बनी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. संगठन सृजन की चोरी एकदम वोट चोरी जैसा ही कांग्रेस को दुख देती रहेगी.
जब खोटा सिक्का ही चलाने की जिद है तो फिर कांग्रेस चले या ना चले, इससे गांधी परिवार को शायद फर्क नहीं पड़ता.