• India
  • Sat , Aug , 23 , 2025
  • Last Update 03:45:AM
  • 29℃ Bhopal, India

वोट चोरी में भी राहुल ले आए अडानी-अंबानी

सार

वोट चोरी के आरोपों पर राहुल गांधी और इलेक्शन कमीशन आमने-सामने हैं. राहुल गांधी लगातार आरोप लगा रहे हैं और आयोग आरोपों को झूठ बता रहा है..!!

janmat

विस्तार

    आयोग कह रहा है आरोपों में सत्यता है तो सात दिनों में हलफनामा दिया जाए. अन्यथा माना जाएगा कि आरोप झूठे हैं. राहुल गांधी वोट चोरी के अपने आरोपों को लेकर बिहार में वोट अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं. ऐसे ही आरोपों को लेकर महाराष्ट्र के चुनाव पर लगाई गई याचिका, सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई है. अदालत ने फर्जी और वोट चोरी जैसी बात अस्वीकार कर दी है. 

    कांग्रेस के वोट चोरी के आरोप जिन आधारों पर टिके हैं उनमें एक आधार सीएसडीएस के आंकड़े थे. इस संस्था द्वारा बताया गया था, कि महाराष्ट्र के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में अप्रत्याशित ढंग से वोट बढ़े या घटे हैं. बाद में सीएसडीएस द्वारा अपने डेटा को गलत मानते हुए माफी मांग ली गई है.

    यहां तक कि संस्था के डायरेक्टर के खिलाफ महाराष्ट्र में एफआईआर दर्ज हो गई है. अब यह जांच की जा रही है कि आंकड़ों में जो गलती की गई है, वह सहज थी या जानबूझकर की गई थी. कम से कम प्रोफेसर संजय कुमार ने गलती के लिए माफी तो मांगी है, लेकिन उनके डेटा का उपयोग कर कांग्रेस और राहुल गांधी ने इलेक्शन कमीशन पर वोट चोरी आरोप लगा दिया है. और अब सबूत के लिए शपथ पत्र देने से बच रहे हैं.

    ऐसा कहा जाता है कि आंकड़े झूठ नहीं बोलते लेकिन झूठ आंकड़ों के आधार पर ही तोला जाता है. यही वोट चोरी के आरोपों में भी हो रहा है.

     मतदाता सूची की किसी गड़बड़ी को वोट चोरी के रूप में प्रस्तुत करना राजनीतिक दल की सबसे बड़ी कमजोरी मानी जाएगी। हर चुनाव के पहले हर राज्य में मतदाता सूची का पुनरीक्षण होता है. अपडेशन में नाम जोड़े और हटाए जाते हैं. इलेक्शन कमीशन राज्य मशीनरी के माध्यम से इस काम को पूरा करती है. इसमें कमीशन की भूमिका सॉफ्टवेयर की होती है. हार्डवेयर तो राजनीतिक दल ही होते हैं.

    बूथ मैनेजमेंट किसी भी पार्टी का बेसिक कार्य होता है. बूथ  एजेंट मतदाता सूची अपडेशन के समय मुख्य भूमिका निभाते हैं. पहले वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट आता है, फिर उसमें गड़बड़ियों की शिकायतों के लिए टाइमलाइन दी जाती है. प्राप्त शिकायतों के निराकरण के बाद फाइनल लिस्ट पब्लिश होती है. यह सारा कार्य टोटली राजनीतिक दलों के साथ और सहयोग के साथ ही पूरा किया जाता है, जो दल संशोधन की प्रक्रिया के दौरान निष्क्रिय और कामचोर बने रहते हैं, वहीं चुनाव के परिणाम के बाद वोट चोरी जैसे आरोप लगाते हैं.

    इलेक्शन कमीशन की निष्पक्षता और नीयत पर सवाल खड़े करना पूरे देश की मशीनरी पर सवाल खड़े करना है. चुनाव आयोग राज्य की मशीनरी के माध्यम से ही निष्पक्ष चुनाव संपन्न करता है. 

    राहुल गांधी वोट अधिकार यात्रा में वोट चोरी के आरोपी में अडानी-अंबानी को भी शामिल कर लिया. वे कह रहे हैं कि पहले गरीबों का वोट काटा जाएगा, फिर राशन, पेंशन, बंद की जाएगी. फिर उनकी जमीन अडानी-अंबानी को दे दी जाएगी. 

    राहुल गांधी अपनी विरासत की ताकत का दुरुपयोग करते दिखाई पड़ते हैं. आजादी के बाद देश पर कांग्रेस ने और कांग्रेस पर गांधी परिवार ने शासन किया है. इस विरासत ने जो कुछ भी किया लेकिन इतना साफ है, कि कभी हल्की बात नहीं की गई, जो अब राहुल गांधी कर रहे है. इससे उनके व्यक्तित्व को बहुत नुकसान हो रहा है.

    जब राहुल गांधी राजनीति में आए थे तो उनका भोलापन देश को प्रभावित कर रहा था. वह खुद भी राजनीति को जहर कह रहे थे और आज बदलाव यह हुआ कि वही जहर राहुल गांधी खुद उगल रहे हैं. राजनेताओं की विश्वसनीयता वैसे भी रसातल में पहुंच गई है.

    बिना किसी तथ्य और प्रमाण के आरोप लगाना राजनीतिक फैशन बन गया है. राहुल गांधी अडानी और अंबानी का नाम अपनी सभाओं में लेने का रिकॉर्ड कायम कर चुके हैं .अब तक देश में ऐसा कोई भी नेता नहीं रहा होगा जो एक ही मुद्दे को इतनी बार उछालता रहा हो और इस पर कोई भी कानूनी लड़ाई शुरू नहीं की हो.

     राहुल गांधी मीडिया के प्लेबॉय बने हुए हैं. उनके मुद्दों में सत्यता और गंभीरता खोजनी पड़ती है, लेकिन उनकी हर बात मीडिया के लिए ब्रेकिंग न्यूज़ बनती है. इस मामले में राहुल गांधी सबसे चर्चित नेता कहे जा सकते हैं.     

    पॉलिटिकल लीडर को अपने हर एक वर्ड को ओन करने की जरूरत है. आम मतदाता तो राजनीति पर भरोसा ही नहीं करता. राजनीति उनका उपयोग करती है और आम आदमी राजनीति का उपयोग करता है.

    पॉलिटिकल लीडर, चीयर लीडर बनते जा रहे हैं. मुद्दों में गंभीरता नहीं होती है लेकिन मजमा जमा लिया जाता है. ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए लोकतंत्र की मर्यादा ब्रेक की जा रही है. राहुल गांधी के प्रशंसक भी उनके एटीट्यूड से निराश हो रहे हैं. अगर राजनीतिक लाभ की नजर से देखा जाए तो पहली बार लोकसभा में कांग्रेस को कुछ फायदा हुआ है. बाद में तो राज्यों के चुनाव में नुकसान ही दिखा है.