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एक विचार : जलवायु आपातकाल ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 07 Nov

सार

विज्ञान और जलवायु को लेकर बेहतर उपाय खोजने पर होना चाहिए पूरे विश्व का ध्यान

janmat

विस्तार

जापान, बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया, स्पेन, इटली और न्यूजीलैंड सहित 24 देशों या उनकी संसदों ने जलवायु परिवर्तन को जलवायु आपातकाल घोषित कर रखा है। दूसरे देशों पर भी ऐसी पहल करने के लिए दबाव बढ़ता जा रहा है।

जलवायु आपातकाल घोषित करने के विरोध  भी पिछले साल से शुरू हुआ जब 1,000 से अधिक वैज्ञानिकों एवं पेशेवरों ने ‘वर्ल्ड क्लाइमेट डेक्लरेशन’(डब्ल्यूसीडी) जारी कर दिया, जिसका शीर्षक दिया था ‘देयर इज नो क्लाइमेट इमरजेंसी’ अर्थात जलवायु आपातकाल की स्थिति नहीं है। इस साल अगस्त के अंत तक जिन लोगों ने इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे या कम से कम जो घोषणा के विषय से सहमत थे, उनकी संख्या बढ़कर 1,600हो गई। इनमें पांच भारत से भी हैं ।

इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन की बात से इनकार नहीं किया गया है, बल्कि इससे निपटने के तार्किक एवं वैज्ञानिक तरीकों पर जोर दिया गया है ताकि इस विषय को अनावश्यक तूल नहीं दिया जाए और लोगों में घबराहट पैदा होने से रोका जाए। पहली बात तो वैश्विक तापमान बढ़ने में केवल मनुष्यों के क्रियाकलाप ही जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि ‘प्राकृतिक एवं मानव जनित कारक भी जिम्मेदार होते हैं’।इतना ही नही वैश्विक, तापमान में बढ़ोतरी वैज्ञानिकों के अनुमान से कम रही है। डब्ल्यूसीडी का कहना है कि जलवायु नीति अधूरे प्रारूप पर निर्भर होती है, जिसके कुछ वास्तविक दोष हैं। यह भी तर्क दिया गया है कि ये रुझान इस बात की भी अनदेखी करते हैं कि कार्बन डाइऑक्साइड गैस ही अकेला दोषी नहीं है क्योंकि यह पौधों के जीवित रहने का आधार है।

डब्ल्यूसीडी की सलाह के अनुसार, ‘विज्ञान को जलवायु तंत्र की बेहतर समझ प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए, जबकि राजनीतिक स्तर पर संभावित नुकसान कम से कम रखने के लिए ध्यान देना चाहिए और इसके लिए प्रमाणित एवं किफायती तकनीक का सहारा लेकर परिस्थितियों के अनुकूलन स्वयं को ढालने की रणनीति अपनाए जाने को प्राथमिकता देना चाहिए।‘

कुछ खास बिंदुओं पर अवश्य विचार ज़रूरी है। पहली बात, सामान्य स्तर पर जलवायु आपातकाल की स्थिति पैदा नहीं हो सकती है, मगर इसका असर झेलने वाले कुछ देशों के समक्ष आपात स्थिति घोषित करने की नौबत आ सकती है। मालदीव जैसे कुछ द्वीप या बांग्लादेश के तटीय इलाके निश्चित तौर पर ऐसा करना जलवायु आपातकाल की घोषणा करना चाहेंगे मगर विभिन्न जलवायु क्षेत्रों वाले बड़े देशों को बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ढलने के साथ कार्बन उत्सर्जन घटाने पर एक साथ ध्यान देना चाहिए।दूसरी बात, भारत जैसे देश, जहां आबादी तो अधिक है मगर अमेरिका की तरह भरपूर प्राकृतिक संसाधन नहीं है, को पर्यावरण के नुकसान से जुड़े तात्कालिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारत में वायु, जल एवं धरती काफी प्रदूषित हो गए हैं और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं। शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना प्राथमिकता की सूची में बाद में भी रखा जा सकता है। हमें जलवायु परिवर्तन के बीच अनुकूलन पर ध्यान देना चाहिए न कि शून्य उत्सर्जन हासिल करने पर।

तीसरी बात, पूरे विश्व का ध्यान विज्ञान और जलवायु को लेकर बेहतर उपाय खोजने पर होना चाहिए। इस पर ज्यादातर समझदार लोग सहमत हो सकते हैं। प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा, गर्मी एवं शीतलहर और जंगल में आग आदि से प्रभावित होने वाले लोगों के लिए सक्षम आपदा-राहत प्रणाली तैयार करना आवश्यक हो गया है।