सड़कों के त्रुटिपूर्ण डिजाइन व निर्माण में चूक को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं..!!
हाल के वर्षों में भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों व एक्सप्रेस-वे आदि का आशातीत विस्तार हुआ है। सड़कों के नेटवर्क सुधार से उपभोक्ताओं के समय व धन की बचत हुई है तो उद्योग-व्यापार को भी गति मिली है, लेकिन इससे जुड़ी तमाम विसंगतियां भी सामने आई हैं। सड़कों के त्रुटिपूर्ण डिजाइन व निर्माण में चूक को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। पिछले हफ्ते मध्यप्रदेश में लगातार 40 घंटे लगे जाम से जहां हजारों लोगों को घंटों परेशान होना पड़ा, वहीं जाम में फंसकर तीन लोगों की मौत हुई है। निश्चय ही यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसको लेकर शासन-प्रशासन के साथ ही भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी एनएचएआई को गंभीरता से लेना चाहिए। उन तमाम आशंकाओं को टालना चाहिए जो भविष्य में ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति के कारक बन सकते हैं।
बहरहाल, मध्यप्रदेश की घटना को लेकर एनएचएआई की आलोचना की जा रही है। इस घटना के बारे में एनएचएआई के एक अधिकारी की संवेदनहीन टिप्पणी को लेकर भी सवाल उठे हैं। यहां तक कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी एनएचएआई के रुख को कठोर और संवेदनहीन बताया है, जो जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करने वाला है।
दरअसल, एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने एनएचएआई को दोषपूर्ण और देर से सड़क निर्माण के लिये फटकार लगायी है, जिसके कारण आगरा-मुबई राष्ट्रीय राजमार्ग के इंदौर-देवास खंड में जाम लग गया था। बताते हैं कि एनएचएआई के कानूनी सलाहकार ने इस बाबत संवेदनहीन टिप्पणी की कि लोग बिना किसी काम के घर से इतनी जल्दी क्यों निकलते हैं? इस टिप्पणी ने लोगों में आक्रोश पैदा कर दिया।
निश्चित रूप से इस दुर्घटना और हजारों लोगों के घंटों जाम में फंसे रहने के मामले में जहां एनएचएआई की तरफ से माफी मांगने की जरूरत थी, वहीं उसने दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिये दोष लोगों पर लगाते हुए असंवेदनशील बयान दे डाला। जिसके खिलाफ तल्ख प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक था। यही प्रतिक्रिया अदालत की टिप्पणी में भी झलकती है। इसमें दो राय नहीं कि अकसर बड़ी सड़कों और राजमार्ग परियोजनाओं के निर्माण के दौरान अंतहीन असुविधा भारतीय यात्रियों के लिए रोजमर्रा के अनुभव हैं। अधिकांश साइटों पर निर्माण से जुड़ी, यात्रियों के अनुकूल सर्वोत्तम परंपराओं को अपनाना और यातायात में व्यवधान को कम से कम करना सुनिश्चित नहीं किया जाता है।
निस्संदेह, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय संभाल रहे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की सक्रियता व प्रतिबद्धता की अकसर सराहना होती रहती है। वे सड़कों की गुणवत्ता और सुरक्षा मापदंडों को बढ़ाने को लेकर लगातार अभियान चलाते भी रहते हैं। हालांकि, वे भी मानते रहे हैं कि अभी सुधार की काफी गुंजाइश है।
यूँ तो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण निरंतर यातायात को सुगम मानकों के अनुरूप बनाने के लिये प्रयासरत रहता भी है। निश्चित रूप से स्थलों की स्थिति और भूमि अधिग्रहण के तमाम विवाद भी हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण काम राजमार्गों की व्यावहारिक दिक्कतों को दूर किया जाना होना चाहिए। दरअसल, योजनाओं का धरातल पर क्रियान्वयन बड़े पैमाने पर निर्माण फर्मों और ठेकेदारों के माध्यम से किया जाता है। जिसमें व्यापक अनुभव, क्षमता और नैतिकता जैसे कारक मिलकर भूमिका निभाते हैं।
निस्संदेह, काम की गुणवत्ता समस्याओं के समाधान में मददगार साबित हो सकती है। जरूरी है कि इस काम में बाह्य हस्तक्षेप राजनीतिक व अन्य स्तर पर न हो। जैसा कि हिमाचल प्रदेश में एक मंत्री पर एनएचएआई के दो अधिकारियों के साथ मारपीट का मामला प्रकाश में आया है। जिसमें मंत्री के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गई है। जिसको लेकर कई आरोप-प्रत्यारोप सामने आए हैं।
निस्संदेह, हाल के वर्षों में भारत में सड़कों का नेटवर्क काफी सुधरा है। लेकिन एनएचएआई को अपनी कार्यशैली पर पुनर्विचार करना चाहिए। जिससे भविष्य में लंबे जाम लगने और दुर्घटनाओं को टाला जा सके। निस्संदेह, देश के शहरों में आए दिन जाम लगने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। शासन-प्रशासन को इसके तार्किक समाधान की दिशा में वैज्ञानिक तरीके से गंभीरता के साथ प्रयास करने चाहिए। जाम की सूचना मिलने पर उसे खुलवाने की तत्काल पहल होनी चाहिए। यात्रियों के लिये तुरंत चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए ताकि भविष्य में जाम में फंसकर किसी की जान न जाए।