भोपाल दुनिया की अकेली ऐसी राजधानी है, जिसके डेवलपमेंट का तीन दशकों से मास्टर प्लान तक नहीं है. बिना मास्टरप्लान राजधानी विकसित हो रही है. सिस्टम आनंदित हो रहा है. बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए अभी भी भोपाल तरस रहा है..!
भविष्य का सपना जरूरी है लेकिन केवल स्वप्नजीवी व्यवस्था से पेट नहीं भर सकता. मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र के विकास का नया सपना दिखाया जा रहा है. राज्य की कैबिनेट ने इसका निर्णय लिया है. भोपाल का राजधानी क्षेत्र अब सीहोर, रायसेन, विदिशा और राजगढ़ जिले के ब्यावरा तक रहेगा.
बढ़ते शहरीकरण को देखते हुए यह विकास जरूरी है लेकिन जो सिस्टम राजधानी भोपाल में बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर पर आंखें मूंदे हुए हैं, वह इस नए सपने से भी जमीन के सौदागरों और धन प्रबंधन के मगरमच्छों को ही लाभ पहुंचाएगा. इससे भला आम लोगों को क्या लाभ होगा, यह तो राजधानी के हालात से ही समझा जा सकता है.
राजधानी के विकास के लिए भोपाल विकास प्राधिकरण काम कर रहा है और नगर निगम भी. इनकी कार्य पद्धतियां और उपलब्धियां निराशा ही पैदा करती हैं. मेट्रोपॉलिटन विकास प्राधिकरण वर्तमान विकास प्राधिकरण की ही कार्बन कॉपी बन जाएंगे. सैद्धांतिक रूप से मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र विकास सुखद प्रयास हो सकता है लेकिन राजधानी में सिस्टम के भुक्तभोगियों के अनुभव में तो यह सिस्टम के लिए ही लाभ का सौदा साबित हो सकता है.
वर्तमान पूरे राजधानी क्षेत्र में सरकार या नगर निगम की ओर से वाटर सप्लाई की व्यवस्था नहीं है. प्राइवेट कॉलोनी में ट्यूबवेल से वाटर सप्लाई हो रही है. वाटर की क्वालिटी लोगों का स्वास्थ्य खराब कर रही है. राजधानी क्षेत्र विकास की एजेंसी सीपीए को बंद कर दिया गया है. अब इसी तरह की मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र विकास की नई एजेंसी बनाई जा रही है.
पिछले दशकों में राजधानी में निजी कॉलोनियों का बड़े पैमाने पर विकास हुआ है. यह सारी कॉलोनियाँ नगर निगम में हैंडोवर करने की प्रक्रिया ही प्रारंभ नहीं हो पाई है. कई स्थान तो ऐसे हैं जहां कचरा प्रबंधन और सफाई व्यवस्था भी कॉलोनियों द्वारा ही कराई जा रही है. पानी आपूर्ति की बुनियादी जरूरत को ही सरकार और नगर निगम पूरा नहीं कर पा रही है.
झुग्गियों में टेंकरों से पानी सप्लाई होता है. जिन शहरों को मेट्रोपॉलिटन रीजन में जोड़ा जा रहा है वहां पानी की विकराल समस्या सर्वविदित है. गर्मियों में तो लंबी दूरी से ढोकर पानी लाना पड़ता है. जब सत्तर सालों में राजधानी भोपाल में सबको शुद्ध पानी उपलब्ध कराने में सरकारें असफल रही हैं तो फिर मेट्रोपॉलिटन रीजन में तो इसकी माकूल व्यवस्था की कल्पना ही की जा सकती है.
नर्मदा से पेयजल राजधानी में सप्लाई की व्यवस्था हुई, यह भी शहर के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है. सीवेज नेटवर्क भी क्षत-विक्षत है. आये दिन ऐसी खबरें आती हैं कि, पेयजल सिस्टम में सीवेज नेटवर्क मिल रहा है. वैसे तो कागज़ों पर भोपाल स्मार्ट सिटी बन चुका है. स्मार्ट सिटी के नाम पर केवल अटलपथ दिखाई पड़ता है. यह पथ भी अब स्मार्ट नहीं बचा है. इस पथ से भोपाल स्मार्ट सिटी केवल ब्यूरोक्रेट्स अवधारणा में ही बन सकता है.
टी.टी. नगर में रीडेंसीफिकेशन की स्कीम दशकों पहले चालू हुई थी, जो अभी भी अधूरी हालत में पड़ी हुई है. सारे प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हुए हैं. या तो इस योजना की प्लानिंग सही नहीं हुई थी या फिर इस योजना इंप्लीमेंटेशन में करप्शन के कारण काम करने वाले छोड़ कर भाग जाते हैं. यह मामले अदालत में पहुंच जाते हैं.
न्यू मार्केट से लगाकर माता मंदिर के बीच अब केवल खंडहर ही दिखाई पड़ते हैं. यह खंडहर सरकार ने इसलिए कराए थे कि इन परियोजना के अंतर्गत नए निर्माण होंगे. लेकिन यह सपना अब तक तो पूरा नहीं हुआ है.
राजधानी को झुग्गीमुक्त बनाने के लिए कई दशकों से योजना बनाई और क्रियान्वित की जा रही है. लेकिन झुग्गियां कम होने के बदले इनकी संख्या बढ़ती जा रही है. झुग्गियों के सौदे किए जाते हैं. इसमें राजनीति और सरकार का पूरा सिस्टम भागीदार होता है. जो पक्के मकान बनाए जाते हैं, वह भी झुग्गी मालिकों को दे दिए जाते हैं लेकिन फिर भी वह झुग्गी खाली नहीं करते.
राजधानी की हरियाली पर हमला हो रहा है. भोपाल की लाइफ लाइन बड़े और छोटे तालाब अतिक्रमण का शिकार हो गए हैं. टाइगर के इलाकों में राजनीति बिजनेस, ब्यूरोक्रेसी के लीडर अपने आशियाने बनाकर रह रहे हैं.
टाइगर सड़कों पर घूम रहे हैं. मास्टरप्लान नहीं होने से राजधानी के आसपास जिस तरह से बेतरतीब विकास हो रहा है, उससे पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है. प्रदूषण बढ़ रहा है. राजधानी की स्वच्छता पर तो कागज़ पर कुछ भी कहा जा सकता है लेकिन जमीन पर कागज की बात साबित नहीं होती. राजधानी अवैध कॉलोनियों का मानो गढ़ बन गई है.
राजधानी भोपाल में लोक परिवहन लगभग नगण्य है. रेड बसें बंद हो गई हैं और नई बसें चालू नहीं हो पाई हैं.
राजधानी के ट्रैफिक सिस्टम की सांस फूली हुई है. राजधानी के किसी भी सड़क पर पुलिस के जवान वाहनों की जांच और वसूली करते हुए देखे जा सकते हैं लेकिन अनफिट और कंडम वाहन सड़कों पर चल रहे हैं. इससे दुर्घटनाएं हो रही हैं और देखने वाला सिस्टम में कोई भी नहीं है. लोग अपनी जान गंवा रहे हैं. ट्रैफिक सिग्नल तो कब चलेंगे, कब बंद हो जाएंगे यह कोई नहीं बता सकता है.
राजधानी में दूसरे बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर का जहां तक सवाल है तो वहां स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर ने काफी विकास किया है. लेकिन यह व्यवस्था आम आदमी की सीमा के बाहर है. आयुष्मान योजना नहीं होती तो गरीब इलाज भी नहीं करा सकता है.
सम्राट विक्रमादित्य और देवी अहिल्याबाई के सुशासन, विरासत एवं विकास का नाम लेने मात्र से परिणाम नहीं मिलेंगे. यह सारी बातें केवल बातें ही रह जाती हैं. पंद्रह साल सरकार चलाने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा. इसके कारणों को समझना होगा. सुशासन और विकास की बात उनसे ज्यादा तो कोई नहीं कर सकता था. फिर भी जनता ने अस्वीकार कर दिया. भाषण को शासन समझने की गलती हर राजनीतिक दल करता है.
पहले भोपाल का मास्टर प्लान बनाना होगा, राजधानी के निवासियों को विकास के प्रति नीति और नियत का जमीन पर सबूत मिले. राजधानी में दशकों पहले से मास्टरप्लान की प्रस्तावित सड़कें बिना बने पड़ी हुई हैं. सड़कों पर झुग्गियां बसी हुई हैं. लेकिन उन्हें कोई सिस्टम हटाने को तैयार नहीं है.
मेट्रोपॉलिटन रीजन का सपना तब तक नहीं देखा जा सकता, जब तक राजधानी में बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत कर दिखाया नहीं जाता. केवल सिटी नहीं अब लोग भी स्मार्ट हो गए हैं. स्मार्ट सोचते हैं. स्मार्टली सिस्टम की पोल समझते हैं. तोल मोल कर बोलना और सपना दिखाना ही सरकारों का भविष्य तय करेगा.