42 साल की भाजपा राष्ट्र के दिल में उतर गई है, लेकिन दिमाग में द्वंद बना हुआ है| देश में चुनाव को देश के दिल का टेस्ट मानें तो भाजपा की धड़कन दिल को मजबूती के साथ चला रही है| लेकिन भाजपा को राष्ट्र के दिमाग को कंन्विस और कान्फ़ीडेंट करना बाकी है| यह काम केवल दिल, भावनाओं, धर्म और हिंदुत्व की राजनीति से नहीं बल्कि राष्ट्र और राष्ट्र के लोगों को आत्मनिर्भरता के साथ सामाजिक सौहार्द, समानता सहिष्णुता का विश्वास धरातल पर उतारने से सम्भव हो सकेगा..!
भाजपा सिद्धांतों और आदर्शों के प्रति बाकी राजनीतिक दलों से ज्यादा कमिटेड दिखती है| कई बार इतिहास में सत्ता के लिए सिद्धांत टूट चुके हैं, और शायद आगे भी टूटते रहेंगे| क्योंकि सत्ता सिद्धांत नहीं जोड़-तोड़ और गुणा भाग मांगती है| वैसे तो भाजपा आजादी के समय से ही अपनी विचारधारा की राजनीति करती रही| लेकिन उसे सफलता नहीं मिली| कुछ राज्यों में कुछ समय के लिए सत्ता तक पहुंची भाजपा की राजनीतिक ताकत राम जन्मभूमि आंदोलन से मजबूत हुयी, इस आन्दोलन का नेतृत्व पार्टी के पितृपुरुष लालकृष्ण आडवाणी ने किया था लेकिन आज भाजपा का जो स्वरूप बना हुआ है वह नरेंद्र मोदी के बिना संभव नहीं था|
भाजपा की सबसे बड़ी शक्ति राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ है| संघ ने ही हिंदुत्व के एजेंडे के तहत नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार माना था| किसी भी कार्यकर्ता आधारित पार्टी में संगठन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है| लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण लीडरशिप की क्रेडिबिलिटी होती है| वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने के बाद, देश के लोगों ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए, भाजपा के पक्ष में मतदान किया, तब से लेकर आज तक भाजपा को मिल रही हर सफलता के पीछे, देशवासियों में नरेंद्र मोदी का विश्वास ही काम कर रहा है|
मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने पार्टी कार्यकर्ताओं और देश के लोगों में ऐसी आशा और विश्वास जगाया कि भाजपा आज दिलों में राज करने लगी है| केंद्र में स्पष्ट बहुमत की सरकार के साथ ही 17 राज्यों में भाजपा और एनडीए की सरकारें काम कर रही हैं| उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारों दिशाओं में भाजपा पहुंच चुकी है| उत्तर भारत में तो भाजपा सिरमौर बन गई है| लेकिन दक्षिण भारत में अभी यह सफलता दूर है| कर्नाटक के बाद दक्षिण भारत के दूसरे राज्यों में भी भाजपा ने अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी है| दक्षिण भारत में आने वाले आगामी चुनाव में भाजपा एक गंभीर प्रतिद्वंदी के रूप में खड़ी दिखाई देगी|
तुष्टीकरण और परिवारवाद की राजनीति से कराहते भारत में भाजपा ने अपनी नीतियों और कार्यक्रमों से एक नई दृष्टि और दिशा दी है| भाजपा परिवारवाद के खिलाफ है| देश के बाकी राष्ट्रीय दल या क्षेत्रीय दल परिवारवाद की ही गिरफ्त में हैं| जहां तक तुष्टीकरण का सवाल है वह राजनीति तो किसी न किसी रूप में अभी भी चल ही रही है| किसी भी खास समुदाय को वोट के नजरिए से संतुष्ट करने के सरकारी प्रयास तुष्टीकरण ही माने जाएंगे| नरेंद्र मोदी ने अपनी योजनाओं में जाति धर्म और वर्ग का भेद नहीं रखा है| लेकिन वास्तविकता तो यह है कि राज्यों में पार्टी नेतृत्व के चयन में भी जाति धर्म और वर्ग का गुणा भाग लगाया जाता है| कोई भी नेतृत्व अगर यह ऐलान करता है कि बिना ओबीसी रिजर्वेशन के पंचायत, नगरीय निकाय चुनाव नहीं होंगे तो इसका उद्देश्य उन वर्गों का तुष्टीकरण नहीं तो क्या है?
एक भारत, श्रेष्ठ भारत का सपना कैसे पूरा होगा ?
जब राष्ट्र को राजनीतिक नजरिए से जातियों और वर्गों में बाँट कर जनाधार मजबूत करने के प्रयास किए जाएंगे| तो “एक भारत श्रेष्ठ भारत” का सपना कैसे पूरा होगा? जब भारत जातियों, धर्म और वर्गों में बंटा रहेगा तो उसमें राष्ट्र के प्रति एकीकरण की भावना कितनी मजबूत होगी? इस दिशा में भाजपा को विचार करने की जरूरत है हर काम एक ही नजरिए से किया जाए और वह है “एक भारत श्रेष्ठ भारत”, समान नागरिक संहिता, भाजपा का बहुत पुराना संकल्प रहा है, लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई कारगर काम नहीं हुआ है|
आजादी के बाद से ही भारत में सरकारी स्तर पर नागरिकों के बीच भेदभाव पूर्ण शासन प्रणाली काम कर रही है| चाहे वह शिक्षण संस्थानों के मामले में हो, मंदिर प्रबंधन के मामले में हो, अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग तरह के प्रावधान देश में चल रहे हैं| इनको खत्म करना भले ही भाजपा के लिए चुनौती हो लेकिन “एक भारत श्रेष्ठ भारत” के लिए तो समान नागरिक संहिता लाना ही पड़ेगा| राष्ट्र की दृष्टि से जनसंख्या एक बहुत बड़ा मुद्दा है| जनसंख्या पर एक नीतिगत व्यवस्था की तरफ भाजपा को बढ़ना आज समय की मांग है|
दिल में भाजपा होने के बाद भी देशवासियों के दिमाग में भाजपा सरकारों और उनकी नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में कई तरह के द्वंद विद्यमान हैं| यह अलग बात है कि भाजपा की राजनीतिक ताकत से विरोधी अंध विरोध के जरिए देश को बांटने की कोशिश करते हैं, लेकिन इस तरह की हर कोशिश को, नाकाम करना सरकार का ही दायित्व होगा|
आज देश में दो तरह के वर्ग बन गए हैं| एक “फ्री वर्ग” है, जिसे सरकार हर तरह की चीजें फ्री में दे कर अपनी पकड़ बनाने में लगी रहती है, तो दूसरा वर्ग महंगाई से त्रस्त वर्ग है, जिसे सरकार से कोई सहायता नहीं मिलती, उसे स्वयं जूझना पड़ता है| गरीब की मदद करना गलत बात नहीं है, लेकिन फ्री में सब चीजें बांटना भारतीय शक्ति को कमजोर करने जैसा है| आज देश में ऐसी नीति लाने की जरूरत है, जिसमें हर हाथ को काम देने की गारंटी हो| कोई चीज फ्री नहीं दी जाएगी, लेकिन किसी को भी काम ना मिले ऐसा नहीं होगा| व्यक्ति काम करे और अन्य चीजों की तरह समानता के साथ बाजार का उपयोग करे| सरकारें केवल उसे रोजगार दें और उसकी क्रय क्षमता बनी रहे यह सुनिश्चित करे|
फ्री पॉलिटिक्स एक नया केजरीवाल पैदा होने की भी संभावनाएं बढाती है| केजरीवाल की बढ़ती राजनीति पॉजिटिव है ऐसा नहीं लगता| यह तो राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों से निराशा की परिणीति लगती है| सरकारी पैसे से सब कुछ बांटना है तो फिर काहे का गवर्नेंस? केवल बांटना गवर्नेंस नहीं है| महंगाई का द्वंद हर नागरिक को परेशान कर रहा है| भाजपा के प्रति प्यार कहीं महंगाई के मार से प्रभावित ना हो जाए|
गुड गवर्नेंस की बातें तो बहुत सुनाई पड़ती हैं लेकिन मोदी के लेबल पर गवर्नेंस में सुधार निश्चित दिखाई पड़ता है| लेकिन राज्यों के स्तर पर तो कमोबेश वैसा ही चल रहा है जैसा दूसरी सरकारों में चलता था| भ्रष्टाचार आज बहुत बड़ी समस्या हो गई है| मध्य प्रदेश के एक अखबार में आज खबर आई है कि 1 साल में भ्रष्टाचार के मामलों में FIR की संख्या लगभग डबल हो गयी है|
भ्रष्टाचार का डोज क्यों बढ़ रहा है, इसके लिए क्या पार्टी संगठन स्तर पर शिकायतों की सुनवाई और निवारण की भाजपा ने कोई व्यवस्था की है? अगर नहीं की है तो की जानी चाहिए| राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर पर पार्टी लोकपाल बनाया जाना चाहिए, यह लोकपाल एक्सपर्ट, जुडिशियल या अन्य अनुभवी हो सकते हैं| गवर्नमेंट में गड़बड़ियों और सत्ताधारी नेताओं की शिकायत पार्टी लोकपाल को किए जाने की व्यवस्था भाजपा को आम लोगों में भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति के मसीहा के रूप में स्थापित कर सकती है|
मोदी की लीडरशिप में भाजपा ने दिलों को जीत लिया है| अगर गवर्नेंस में क्रांतिकारी बदलाव कर परंपरागत रूप से चल रही व्यवस्थाओं को धरातल पर बदलने का कार्य, भाजपा कर सके तब भारतीय राजनीति में भाजपा का मुकाबला करने की शक्ति कई दशकों तक शायद नहीं उभर पाएगी|