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डिगा विश्वास, टूटा आत्मविश्वास

सार

कांग्रेस के विधायक कमलेश शाह ने भी अपनी डीपी से कांग्रेस हटा दिया है! डीपी का यह बीज कब वृक्ष बन जाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता. डीपी से कांग्रेस हटती है, तो नई डीपी भी लगेगी. मध्य प्रदेश में तो हर दिन, सैकड़ो कांग्रेस जनों की डीपी बदलकर कमल हो रही है..!!

janmat

विस्तार

        चर्चा तो ज़ोरों पर है, कि कमलेश भी कमल के शाह बनने जा रहे हैं. कांग्रेस की चट्टानें टूटती जा रही हैं. पचास सालों से ज्यादा कांग्रेस के साथ रहने वाले वरिष्ठ नेता, जब बीजेपी ज्वाइन कर रहे हैं, तो फिर कांग्रेस के सामान्य कार्यकर्ताओं में तो भगदड़ होना स्वाभाविक है. 

      कांग्रेस भी शायद यह मान चुकी है, कि स्थितियां उसके नियंत्रण के बाहर हैं. इसलिए जो भी हो रहा है, उसे चुपचाप केवल देख रही है. ना किसी नेता या कार्यकर्ता को रोकने की कोशिश की जा रही है. ना ही कार्यकर्ताओं के सम्मान की बहाली के लिए कोई व्यवस्था परिवर्तन किया जा रहा है. कांग्रेस का राजनीतिक प्राण सूखता जा रहा है. 

      “गांधी परिवार ऑक्यूपाइड कांग्रेस से हर रोज कोई ना कोई नेता टूट रहा है”. कांग्रेस के लिए निराशा का दौर है, लेकिन ऐसे दौर पहले भी कांग्रेस के सामने आते रहे हैं. टूट का स्तर ऐसा तो पहले कभी नहीं था. कुछ ना कुछ बुनियादी कमजोरी होगी, जिसके कारण कांग्रेस में टूट का यह आलम है. कांग्रेस में टूट के विशाल वृक्ष के पीछे, वह बीज ज़रूर होगा, जो दशकों से कार्यकर्ताओं और नेताओं को उपेक्षित और अपमानित कर रहा होगा. 

       राहुल गांधी के बिना कांग्रेस ना चल सकती है और ना दूसरा कुछ सोच सकती है. राहुल गांधी स्वयं राजनीति को ज़हर मानते हैं. राजनीतिक ज़हर उनके अवचेतन में समा गया है. शायद इसी ज़हर ने पूरी कांग्रेस को जकड़ लिया है.  

      कई बार बहुत छोटी-छोटी घटनाएं इतिहास बदल देती हैं. कई महान योद्धा अवचेतन में ऐसी बातों से डरे होते हैं, जिनका सामान्य रूप से कोई मतलब नहीं है. लेकिन उनके अंदर समाए डर से ऐतिहासिक घटनाएं निर्मित हो जाती हैं. 

       नेपोलियन के बारे में ऐसा कहा जाता है, कि जब वह 6 महीने का बच्चा था, तब उसके ऊपर एक खूंखार बिल्ली ने हमला किया था. यह बहुत सामान्य घटना थी. बिल्ली को भगा दिया गया था लेकिन, बिल्ली के हमले की घटना का डर नेपोलियन के अवचेतन मन में समा गया था, जो नेपोलियन बड़े-बड़े योद्धाओं से भी नहीं डरता था, वह बिल्ली से डरता था. इतिहास इस बात का गवाह है, कि  नेपोलियन जब अपना पहला युद्ध हारा था, तो उसके पीछे बिल्ली ही थी. नेपोलियन के विरोधी ने बिल्ली से उसके डर का उपयोग युद्ध में किया. अपनी सेना के साथ बिल्लियां सामने मैदान में उतारीं. बिल्ली से डर नेपोलियन को युद्ध में हार गया. छोटे बच्चे पर बिल्ली का हमला जैसे इतिहास बदल सकता है. ऐसे ही कोई घटना कांग्रेस के साथ हो रही है.

      राहुल गांधी राजनीति से डरते हैं. राजनीति में आने से पहले जीवन की कई घटनाएं हैं, जिन्होंने उनको डरा दिया है. उसमें अदालत भी है, भ्रष्टाचार के आरोप  भी हैं, कांग्रेस नेता और कार्यकर्ताओं के धोखे भी हैं. यह सारे डर उनकी राजनीतिक चेतना को प्रभावित करते हैं. कांग्रेस सामूहिक रूप से राजनीतिक प्राण नहीं बन पा रही है.

       अगर हम अदालत की बात करें, तो कांग्रेस से जुड़े मामले, जो अदालतों में जा रहे हैं. उनमें कांग्रेस हारती है. चाहे नेशनल हेराल्ड के मामले में कांग्रेस उलझ गई हो, या इनकम टैक्स के मामले में अदालत से उसे कोई राहत नहीं मिल पा रही हो. इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए अदालत ने ही उनके निर्वाचन को अवैध घोषित किया था. इमरजेंसी लागू होने का कारण भी अदालत का यही आदेश था. 

       अदालतों पर राजनीतिक दबाव की घटनाओं पर भी पहली बार भारत के वरिष्ठ वकीलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर चिंता जताई गई. वकीलों के समूह का यह कहना है, कि न्यायपालिका पर भ्रष्टाचार और राजनीतिक मामलों में दबाव डालने का प्रयास किया जा रहा है. वकीलों के पत्र पर प्रतिक्रिया देने में पीएम नरेंद्र मोदी ने बिल्कुल देर नहीं लगाई. उन्होंने कह दिया कि डराना-धमकाना कांग्रेस की पुरानी आदत है. कांग्रेस के अवचेतन में अदालत का जो डर है, वह उनकी बुनियाद हिला रहा है. 

       पुरानी गलतियों और खामियों के जो, भी प्रकरण सरकारी जांच एजेंसी के माध्यम से अदालतों में जा रहे हैं, उनमें सब में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ रहा है. शायद इसीलिए राहुल गांधी भी सार्वजनिक सभाओं में अदालतों को भी कटघरे में खड़े करते हुए सुने जाते हैं. 

       अब जहां तक भ्रष्टाचार का मामला है, कांग्रेस के सामने भ्रष्टाचार के उभरते प्रकरण बड़ी समस्या पैदा कर रहे हैं. भ्रष्टाचार के आरोपों से कांग्रेस घायल नहीं होती तो, भ्रष्टाचार में लिप्त राजनीतिक दलों के साथ कांग्रेस राजनीतिक गठबंधन करने से परहेज करती.   

       कांग्रेस में टूट के कई कारणों में एक कारण यह भी है, कि कांग्रेस की राजनीति में भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे लोग राजनीतिक सुरक्षा के लिए दूसरी पार्टियां ज्वाइन करते हैं. ऐसा आरोप कांग्रेस द्वारा ही लगाए जाते हैं. इसका मतलब है कि कांग्रेस के नेता जो पार्टी छोड़ रहे हैं, वह सब भ्रष्टाचार में अगर लिप्त माने जाएं तो फिर, कांग्रेस की जड़े ही भ्रष्टाचार में समाई हुई मानी जाएंगी. 

       कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में टूट का सिलसिला इंदिरा गांधी के ज़माने से चल रहा है. विश्वनाथ प्रताप सिंह ने तो राजीव गांधी पर वोफोर्स घोटाले जैसे गंभीर आरोप लगाकर, उनकी सरकार को ही पलट दिया था. विश्वसनीय लोगों द्वारा समय-समय पर उठाई गई आवाजों से गांधी परिवार को हुए नुकसान का डर राहुल गांधी को कार्यकर्ताओं और नेताओं से सामान्य रिश्ते रखने से रोकता लगता है. 

       ऐसे राजनीतिक किस्से हर रोज़ सुनाई पड़ते हैं, कि राहुल गांधी ने सीनियर-सीनियर नेताओं को उपेक्षित किया है. असम के मुख्यमंत्री हेमंता विस्व सरमा ने कांग्रेस छोड़ने के लिए राहुल गांधी के राजनीतिक अहंकार और व्यवहार को ही जिम्मेदार बताया था. गुलाम नबी आज़ाद जैसे, वरिष्ठ नेता ने भी, कांग्रेस छोड़ने के लिए राहुल गांधी के व्यवहार को ही आक्षेपित किया था. 

       कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं का कांग्रेस संगठन के प्रति, विश्वास क्यों समाप्त हो गया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में, कांग्रेस केवल 52 सीटें जीत सकी. लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद पाने के लिए, संवैधानिक जरूरत के अनुरूप सदस्य संख्या भी कांग्रेस जीत नहीं सकी. 

       जनादेश ने कांग्रेस के लिए जो बीज 2019 में बोया था, वह 2024 के चुनाव में भी बीज रूप में ही दिखाई पड़ेगा. कांग्रेस अपनी सीटों की संख्या इससे ज्यादा करने में शायद ही सफल हो पाए. कांग्रेस को उम्मीद केवल दक्षिण भारत से हो सकती है. उत्तर भारत में तो कांग्रेस पार्टी नेताओं से ही खाली होती जा रही है.  

       मध्य प्रदेश अकेले में सत्रह हज़ार से ज्यादा कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. छिंदवाड़ा में तो जैसे, कांग्रेस छोड़ने की आंधी चल रही है. अब तो विधायक भी कांग्रेस से दूर जाने लगे हैं. लोकसभा चुनाव में मतदान की तारीखों तक तो, कांग्रेस में टूटने का यह सिलसिला ना मालूम, कितना आंकड़ा छू लेगा.  

      कांग्रेस लोकसभा चुनाव लड़ रही है या पार्टी के अंदर अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को भगाने की लड़ाई लड़ रही है. यह बात समझना मुश्किल है.

       राम मंदिर भी कांग्रेस का बड़ा डर साबित हुआ है. पार्टी छोड़ने वाले नेता राम मंदिर पर कांग्रेस के स्टैंड को भी हिंदुत्व विरोधी मान रहे हैं. विचारधारा और राष्ट्र के मुद्दों पर तो कांग्रेस का डर तुष्टिकरण को मजबूत कर रहा है. 

      कांग्रेस की गठबंधन की राजनीति लगभग फेल हो गई है. क्षेत्रीय दलों ने अधिकांश राज्यों में कांग्रेस को ठेंगा दिखा दिया है. क्षेत्रीय दलों ने यही स्थापित किया है, कि कांग्रेस से जुड़कर उन्हें नुकसान ही उठाना पड़ता है. जिन राज्यों में मजबूरी है, वहीं क्षेत्रीय दलों का गठबंधन कांग्रेस के साथ हो सका है.

      लोकसभा चुनाव के दौरान जब कांग्रेस में यह आलम है, तो फिर लोकसभा परिणाम के बाद तो, इसमें और तेजी आएगी. लोकसभा के परिणाम भारत की दीवार पर इबारत की तरह लिखे हुए हैं. कांग्रेस के लिए लोकसभा में संभावनाओं का सूखा ही दिखाई पड़ रहा है. 

       कांग्रेस छोड़ रहे नेताओं और कार्यकर्ताओं के कारण जब कांग्रेस पार्टी ही सिकुड़ती जा रही है, तो फिर जनता के बीच उसके विस्तार की तो कल्पना ही बेमानी है. जनता लोकसभा चुनाव के लिए जोश में है, तो कांग्रेस अपनी उदासीनता के दौर में खड़ी है. “कांग्रेस छोड़ो यात्रा रुकेगी तब, तो जनता जोड़ो यात्रा शुरू हो सकती है”.