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सिस्टम की मस्त चाल, हर साल यही हाल

सार

मौसम विभाग मानसून का अनुमान लगा सकता है। कई बार अनुमान सही साबित होते हैं कई बार गलत। मानसून में बारिश भले अनिश्चित हो लेकिन विकास की पोल खुलना सुनिश्चित है। बारिश शुरू हुई कि मीडिया में रोज़ बस्तियों के डूबने, सड़कों पर तालाब बनने और नाव चलने के साथ पुल-पुलिया टूटने की खबर दिखाई देने लगती है। कई बार तो सामान्य वर्षा में भी सड़क बह जाती है। ये हाल देख कर तो ऐसा लगता है कि बारिश के पहले कुछ काम किए ही ऐसे जाते हैं जिनका बहना तय होता है। 

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विस्तार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लोकार्पित "बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे" का एक हिस्सा बह गया। भोपाल-नागपुर नेशनल हाईवे पर मंडीदीप के पास पुल का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया। जिस तरह ये घटनाएं सामने आ रही हैं उसे देख कर तो सड़कों और पुलों की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। 

सबसे हास्यास्पद यह है कि हर साल बारिश में ऐसा ही होता है। सरकार और तंत्र मस्त चाल से चलते रहते हैं, किसी भी घटना से सबक नहीं लिया जाता। भुगतने वाले लोग भुगतते हैं और फिर सब भुला दिया जाता है। भोपाल और औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप को जोड़ने वाले पुल का टूटना बहुत गंभीर घटना है। इस हाई-वे का निर्माण हुए लंबा समय भी नहीं हुआ है। 

वैसे पिछले वर्षों में मोदी राज में राष्ट्रीय राजमार्गों का तेजी से निर्माण और सुधार हो रहा है। जहां नए मार्ग बनाए जा रहे हैं वहीं पुराने मार्गों का भी रखरखाव किया जा रहा है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी बड़े परफॉर्मर माने जाते हैं। इसके बाद भी बारिश में नेशनल हाई-वे के टूटने, बहने और पुलों के धराशाई होने के घटनाएं कम नहीं हुई हैं। 

हर साल होने वाली घटनाओं और बारिश में शहरी क्षेत्रों में होने वाले जलभराव से नुकसान न्यूनतम होना चाहिए क्योंकि सिस्टम को ऐसे इलाकों की पहले से जानकारी रहती है। राजधानी भोपाल की बात भी जाए तो कितने इलाके हैं जहां जलभराव के कारण लोगों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। अतीत से सबक लेकर सुधार और आत्म गौरव को बढ़ाने का प्रयास हमारा बुनियादी कर्तव्य है।

शायद इसी मंत्र के आधार पर हमारे मध्यप्रदेश में तो सरकार ने शहरों और गांवों का जन्मदिन मनाने की शुरुआत की है। शहर और गांव की जन्म की सुनिश्चित तारीख शायद नहीं होती फिर भी आत्मगौरव के लिए इस तरह की पहल सराहनीय ही कही जाएगी। गांव और शहरों का जन्मदिन मनाना क्यों जरूरी है? क्योंकि आयोजनों से हम अपने अतीत से जुड़ते हैं और सुखद भविष्य के निर्माण की प्रेरणा लेते हैं। 

बारिश में मौसम की सामान्य विकास त्रासदी हर तरफ घटती है। उस घटना की पिछली तिथि सबको पता होती है। पिछले साल कहां क्या हुआ था? कहां बारिश के कारण लोगों को कठिनाई हुई थी? इन तिथियों को हम याद रखें और भविष्य के लिए सबक लें तो कितना अच्छा हो, परंतु ऐसा होता नहीं है।  

प्राकृतिक आपदाएं सिस्टम के लिए तो उपहार मानी जाती हैं। राहत कार्यों में भ्रष्टाचार बहुत आम बात कही जाती है। बारिश और सड़कों का चोली दामन का साथ होता है। बारिश में जब हाई-वे की हालत ये हो रही है तो शहरी क्षेत्रों की कालोनियों के बीच की सड़कों के बारे में तो केवल कल्पना की जा सकती है। यह सड़कें तो 8 महीने तक बनती रहती हैं और 4 महीने के मानसून में खराब हो जाती हैं। 

यह क्रम लगातार चलता रहता है। पब्लिक को सही और अच्छी सड़क नसीब होना दूभर हो जाता है। शहरों के जो निचले इलाके हैं, झुग्गी-झोपड़ी हैं, वहां की हालत नारकीय हो जाती है। साथ ही एक ही बारिश में पूरी सीवेज प्रणाली ध्वस्त हो जाती है। चाहे सरकारी कालोनियां हो या प्राइवेट, पानी निकासी की समुचित और साइंटिफिक व्यवस्था कहीं नहीं दिखती है। 

देश में शहरीकरण लगातार बढ़ता जा रहा है। शहरों पर आबादी का दबाव बढ़ रहा है। सरकारों की ओर से शहरों के विकास के लिए जो प्लानिंग की जाती है, वह भी आधी-अधूरी होती है। स्मार्ट सिटी परियोजनाएं अधिकांश शहरों में ढंग से क्रियान्वित नहीं हो पाई हैं। जितने धन का इनमें उपयोग किया गया है उसकी तुलना में जन सुविधाएं हासिल नहीं हुई हैं। 

जब भी कोई बड़ी दुर्घटना होती है तो सिस्टम की औपचारिकता तुरंत अपना काम करने लगती है। सबक लेकर सुधार और सिस्टम पर जवाबदेही निर्धारित करने का काम नहीं होता। जब तक इस दिशा में गंभीरता से और ईमानदारी से प्रयास नहीं किए जाएंगे, तब तक बारिश में विकास के दावों की पोल खुलती रहेगी। आपदाएं अवसर के रूप में सिस्टम द्वारा उपयोग की जाती रहेंगी।  

प्लानिंग के साथ, निर्माण कार्यों की गुणवत्ता सबसे बड़ा मुद्दा है। आज जहां कार्यों की गति बढ़ी है वही गुणवत्ता पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है ताकि जन-धन के उपयोग से हो रहे निर्माण का समुचित लाभ आम जनता को मिल सके।