• India
  • Mon , Sep , 09 , 2024
  • Last Update 05:14:PM
  • 29℃ Bhopal, India

इमेज पर छापामार खबर, हजारों करोड़ के कई अफसर

सार

गुरिल्ला युद्ध एक विशेष तरह से युद्ध लड़ने की नीति को कहा जाता है, इसका अनुसरण ऐसे लोग करते हैं जो सामने से मुकाबला करने का साहस नहीं कर सकते हैं, आजकल तो युद्ध तकनीकी आधारित होते जा रहे हैं. इसके बावजूद सरकारी सिस्टम में कान फूंकने और विरोधी की इमेज खराब करने के लिए गुरिल्ला युद्ध सदियों से चल रहा है..!

janmat

विस्तार

मध्यप्रदेश में इन दिनों प्रिंट और सोशल मीडिया में रिटायर्ड अफसरों के नाम से कई आईएएस अफसरों और मंत्रियों के खिलाफ बाजार में घूम रहे पर्चों की चर्चा सरगर्म है। पर्चा किस रिटायर अफसर ने लिखा है इसका कोई उल्लेख नहीं है लेकिन कई अफसरों और मंत्रियों के नाम का उल्लेख करते हुए उनके द्वारा की गई करोड़ों की काली कमाई का चिट्ठा इसमें कथित रूप से उजागर किया गया है। 

वैसे तो यह सूचना का जमाना है। सही न्यूज़ के साथ फेक न्यूज़ से बाजार भरा पड़ा है। अफसरों पर केंद्रित भ्रष्टाचार का पर्चा खूब चर्चा में है। आपसी बातचीत में बिना किसी के नाम के हर आदमी पर्चों पर सूचनाओं का आदान-प्रदान करने में अनावश्यक आनंद का मजा ले-दे रहा है। कोई सूचना सार्वजनिक रूप से सामने आ जाए तब तो उस सूचना का भविष्य समाप्त हो जाता है लेकिन अगर दबे छुपे गोरिल्ला ढंग से किसी जानकारी को पर्चों के माध्यम से या किसी और माध्यम से सर्कुलेट किया जाए तो शायद उनका प्रभाव सूचना के मान्य संसाधनों से ज्यादा होता है। जितनी चर्चा अखबारों में छपी खबरों पर नहीं होती उससे ज्यादा चर्चा पर्चों पर होती है। 

मध्यप्रदेश में अफसरों, पत्रकारों और मंत्रियों से जुड़े हुए पर्चों का लंबा इतिहास है। बहुत पहले कांग्रेस की सरकार के समय पत्रकारों से जुड़ा पर्चा चर्चित हुआ था। इसमें इस तरह के तथ्य बताए गए थे कि कैसे पत्रकारों को मदद करने वाले बड़े पद पर बैठे व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को सारी कथा सुना रहे हैं। उस कथा में यह कहा गया था कि हमसे कोई मदद मांगने आता है तो हम उसकी मदद करते हैं। 

यह पर्चा लंबे समय तक मध्यप्रदेश की राजनीति में चर्चा का केंद्र बना रहा था। जिन पत्रकारों के नाम थे उनको पर्चे के कारण अनावश्यक शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। वह घटनाएं सही थीं या नहीं थी, इस पर तो कोई कुछ भी नहीं कह सकता लेकिन चटकारे लेने में कोई पीछे नहीं था। इस पर्चा कांड ने इतना गंभीर रूप ले लिया था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री को इसकी जांच सीआईडी से कराने की घोषणा करनी पड़ी थी. ऐसी चीजें चूँकि केवल इमेज खराब करने के लिए तत्कालीन उपयोग की जाती है इसलिए इनका बहुत लंबे समय तक कोई असर नहीं होता। 

प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में आजकल तो ये पर्चे बहुत अधिक चर्चा में हैं। एक पर्चा अंग्रेजी में है और दूसरा हिंदी में है। दोनों पर्चों में यह कहा गया है कि सेवानिवृत्त अधिकारी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अफसरों के भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी दी गई है। पर्चों में मंत्रियों के बारे में भी काली कमाई के उल्लेख हैं। 

पर्चा पॉलिटिक्स ही यह बताती है कि जिस भी व्यक्ति ने यह छापामार युद्ध शुरू किया है वह कितना डरपोक और भयाक्रांत है। भ्रष्टाचार की जांच के लिए सरकार की एजेंसियां काम करती हैं। खास कर आईएएस और बड़े अफसरों के लिए तो भ्रष्टाचार के मामलों में बड़ी संजीदगी और गंभीरता से कदम उठाया जाता है। आजकल तो ऐसी भी व्यवस्थाएं की गई हैं कि कोई भी व्यक्ति अगर उसके पास कोई प्रमाण है तो गोपनीय रूप से उसे भेज सकता है। कई राज्य सरकारों ने भ्रष्टाचार की सूचनाएं देने के लिए टेलीफोन नंबर तक जारी किए हैं। 

बिना किसी प्रमाण के किसी भी व्यक्ति की छवि और चरित्र पर सवाल उठाना अशोभनीय और अक्षम्य माना जाता है। किसी को भी अपने व्यक्तित्व और इमेज को बनाने में वर्षों लग जाते हैं और उसको नष्ट करने के लिए कोई बिना किसी तथ्य के किसी के बारे में कुछ भी कैसे कह सकता है? पर्चों के माध्यम से इस तरीके की घटिया प्रवृत्ति हतोत्साहित करना हर जागरुक व्यक्ति का उद्देश्य होना चाहिए। 

जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है, सिस्टम में गड़बड़ियों के खिलाफ तमाम तरह के उपकरण उपलब्ध हैं। सूचना का अधिकार भी उसी में से एक बड़ा अस्त्र है।  कोई भी पीड़ित व्यक्ति जानकारी प्राप्त कर तथ्यों के साथ विधिवत जांच एजेंसियों के सामने जा सकता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ना किसी भी नागरिक का कर्तव्य है लेकिन केवल अपनी निराशा, कुंठा और दुर्भावना को पर्चों के माध्यम से उजागर करना निसंदेह कमजोर व्यक्ति की निशानी ही कही जाएगी। 

जैसा कि पर्चों में इंगित किया गया है कि लिखने वाला व्यक्ति एक रिटायर्ड आईएएस है अगर यह मान भी लिया जाए कि यह किसी अधिकारी द्वारा ही लिखा है तो फिर तो यह ओर चिंतित करने वाला मामला है कि बड़े पद पर रहकर व्यक्ति जो मान सम्मान और मर्यादा की यात्रा कर चुका है अपने किसी दूसरे सहयोगी से इतनी दुर्भावना कैसे रख सकता है कि बिना किसी प्रमाण के उसके बारे में अनर्गल आरोप लगा सके। 

पर्चा पॉलिटिक्स इसलिए शायद ज्यादा पढ़ी जाती है क्योंकि छुपा छुपा कर सूचनाओं को आदान-प्रदान करना मनुष्य की बुनियादी कमजोरी है। आजकल खबरें इसी ढंग से फैलाई जाती हैं कि एक-दूसरे से यही कहता है ‘यार किसी को बताना नहीं’ और फिर ऐसे ही खबर धीरे-धीरे पूरे शहर में और आजकल तो ना मालूम कहां-कहां तक पहुंच जाती हैं। आजकल लोग बिना जाने हुए लोगों के बारे में धारणाएं बना लेते हैं। कई बार यह पर्चे ऐसी धारणा बनाने में आधार बन जाते हैं, जो सरासर फर्जी होते हैं। 

भोपाल में एक और पर्चा चर्चा में है। जिसमें राजधानी के पाश  इलाके में रहने वाले लोगों ने मोहल्ले की किसी महिला के संदर्भ में शिकायत भेजी है। इस शिकायत में अनर्गल ढंग से आरोप लगाए गए हैं। पर्चे के माध्यम से किसी को भी बदनाम करने का प्रयास क्षम्य नहीं हो सकता।