मध्यप्रदेश के सीधी जिले का घृणित पेशाब कांड विधानसभा में पहुंच गया है. इसके छींटे सदन को चलने नहीं दे रहे हैं. सावन के महीने में श्रद्धालु गंगाजल के कांवड़ उठाकर भगवान शिव का अभिषेक कर जहां जीवन धन्य करने में लगे हैं वहीं एमपी की सियासत पेशाब कांड पर सिमट गई है.
रावण के दस सिर जैसे सीधी पेशाब कांड के दस सिरे अब तक चर्चा में आ चुके हैं. इस कांड की जितनी परतें अब तक सामने आ चुकी हैं वह सियासी रावण चरित्र माला के अलावा कुछ नहीं कही जा सकती. हर नेता इस घटना को घृणित अपराध और मध्यप्रदेश को बदनाम करने वाली घटना तो बता रहा है लेकिन लोकतंत्र के मंदिर विधानसभा में इसकी चर्चा पर भी अड़ा हुआ है. यह बात मध्य प्रदेश का कोई नागरिक तो नहीं समझ सकता इस घटना की चर्चा से राजनेता मध्यप्रदेश का मान कैसे बढ़ाएंगे? पेशाब कांड के नाग को पोटली में कैसे बंद किया जा सकेगा? एमपी विधान सभा चुनाव तक पेशाब कांड की तेजाबी धाराएं जातिवाद, अपराध और वोट बैंक की राजनीति किसको फायदा और किसको नुकसान पहुंचाएंगे, यह तो ब्राम्हण-आदिवासी राजनीतिक अनुष्ठान के मारीच ही बता सकते हैं.
सीधी पेशाब कांड के नए-नए रहस्य सामने आ रहे हैं. पहले कांग्रेस इसके लिए भाजपा नेता और भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही थी. अब कहा जा रहा है कि घटना का वीडियो कमलनाथ सरकार के समय का है. कांग्रेस की ओर से यह भी ट्वीट किया गया है कि मुख्यमंत्री ने जिस आदिवासी को मुख्यमंत्री निवास बुलाकर पाँव प्रक्षालन किया वह वास्तविक पीड़ित नहीं है.
यद्यपि सीधी कलेक्टर द्वारा इस बात का खंडन किया गया है. उनका कहना है कि वीडियो में दिख रहा व्यक्ति वही है जिसका सीएम निवास में सम्मान किया गया है. इस घटना से पीड़ित आदिवासी की भलमनसाहत भी सियासत करने वालों को प्रभावित नहीं कर रही है. उसके ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं जिसमें वह कह रहा है कि ‘जो हो गया सो हो गया’ सरकार आरोपी को माफ कर दे. वह यही चाहता है.अगर पीड़ित आदिवासी जैसी सोच भी राजनेताओें में होती तो मध्यप्रदेश को इस घृणित घटना के दाग़ से माफ़ ज़रूर कर देते.
आदिवासी के साथ अपमान पर भी सियासत और आरोपी के खिलाफ हुई कार्यवाही पर भी सियासत. आरोपी ब्राम्हण समुदाय का है. उसके घर पर बुलडोजर क्या चला अब सियासी चंदा जोड़कर घर बनाने का प्रहसन भी रचा जाने लगा. सीधी जैसी ही शिवपुरी में घटना हुई थी. उसमें ऐसे ही वीभत्स दृश्य दिखाई दिए थे. आज विधानसभा में इन दोनों घटनाओं का जिक्र करते हुए तुष्टिकरण का रावण भी सदन तक पहुंच गया.
कांग्रेस जहां सीधी कांड की कांवड़ कंधे पर उठाए हुए सदन तक पहुंच गई है वहीं शिवपुरी की घटना पर कांग्रेस से एक आवाज भी नहीं निकली. बीजेपी इसी बात पर कांग्रेस को घेरने में लग गई. लोकतंत्र में सियासत का स्तर क्या ऐसा हो गया है कि अब मल-मूत्र पर ही चर्चा के लिए सदन का उपयोग किया जाएगा? इसी सीधी जिले में 16 फरवरी 2021 को बस हादसा हुआ था, जिसमें 54 लोगों की मौत हो गई थी. वहीं 24 फरवरी 2023 को हुए बस हादसे में 15 लोगों की मौत हो गई,
अफ़सोस कई इन हादसों पर भी इतनी सियासत नहीं हुई थी जितनी सियासत सीधी पेशाब कांड पर हो रही है. इस सियासत में कौन गलत है कौन सही है, इसको मापने का भी कोई कार्डियोग्राम यंत्र उपलब्ध नहीं है. अगर इसको वोट बैंक की पॉलिटिक्स के रूप में देखा जाए तो दोनों दल कांग्रेस और बीजेपी की नजर आदिवासी वोट बैंक पर है. बैंक की अवधारणा यह है कि खाते में जो भी जमा किया जाएगा वही आहरित किया जा सकता है. यह केवल राजनीति में ही संभव है कि जमा किया जा रहा है मल मूत्र और निकाला जा रहा है वोट.
मध्यप्रदेश में आदिवासी अत्याचार हमेशा से अधिक रिपोर्ट होते रहे हैं. इसका कारण बहुत सिंपल है कि प्रदेश में आदिवासी आबादी अधिक है. इसलिए अपराध भी अधिक रिपोर्ट होते हैं. अगर सीधी का पेशाब कांड नहीं होता तो शायद आदिवासी अत्याचार की भी याद नहीं आती. पीसीसी प्रेसिडेंट कमलनाथ के नेतृत्व में आदिवासी विधायकों के डेलिगेशन ने राज्यपाल को आदिवासी अत्याचार पर विपक्ष में रहते हुए शायद पहली बार ज्ञापन दिया है.
आदिवासी कल्याण और विकास किसी भी दल या सरकारों के भरोसे अंजाम तक पहुंचते दिखाई नहीं पड़ते. राजनीतिक दल तो अपनी उपलब्धियों और दूसरे की नाकामियों का ढिंढोरा पीटने में कोई कमी नहीं छोड़ते लेकिन सच्चाई एक जैसी ही होती है. प्राकृतिक और स्वाभाविक रूप से वक्त के साथ उत्तरोत्तर विकास के नेचुरल प्रोसेस का लाभ आदिवासियों को भी मिला है. इसमें सरकार की भी भूमिका हो सकती है लेकिन इसका सारा श्रेय सरकारों को ही नहीं दिया जा सकता.
वोट बैंक बढ़ाने का जुनून एमपी की सियासत के सिर पर नाचता दिखाई पड़ रहा है. यह अलग बात है कि इसके लिए जरिया सीधी और शिवपुरी की घटनाएं बनी हुई है. दोनों घटनाओं के सियासी धागे सिंहासन का आसन बुनने में उपयोग किये जा रहे हैं. सियासत खुद ही सब कुछ सुन रही है और खुद ही सब कुछ कह रही है. जिसको मतपेटियों तक जाना है वह तो जनधन की लूट की हिस्सेदारी में अपनी भूमिका तलाश रहा है. यह तलाश चलती ही जा रही है. सियासत जो टुकड़े डाल देती है उसका हिस्सा ही उसको मिलता है. सियासी मारीच चारों तरफ चेहरे और मुद्दे बदल कर ठगने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं.मलमूत्र का सियासी गटर सियासतदानों का सफर तो सुहाना बना सकता है लेकिन मध्यप्रदेश के मान में इससे चार चाँद कैसे लग सकेंगे?