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कुछ सीखें भगवान श्री राम से 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 01 May

सार

भारतभूमि जहां यह विभूति जन्मी वहाँ आज कुछ और ही दृश्य दिखते हैं..!!

janmat

विस्तार

अयोध्या  में राम मंदिर की पुनरस्थापना के बाद यह पहली रामनवमी थी। इस बात से कोई असहमत नहीं होगा कि श्रीराम  आदर्श राजा, आदर्श पुत्र, आदर्श भाई एवं आदर्श पति के बेमिसाल उदाहरण हैं। भारतभूमि जहां यह विभूति जन्मी वहाँ आज कुछ और ही दृश्य दिखते हैं।

आज जब हर नगर, प्रदेश और देश से प्रतिदिन महिलाओं के अपमान और उनके साथ बलात्कार की घटनाएं सुनने, देखने को मिलती हैं, ऐसे समय में भगवान श्रीराम के वे शब्द जो बाली वध के समय श्री राम  ने कहे थे बरबस याद आते हैं, ‘अनुज वधु, भगिनि सुत नारी, सुन सठ कन्या सम ए चारि, इनहिं कुदृष्टि विलोकहि जोई, ताहि वधे कछु पाप न होई।’ यह वाक्य आज के युग की विषमताओं का समाधान देने वाला है।

 भगवान राम का सारा  जीवन कल्याणकारी, श्रेष्ठ राज्य की स्थापना करने में बीता । जिस समय भगवान श्री राम का राज्याभिषेक करने की तैयारियां हो रही थीं, उसी समय उन्हें यह पता चल गया कि उनके पिता ने तो उन्हें 14 वर्ष का वनवास दिया है। मां कौशल्या से भी उन्होंने यही कहा : ‘पिता दीन मोहि कानन उनका तो जन्म ही अत्याचारियों और राक्षसों को समाप्त करने के लिए हुआ था। वनवास काल में जब उन्होंने रावण और अन्य राक्षसों द्वारा मारे गए निर्दोष ऋषि-मुनियों और नागरिकों की अस्थियों के बड़े-बड़े ढेर देेखे तो एक आदर्श महामानव और शासक की तरह यह संकल्प लिया : ‘निश्चिर हीन करहूं मही, भुज उठाई प्रण कीन, सकल मुनिन्ह के आश्रमहीं जाई जाई सुख दीन।’ 

भगवान श्री राम लंका पर विजय प्राप्त कर अपने राज्य का प्रसार करने के लिए नहीं अपितु अधर्म को मिटाकर सुशासन की स्थापना के लिए थी। रावण के भाई विभीषण को लंका का राज्य सौंपकर स्वयं 14 वर्ष के वनवास की अवधि पूरी होने के साथ ही वे अयोध्या वापस पहुंचने के लिए वचन भी पूरा किया था। आज तो शासक वर्ग के लोग अपने देश के प्रति पूर्ण कर्तव्य का पालन नहीं करते और देश छोडक़र दूसरे देशों में सुख-आराम की खोज में चले जाते हैं।

उन्होंने एक आदर्श राजा और आदर्श राज्य का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया जिसके तुल्य आज भी दूसरा कोई नहीं। तुलसीदास  लिखते हैं- ‘राम राज बैठे त्रैलोका, हर्षित भय गए सब शोका। /दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, राम राज्य काहूहिं नहीं व्यापा, सब नर करहिं परस्पर प्रीति, चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति। सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी।’ रामराज्य में महिलाएं और पुरुष सभी शिक्षित, चतुर और गुणी थे। आज यह भी सोचना है कि जिस धर्म की स्थापना हेतु भगवान श्रीराम इस संसार में आए थे और जिस अधर्म के कारण रावण वंश सहित नष्ट हुआ था भगवान श्री रामजी को अपना आदर्श मानने वाले समाज का यह कर्तव्य है कि हम उसी रास्ते पर चलें जो धर्म, सत्य और सदाचार का रास्ता भगवान श्रीरामचंद्र जी ने दिखाया था, क्योंकि वे तो इस संसार में प्रकट ही साधुओं अर्थात सज्जनों की रक्षा के लिए, दुष्टों के नाश के लिए और धर्म की स्थापना और उन्नति के लिए ही हुए थे।

तुलसीदास जी ने यह लिखा है : ‘विप्र धेनु सुर संत हित, लीन मनुज अवतार।’ आज भी हर माता राम जैसा पुत्र, प्रजा राम जैसा राजा, बेटियां रामजी जैसा पति और भाई भरत और लक्ष्मण भी राम जैसे अग्रज की ही आशा करते हैं। आइए हम संकल्प लें कि  देश भगवान श्री राम द्वारा दिखाए सन्मार्ग पर चलकर , मर्यादा पूर्ण जीवन का मार्ग भगवान श्रीरामचंद्र जी ने इस संसार को दिखाया था उस पर चलें। कोई भी आज मर्यादा पुरुषोत्तम न भी बन पाए तो भी मर्यादा मानव तो बनें।