मध्यप्रदेश विधानसभा में चुनाव अभी 11 महीने बाकी हैं। जनता को तय करना है कि अगली सत्ता मध्यप्रदेश में किस पार्टी की रहेगी? नया साल शुरू होते ही कांग्रेस ने पोस्टर में अपनी सरकार बना ली है।
कमलनाथ को मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार का पोस्टर मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया है। बिना चुनाव हुए ही कांग्रेस ने सत्ता की रेस में अपना बेड़ा पार कर लिया है। जिस पार्टी को अपने विधायकों के अंडरकरंट का अंदाजा नहीं होता, जिस पार्टी की सरकार हो उसी पार्टी के विधायक पार्टी से बगावत कर दें और मुख्यमंत्री को उसकी भनक भी नहीं लगे, जिस पार्टी के दर्जनों विधायक पार्टी लाइन से बाहर जाकर दूसरे दल के प्रत्याशी को राष्ट्रपति चुनाव में मतदान कर दें और पार्टी अध्यक्ष को उसकी खबर तक न लगे, उस पार्टी ने मध्यप्रदेश की जनता के मनोभावों को पढ़कर अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री घोषित कर दिया है।
कमलनाथ समर्थक नेता ऐसे पोस्टर-बैनर फील्ड और सोशल मीडिया में प्रदर्शित कर रहे हैं, जिसमें नए साल में नई सरकार का दावा करते हुए कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री बताया गया है। प्रदेश के हर कोने में कमलनाथ समर्थक ऐसे पोस्टर प्रदर्शित कर रहे हैं इसलिए यह माना जाना चाहिए कि यह अभियान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की सहमति से चलाया जा रहा है। तीन साल पहले जो नेता पार्टी और सरकार का भविष्य संभाल नहीं सका, जो पार्टी जनादेश से बनी सरकार नहीं चला सकी, वह पार्टी सत्ता पाने के पागलपन की सीमा तक जाकर प्रदेश के राजनीतिक वायुमंडल को प्रदूषित करने में कोई कमी नहीं छोड़ रही है।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस अजीब स्थिति में है। बगावत कांग्रेस की स्थाई पीड़ा बन गई है। राज्य नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के बीच कनेक्ट सबसे खराब दौर में पहुंच गया है। कांग्रेस अध्यक्ष समर्थकों के समूह का ही पार्टी पर कब्जा दिखाई पड़ता है। कांग्रेस एंटी इन्कम्बेंसी के भरोसे प्रदेश में सरकार बनाने का अतिविश्वास पाले हुए हैं।
विपक्ष की पार्टी के रूप में कांग्रेस की भूमिका नगण्य ही मानी जा सकती है। जनहित से जुड़े मुद्दों पर तार्किक और तथ्यों के साथ राजनीतिक वक्तव्य तक कांग्रेस की ओर से जारी नहीं किए जाते। सोशल मीडिया पर ही पार्टी की सक्रियता देखी जा सकती है। पब्लिक के बीच में बहुत सारे ऐसे मुद्दे हैं जिन पर विपक्ष के जन आंदोलन की जरूरत है लेकिन विपक्ष विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाकर भी सरकार की मदद करता दिखाई पड़ा।
लोकतंत्र में यह कल्पनातीत है कि विपक्षी पार्टी का राज्य अध्यक्ष जो विधायक भी है, वह अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा में सदन में अनुपस्थित रहे। कांग्रेस केवल 24*7 सरकार का सपना ही देख रही है। कांग्रेस शायद ऐसा मानती है कि बीजेपी की सरकार जाएगी और जनता मजबूरी में उनकी पार्टी की सरकार बनाएगी। एंटी इनकंबेंसी पर कांग्रेस का इतना अतिविश्वास जब पूरा नहीं होगा तो मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस की स्थिति यूपी और गुजरात जैसी बन सकती है।
लोकतंत्र में किसी भी पार्टी की सरकार बने, उसका दायित्व जनहित में अपने कर्तव्यों को निर्वहन करना है। प्रजातंत्र में विपक्ष की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं होती। मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस को 5 सालों में सरकार और विपक्ष दोनों के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन करने का मौका मिला। दोनों भूमिकाओं में कांग्रेस का कामकाज निराशा ही प्रदर्शित करता है। विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस यह बताने की स्थिति में नहीं है कि उसने कौन सा जन आंदोलन मध्यप्रदेश में खड़ा किया है? कितने सारे मामले आये और कांग्रेस चुप्पी साधे रही।
कांग्रेस में अंतर्विरोध साफ-साफ दिखाई पड़ता है। युवा चेहरे मन मसोसकर बुजुर्ग नेताओं की राजनीति देख रहे हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा भी मध्यप्रदेश में नेताओं और कार्यकर्ताओं में एकजुटता का संदेश देने में सफल नहीं हो पाई। कमलनाथ मध्यप्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा के प्रबंधन को सर्वाधिक सफल मानते हैं तो दिग्विजय सिंह राजस्थान में यात्रा को सबसे अधिक सफल बताते हैं। यात्रा के दौरान दोनों नेताओं के बीच मेल मिलाप की राहुल गांधी की कोशिशें रंग लाती हुई दिखाई नहीं पड़ रही हैं। कमलनाथ कांग्रेस आलाकमान से भी बड़ा व्यक्तित्व दिखाने की कोशिश करते दिखाई देते हैं।
मध्यप्रदेश जैसे राज्य के कांग्रेस अध्यक्ष ऐलान कर रहे हैं कि राहुल गांधी अगले चुनाव में पीएम उम्मीदवार होंगे। राहुल गांधी ने अभी तक कमलनाथ को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री का उम्मीदवार भी घोषित नहीं किया है। कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं ने भले उन्हें भावी मुख्यमंत्री बना दिया हो लेकिन कमलनाथ राहुल गांधी को जरूर पीएम उम्मीदवार बताकर निश्चित ही कोई अपना राजनीतिक दांव चल रहे हैं।
वहीं राहुल गांधी मध्यप्रदेश में अगली सरकार कांग्रेस की बनने का दावा कर रहे हैं। वह कह रहे हैं कि यात्रा में उन्होंने मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में और सरकार के खिलाफ अंडरकरंट देखा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का जो ओपन करंट मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार को लगा था वो न तो राहुल गांधी को दिखा और न कमलनाथ को। जिनको पार्टी का ओपन करंट नहीं दिखा अब उनको अंडरकरेंट कैसे दिख रहा है, यह बात समझी जा सकती है। राजनीति में कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ाने के लिए इस तरह के वक्तव्य उपयोगी हो सकते हैं लेकिन पार्टी सब काम धंधे छोड़कर केवल सपनों में ही सरकार बनाने में जुटी रहे तो फिर ऐसी पार्टी का भविष्य हमेशा अंधकार में ही रहता है।
चुनाव में कांग्रेस के पास अवसर है। प्रदेश में कांग्रेस मुकाबले में भी है। एंटी इनकंबेंसी का माहौल उसे ताकत दे सकता है लेकिन केवल सपने पालने से कुछ नहीं होगा। विपक्ष के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन करना होगा। सरकार के खिलाफ लड़ते हुए कांग्रेस को दिखना होगा।
अभी स्थिति यह है कि कांग्रेस जमीन पर लड़ती हुई दिखाई नहीं पड़ रही है। केवल संकल्प यात्राएं निकालने से कुछ नहीं होगा। सिर्फ कलफ लगे कुर्तों से जनता प्रभावित नहीं होगी। जनता के लिए जमीन पर लड़ाई की स्टोरी लिखनी होगी। कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश में यह चुनाव बहुत अहम और दूरगामी महत्व का है। यह चुनाव भी अगर हाथ से फिसल गया तो फिर कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश भी अगला उत्तरप्रदेश बन जाएगा। कांग्रेस के कर्तव्यनिर्वहन पर प्रदेश की निगाह है। पोस्टर सरकार के सपने से निकलकर काम करेंगे तो हालात ऐसे न होंगे।