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यूनाइटेड राजनीतिक एप्रोच से ताकतवर नया भारत आगे 

सार

देश में नेशनल चुनाव के लिए 16 से 18 महीने शेष हैं। 2024 में मोदी के मुकाबले के लिए नेशनल अल्टरनेटिव कैसा होगा? इसका स्वरूप क्या होगा? अपोजिशन यूनिटी राहुल गांधी के हाथ और साथ कितना आएगी? 2019 लोकसभा चुनाव के समय विपक्षी एकता के रास्ते में जो बाधाएं और कठिनाइयां थीं उनमें आज क्या बदलाव आ गया है..!

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विस्तार

राहुल गांधी विपक्षी दलों को यह संदेश दे रहे हैं कि केवल कांग्रेस पार्टी ही बीजेपी के खिलाफ सेंट्रल आईडियोलॉजिकल फ्रेमवर्क दे सकती है। राहुल गांधी जब 2019 में कांग्रेस के अध्यक्ष होते थे तब विपक्षी दलों को यूनाइट करने में सफल क्यों नहीं हो पाए थे? कांग्रेस पार्टी के भीतर ही क्या राहुल गांधी की सर्व स्वीकार्यता है? कांग्रेस छोड़ने वाले सभी वरिष्ठ नेताओं ने राहुल गांधी की स्टाइल ऑफ़ फंक्शनिंग की ही आलोचना क्यों की है? 

एक ताजा सर्वे में यह तथ्य उभरकर आया है कि मतदाता मोदी के मुकाबले अल्टरनेटिव के रूप में आम आदमी पार्टी को स्वीकार करते हैं। यहां तक कि कांग्रेस को मोदी का विकल्प मानने वालों की संख्या, रीजनल पार्टी को विकल्प मानने वालों से भी कम है। सर्वाधिक 31 फीसदी लोग आप को अल्टरनेटिव मानते हैं। 

ऐसे में अपोजीशन यूनिटी की संभावनाएं लगभग शून्य दिखाई पड़ती हैं। आप और रीजनल पार्टियां कांग्रेस के जनाधार में ही सेंध लगाकर खड़ी हुई हैं। ऐसे सारे दल कभी भी नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस का पुनर्जागरण हो। संभावना इस बात की है कि अगला लोकसभा चुनाव 2019 में विपक्षी दलों की स्थिति के अनुसार ही होगा। प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में बहुकोणीय मुकाबला होगा और इसका सीधा लाभ मोदी को मिलेगा। 

राजनीति संभावनाओं का खेल है। अगर यह मान लिया जाए कि विपक्ष में किसी प्रकार की एकजुटता हो भी जाये और प्रत्येक लोकसभा में बीजेपी के मुकाबले के लिए एक ही प्रत्याशी उपलब्ध हो, तब भी मोदी की संभावनाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। अपोजिशन यूनिटी पर मोदी का करिश्मा और केमिस्ट्री भारी रहेगी। ताकतवर नया भारत, यूनाइटेड राजनीतिक एप्रोच से आगे बढ़ चुका है। 

अब भारत विश्वस्तर पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है। भारत की विश्व में बढ़ती ताकत दुनिया में बसे भारतीयों और भारत में रहने वाले लोगों को प्राइड का अहसास दे रहा है। ऐसे भारत के लिए मोदी की जरूरत और भरोसा कमजोर करने का कोई भी प्रयास सफल होता फिलहाल तो नहीं दिखाई पड़ता है। 

लोकसभा चुनाव के पहले इसी साल जिन 9 राज्यों में चुनाव होना है, वहां अधिकांश राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच में मुकाबला है। इन राज्यों के चुनाव परिणाम कांग्रेस की चुनावी सफलता का संकेत करेंगे। इन राज्यों के जनादेश लोकसभा में कांग्रेस के पंख की गति मापने के लिए पर्याप्त होंगे। अपोजिशन यूनिटी पहले कभी गैर कांग्रेस के खिलाफ होती थी, जो कांग्रेस अपोजिशन यूनिटी का कारण होती थी वहीं कांग्रेस आज गैर भाजपावाद के सहारे अपोजिशन यूनिटी का प्रयास कर रही है। कांग्रेस का इतिहास अगर देखा जाए तो अपोजिशन यूनिटी को तहस-नहस करने में कांग्रेस से ज्यादा किसी राजनीतिक दल ने भूमिका नहीं निभाई है। 

राहुल गांधी नेशनल लेवल पर आईडियोलॉजिकल फ्रेमवर्क के लिए कांग्रेस को सबसे मुफीद बता रहे हैं। प्रश्न यह है कि पॉलिटिक्स में विचारधारा की क्या भूमिका और भविष्य रहा है? भारतीय राजनीति में क्या कांग्रेस ने विचारधारा को सत्ता की धारा नहीं बना दिया है? सत्ता के लिए जो धारा जरूरी है क्या सभी राजनीतिक दल उसी धारा पर नहीं चल रहे हैं? आज भारत में दो ही विचारधारा दिखाई पड़ती हैं। पहली हिंदू मुस्लिम एकता यानी मुस्लिम तुष्टिकरण की धारा और दूसरी हिंदू मुस्लिम एकता याने हिंदू संतुष्टिकरण की धारा। 

सभी राजनीतिक दल इन्हीं दो धाराओं के बीच में बंटे हुए हैं। देश में क्या बुनियादी मुद्दों पर विचारधारा का कोई प्रभाव दिखाई पड़ता है? कांग्रेस की विचारधारा प्रेम और नफरत की जो बात कर रही है, उसके पीछे केवल तुष्टीकरण पर आधारित एक बड़ी जनसंख्या को प्रभावित करने की कोशिश मात्र है। 

बीजेपी के अलावा कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दल इसी विचारधारा पर अपनी सत्ता की धारा चलाते हुए देखे जा सकते हैं। बीजेपी की तरफ से तो कई बार कई बुनियादी मुद्दों पर अपनी विचारधारा सामने रखी गई है। कोई उससे सहमत हो या असहमत हो लेकिन उनकी विचारधारा दिखाई पड़ती है। जैसे कश्मीर में धारा 370 हटाना, समान नागरिक संहिता, राम मंदिर, राष्ट्र की सुरक्षा, संस्कृति, शिक्षा, ऐतिहासिक  क्रूरताओं और वर्तमान परिस्थितियों में नवनिर्माण, गुलामी के प्रतीकों को हटाने, एनआरसी और नागरिकता कानून पर बीजेपी की विचारधारा स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक दल क्या इन सभी मुद्दों पर अपनी विचारधारा स्पष्ट कर सकते हैं?

भारत में जनसंख्या पर भी तुष्टीकरण की विचारधारा हावी दिखाई पड़ती है। कृषि के उदारीकरण के लिए बनाए गए कानूनों का भी विरोध कौन सी राजनीति विचारधारा के कारण था? राजनीति में विचारधारा की बात करना कोई मायने नहीं रख रहा है। सत्ता की धारा ही राजनीति की विचारधारा बनी हुई है। भारत की सबसे बड़ी समस्या भी यही है। बुनियादी विषयों पर यदि विचारधारा के स्तर पर राजनीतिक दलों द्वारा काम किए जाएं तो बहुत सारी राष्ट्र की समस्याओं का समाधान हो सकता है। 

मोदी से मुकाबले के लिए अपोजिशन यूनिटी अंततः मोदी को ही लाभ पहुंचाएगी। सोशल मीडिया और इंटरनेट के जमाने में आज विरोध की आवाजें बहुत तेजी से फैल जाती हैं। चाहे वह विरोध फिल्म का हो या राजनीतिक दल का हो या राजनेता का हो। फिल्मों के मामले में तो ऐसा अनुभव रहा है कि जिन फिल्मों का जितना अधिक विरोध किया गया है व्यवसायिक रूप से उन फिल्मों को उतनी ही सफलता मिली है। मोदी का व्यक्तित्व भी ऐसा ही दिखाई पड़ता है। मोदी के खिलाफ जितनी विरोध की आवाजें उठाई गई हैं उतना ही मोदी को देश का समर्थन बढ़ता गया है। 

अपोजिशन यूनिटी भी अगले लोकसभा चुनाव में इसी प्रकार से काम कर सकती है। ज्यादा संभावना इस बात की है कि यूनिटी हो ही नहीं पाएगी। अगर विपक्ष का एका हो भी गया तब भी आम चुनाव में मोदी का मुकाबला करना किसी भी पार्टी के बूते की बात नहीं दिखाई पड़ रही है। राज्य के चुनाव में बीजेपी को कहीं-कहीं झटका भी मिल सकता है लेकिन नेशनल चुनाव में मोदी को कमजोर करना फिलहाल संभव नहीं लगता। 

बीजेपी से कई क्षेत्रों में नाराजगी हो सकती है। देश में बीजेपी का जो वोट शेयर बना हुआ है उसमें पार्टी के वोट शेयर के साथ ही 10% का वोट शेयर मोदी का पर्सनल बना हुआ है। यह वोट शेयर बीजेपी को लाभ पहुंचाता है। जब 2024 का आम चुनाव चुनाव होगा तब यह वोट शेयर मोदी के लिए और भी बढ़ सकता है।