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समानता की पाठशाला में असमानता का हिजाब क्यों? चांद और सूरज पर “खोज” और लड़कियों पर पाबंदी की “सोच”!

सार

कर्नाटक के उडुपी से स्कूलों में हिजाब पहनने के सवाल पर शुरू हुआ विवाद फैलता जा रहा है। हिजाब के समर्थक आगबबूला हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई चल रही है। कोर्ट का निर्णय इस विवाद पर कानूनी स्थिति स्पष्ट करेगा।

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विस्तार

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए भी राजनीतिक दल हिजाब को अपने-अपने ढंग से आवाज दे रहे हैं। कई राज्यों में स्कूल और कॉलेजों में ड्रेस कोड की बात भी उठ रही है। हिजाब के विरोध और हिजाब के समर्थन में राष्ट्र स्तर पर बहस चालू हो गई है। 

हिजाब चेहरे और अंग को ढकने के लिए उपयोग किया जाता है। हिजाब के साथ खिजाब की भी चर्चा सामयिक है। हिजाब चेहरा और अंग ढंकने का काम करता है तो खिजाब बुढ़ापे की सफेदी को ढकने का काम करता है। दोनों ही करते हैं ढकने का काम। हम आज 21वीं सदी में जी रहे हैं। विज्ञान और तकनीकी आज हमें चांद और सूरज पर जाने के लिए सक्षम बना रही है। धार्मिक परंपरा और प्रैक्टिसेज अपनी जगह हैं, लेकिन आधुनिकता की दुनिया के मुकाबले में पिछड़ना हमारे लिए अभिशाप है। स्त्री पुरुष समानता की हकीकत आज हर क्षेत्र में हमें दिखाई पड़ती है। मजहबी प्रैक्टिसेज घर तक सीमित हो रही हैं। बेहतर प्रगतिशील और आधुनिक जीवन के लिए महिला और पुरुष मजहबी कट्टर परंपराओं के केचुल को छोड़ रहे हैं। आज कौन सा क्षेत्र है जहां मुस्लिम महिलाएं और लड़कियां बराबरी से कदमताल नहीं कर रही हैं?

 

 

भारतीय समाज के ऑपरेटिंग सिस्टम में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी कहां कम है? मॉडर्न टाइम में हर चीज़ लगातार अपडेट हो रही है। ऐसे में समय के साथ मान्यताओं, प्रथाओं को भी अपग्रेड किया जाना जरूरी है। समय के साथ नये वर्जन की ज़रूरत है|

खेल, सिनेमा, प्रशासन, राजनीति हो या न्याय का क्षेत्र, महिलाएं पुरुषों से मुकाबला ही नहीं कर रही हैं कहीं कहीं तो वे पुरुषों से आगे भी निकल गई हैं।  समाज के ऑपरेटिंग सिस्टम में भी महिलाओं ने मजबूत पकड़ बनाई है। 

भारत विविध संस्कृतियों का देश है यहां ब्लॉक, कस्बे और राज्यों के आधार पर अलग अलग पहनावे प्रचलित हैं। लोग धार्मिक, क्षेत्रीय, सांस्कृतिक, पसन्द  और फैशन  के अनुसार  वस्त्र पहनते हैं। इसका सम्मान होना जरूरी है, परन्तु पसंदगी या नापसंद समाज के ऑपरेटिंग सिस्टम में तो नहीं चल सकती| शिक्षा संस्थानों में अलग-अलग पहनावे को स्वीकार कर जाति, धर्म और आस्था के प्रतीक चिन्ह को अनुमति कैसे की जा सकती है?

हमारा देश समानता की बुनियाद पर खड़ा है| हमारी पुरातन  शिक्षा पद्धति में राजा और रंक दोनों के बच्चों को एक समान रूप से शिक्षा और पहनावे को अनुमति दी जाती थी| गुरुकुल का पहनावा सभी विद्यार्थियों के लिए एक समान होता था| 

हिजाब पर विवाद क्या जानबूझकर पैदा किया जा रहा है? निजी स्तर पर हिजाब पहनने पर ना तो कोई सरकार रोक लगा सकती है और ना लगाना चाहिए| विद्यालय और कॉलेज स्तर पर समानता के लिए यूनिफार्म का निर्धारण हमेशा से होता रहा है| आज भी जो कान्वेंट या बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूल हैं उनमें यूनिफॉर्म लागू है| उसे सभी पन्थ, मजहब और आस्थाओं के लोग स्वीकार भी करते हैं| फिर सरकारी स्कूलों में ड्रेस कोड के खिलाफ बवाल क्यों? 

अगर स्कूलों में धर्म, जाति, आस्था और रईसी का प्रदर्शन होने लगेगा तो फिर स्कूल भी राजनीति का अखाड़ा बन जाएंगे?

स्कूल सबके लिए समान हैं| स्कूलों को पद, वैभव, पन्थ, जाति मजहब, पहनावे के आधार पर प्रतिस्पर्धा में श्रेष्ठ या अलग साबित करने का स्थान नहीं बनाया जा सकता| 

जहां तक हिजाब का प्रश्न है इसे कुरान शरीफ की निषेधाज्ञा बताई जाती है| पूरी दुनिया में इस्लामी देशों में हिजाब पर या तो प्रतिबंध है, या इसे कम से कम शिक्षा संस्थानों में तो बिल्कुल ही स्वीकार नहीं किया जाता| अफगानिस्तान और ईरान जैसे मुस्लिम राष्ट्रों में हिजाब को हटाने की मांग लड़कियों द्वारा ही की जा रही है| तालिबान शासन अपने पिछले कार्यकाल में जब बुरी तरह से फ्लॉप हुआ था, तब भी महिलाओं के खिलाफ उनकी कट्टरवादी हिजाबी बुर्का संस्कृति का विरोध ही मुख्य कारण था| 

महिलाएं बराबरी के साथ पढ़ाई, लिखाई और तरक्की करना चाहती हैं| मजहबी कट्टरता वाले लोग उन्हें आगे बढ़ने से रोकने का षड्यंत्र धार्मिक निषेधाज्ञा के नाम पर करते हैं| भारत में धार्मिक परंपरा और प्रैक्टिसेज को समय-समय पर बदला गया है या छोड़ा गया है| सनातन संस्कृति में पर्दा और घुंघट प्रथा को अस्वीकार किया गया| धार्मिक नेताओं द्वारा निषेधाज्ञा को आधुनिकता के साथ जोड़ते हुए हटाना किसी भी जीवंत और प्रगतिशील समाज का पैमाना है| गर्भपात और समलैंगिकता को प्रगतिशील देशों में वैध कर दिया गया है, जबकि इसे कुछ लोग ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध मांनते हैं| सबरीमाला विवाद धार्मिक रीति रिवाज और आधुनिकता की रस्साकशी के बीच चिरस्थाई विसंगति बना हुआ था| सर्वोच्च न्यायालय ने इसका हल निकाला, मासिक धर्म की वैज्ञानिक उम्र के अनुरूप महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार करते हुए मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गयी|

धार्मिक विश्वास के नाम पर क्या हिजाब की संस्कृति लड़कियों को पीछे रखने का षड्यंत्र तो नहीं है?

खानपान और पहनावा हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है| हिजाब पर कोई रोक नहीं है| केवल शिक्षा संस्थान में ड्रेस की अनिवार्यता के कारण एक ही यूनिफार्म में सभी विद्यार्थियों को जाने की बात है| घर या बाज़ार में कोई हिजाब पहने इस पर किसी को क्या आपत्ति है? ऐसा लगता है यह विवाद अनावश्यक है और इसे जानबूझकर बढ़ाया जा रहा है| कोई भी व्यक्ति, महिला या पुरुष पहनावे से नहीं अपने पुरुषार्थ से जाना जाता है| हिजाब मिजाज नहीं बदल सकता| सोच, विचार, चिंतन और मिजाज, उदार और प्रगतिशील होगा तो व्यक्ति अपने आप चमकेगा| उस की चमक को कोई हिजाब या खिजाब ना रोक  सकता है और ना बढ़ा सकता है| आज लड़कियों में आगे बढ़ने की हिम्मत और हौसला बढ़ाने की जरूरत है, ना की ज़रूरत है  ऐसे सवाल उठाकर उन्हें पीछे धकेलने की| धार्मिक रीति रिवाज और परंपरा लड़की की गौरव और गरिमा के आगे बाधा नहीं बननी चाहिए|