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बीजेपी में सिंधिया का जोर, कांग्रेस में शोर

सार

भारत की राजनीति में आज मोदी और शाह के संकेत और इशारे बहुत मायने रखते हैं। मध्यप्रदेश में एक साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन चुनावी जमावट शुरू हो गई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 16 अक्टूबर को ग्वालियर में कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे। सूचनाओं के अनुसार अमित शाह केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पैतृक महल जयविलास पैलेस जाएंगे। अमित शाह उसी दिन भोपाल में विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे। 

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विस्तार

उज्जैन में महाकाल लोक के लोकार्पण अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ महाकाल मंदिर में ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपस्थिति ने राजनीतिक चर्चाओं को बल दिया है। उज्जैन में मध्यप्रदेश के लगभग सभी केंद्रीय मंत्री कार्यक्रम में उपस्थित थे लेकिन महाकालेश्वर मंदिर में मोदी के साथ केवल राज्यपाल और मुख्यमंत्री के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया ही नजर आ रहे थे। 

सिंधिया जब से बीजेपी में शामिल हुए हैं तब से ही ऐसी चर्चाएं चल रही हैं कि बड़ौदा राजघराने की मध्यस्थता से मोदी और शाह के सीधे निर्णय पर ही सिंधिया बीजेपी में आये हैं। गुजरात में बड़ौदा राजघराने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ घनिष्ठ और भावनात्मक रिश्ता माना जाता है।  2014 में जब मोदी काशी से लोकसभा चुनाव लड़ने पहुंचे थे तब उन्होंने जिस दूसरी सीट से चुनाव लड़ा था वो बड़ौदा थी। 

मोदी और शाह के मध्यप्रदेश दौरों में सिंधिया के महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता। सिंधिया की बगावत के कारण अपनी सरकार खोने के बाद कांग्रेस में सिंधिया पर छींटाकशी कम होती हुई नहीं दिखाई पड़ रही है। कांग्रेस का कोई भी राजनीतिक कार्यक्रम हो उसमें सिंधिया के खिलाफ बयान या वक्तव्य सामने न आए ऐसा कम ही दिखाई पड़ता है। कांग्रेस के विजयी नगरीय निकायों के जनप्रतिनिधियों की सभा में कांग्रेस के युवा नेता जयवर्धन सिंह द्वारा बिना सिंधिया का नाम लिए जिस तरह से हमला किया गया है वह कांग्रेस के भीतर सिंधिया को लेकर मचे बवाल का ही प्रतीक है। 

राजनीतिक रूप से दूसरे दल के नेता पर टिप्पणी रोज का विषय बन गई है लेकिन राजनीति में अब कलह शास्वत और सनातन हो गई है। सिंधिया कांग्रेस के लिए पनौती हैं या चुनौती, यह तो समय के साथ साबित होगा। अभी तक तो कांग्रेस की सरकार को जमीन पर लाने की चुनौती देकर सिंधिया ही मैदान में आगे दिखाई पड़ रहे हैं। 

सिंधिया राजघराने का राजनीति में बहुत पुराना नाता रहा है। विजयाराजे सिंधिया को मध्यप्रदेश में जनसंघ और बीजेपी की बुनियाद के रूप में देखा जाता है।  युवा सिंधिया की उम्र उनके हक़ में दिखाई पड़ती है। राजनीति में आने के बाद सिंधिया में बदलाव तो पहले भी देखा गया था लेकिन बीजेपी में शामिल होने के बाद उनमें जैसा बदलाव हुआ है उसे राजनीतिक हलकों में गंभीरता से लिया जा रहा है। 

सड़कों पर झाड़ू तक लगाना सिंधिया की महाराज वाली छवि से निकलने की कवायद ही कही जाती है। सिंधिया भाजपा में अब आम कार्यकर्ता की तरह आचरण करते दिखाई पड़ते हैं। कांग्रेस में रहते हुए जिन बीजेपी नेताओं के साथ उनके संबंधों में खटास मानी जा रही थी उनके साथ सिंधिया ने अपने रिश्तों को न केवल सुधारा है बल्कि उनमें बदलाव साफ दिखाई पड़ रहा है। 

कैलाश विजयवर्गीय के साथ क्रिकेट एसोसिएशन की राजनीति के कारण जो मतभेद थे वह अब मिटते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। सिंधिया ने अपने बेटे के साथ कैलाश विजयवर्गीय घर जाकर राजनीतिक संदेश ही दिया है। बीजेपी में ग्वालियर-चंबल के साथी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ घुलने मिलने के मामले में सिंधिया ने कोई कमी छोड़ी हो ऐसा लगता नहीं है। अंचल के दिग्गज नेता नरेन्द्र सिंह तोमर के साथ भी सिंधिया के रिश्तों में गर्मजोशी देखी जा रही है। 

बीजेपी में किसी भी राजनीतिक व्यक्तित्व को सफलता के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आत्मसात करने की अनिवार्यता पर भी सिंधिया आगे बढ़ते हुए नजर आते हैं। सिंधिया का पारिवारिक राजनीतिक डीएनए संघ और बीजेपी के साथ जुड़ा हुआ माना जा सकता है। कांग्रेस में गांधी परिवार के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया की करीबी सर्वविदित रही है। 

सिंधिया अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे तो सबसे पहली चुनौती उनके साथ गए विधायकों को दोबारा चुनाव जिता के लाना था। इस मामले में शिवराज और सिंधिया सफल रहे थे। उपचुनाव में तो कांग्रेस ने सिंधिया को ही मुद्दा बनाया था लेकिन कांग्रेस को सफलता नहीं मिली थी। उपचुनाव के बाद नगरीय निकाय के चुनाव हुए हैं।  इन चुनावों में कांग्रेस को  सफलता मिली है जिससे कांग्रेसी उत्साहित दिखाई पड़ते हैं। 

ग्वालियर नगर में 57 साल बाद कांग्रेस का महापौर विजयी हुआ है। इसी प्रकार मुरैना में भी कांग्रेस अपना महापौर बनाने में सफल हुई है। ग्वालियर में निगम परिषद में भले ही भाजपा को बहुमत मिला हो नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए जहां उत्साहजनक थे वही भाजपा और सिंधिया के लिए चेतावनी भरे हैं। 

कांग्रेस सिंधिया को उनके घर में ही घेरने की रणनीति पर काम कर रही है। कांग्रेस का ऐसा राजनीतिक आकलन है कि ग्वालियर-चंबल के बीजेपी नेता और कार्यकर्ता सिंधिया को शायद ही स्वीकार करेंगे। इस राजनीतिक आकलन पर कांग्रेस का ऐसा अनुमान है कि ग्वालियर-चंबल में उन्हें अगले विधानसभा चुनाव में भारी सफलता मिल सकती है। बीजेपी इस बात को लेकर सतर्क है।  

मोदी और शाह ऐसे नेता हैं जो जनता की नब्ज पर सीधी नजर रखते हैं। मोदी और शाह के जितने मध्यप्रदेश में दौरे हो रहे हैं, वे सामान्य से ज्यादा अहमियत रखते हैं। निश्चित ही इन इन दौरों को प्रदेश की सियासत की नब्ज मापने के रूप में देखा जा सकता है। 

सिंधिया को मोदी और शाह के मध्यप्रदेश दौरों में मिल रहे महत्व के संकेत निकाले जा रहे हैं। सिंधिया ने बीजेपी में अपनी स्वीकार्यता को नया आयाम देने में कामयाबी हासिल की है। शिवराज और सिंधिया के बीच में भी समन्वय देखा जा सकता है। इन दोनों नेताओं के लिए अगला चुनाव बहुत महत्वपूर्ण साबित होगा। मोदी और शाह की नजर 2024 के लोकसभा चुनावों पर भी है। इसके लिए 2023 में मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार बनाना उनका प्रयास होगा।  

ज्योतिरादित्य सिंधिया जब महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर गए थे तब लोगों को आश्चर्य लगा था। सिंधिया परिवार पर जिस तरह के आरोप लगाए जाते हैं उसके बीच रानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर पुष्पांजलि के लिए सिंधिया का जाना, उनमें आए बदलाव का प्रतीक माना जा सकता है। 

कांग्रेस भी 2023 के चुनाव जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। वैसे तो शिवराज का मुकाबला कांग्रेस के लिए बहुत कठिन दिखाई पड़ता है लेकिन सिंधिया और शिवराज की जोड़ी का मुकाबला तो कांग्रेस शायद नहीं कर पाएगी। इसी कारण सिंधिया को लेकर कांग्रेस नेताओं में बौखलाहट दिखाई देती रही है। कांग्रेस की इसी हड़बड़ी और सिंधिया को लेकर अफरातफरी पर मोदी और शाह की नजर है। 

मोदी और शाह मध्यप्रदेश में कांग्रेस को फिर से खड़े होने नहीं देना चाहते और इस काम में सिंधिया की भूमिका और जिम्मेदारी बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। गुना लोकसभा चुनाव में सिंधिया को बीजेपी के जिस प्रत्याशी ने हराया था उसके साथ भी उन्होंने अपने संबंध सामान्य कर लिए हैं। अखबारों में दोनों की मुलाकात की खबरें प्रकाशित हुई थी। 

मध्यप्रदेश की सियासत में अगले चुनाव में क्या हालात बनेंगे यह तो अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन राजनीतिक हलकों में लगभग सुनिश्चित माना जा रहा है कि अगले चुनाव तक ज्योतिरादित्य सिंधिया पर दोनों दलों का फोकस रहेगा। कांग्रेस जहां सिंधिया को उनके अपने गढ़ में फिर मात देने की कोशिश करेगी वहीं बीजेपी सिंधिया का उपयोग युवाओं में जनाधार बढ़ाने के लिए करेगी। 

मोदी और शाह की नजर में चढ़ना किसी भी नेता के लिए आसान नहीं है। यह दोनों नेता बहुत ठोक बजाकर और हर तरह से जांच परख के बाद ही किसी भी नेता को मौका देते हैं। सिंधिया अगर इस मौके और मोदी शाह के भरोसे को कायम रखने में सफल होते हैं तो मध्यप्रदेश की सियासत में लंबे समय तक उनका महत्व कायम रहेगा। इसके साथ ही कांग्रेस को सिंधिया का दर्द लंबे समय तक झेलने के लिए तैयार रहना पड़ेगा।