धर्म, मजहब, पंथ, संप्रदाय की धर्मपुस्तकों से ऐसी सारी सामग्री को हटाया जाना चाहिए, जिससे समाज में विभेद पैदा होता हो, सरकार कह सकती है कि ये धर्म में हस्तक्षेप होगा लेकिन जिससे समाज में तनाव और घृणा बढ़े उसे रोकना सरकार का काम है. इस मामले में कानूनी प्रावधानों के तहत कदम उठाने से किसी को भी बचने का प्रयास नहीं करना चाहिए..!
आजकल “हेट स्पीच” रोज़ की चीज हो गई है| पहले कभी कभार ऐसे मामले आते थे| अब हर दिन देश के कोने-कोने से ऐसी आवाजें आती हैं जिन्हें हेट स्पीच कहा जा सकता है| ऐसा किसी एक धर्म के अनुयायियों द्वारा किया जा रहा है ऐसा नहीं है सभी धर्मों के लोग बराबरी से हेट स्पीच करते पाए जाते हैं|
सर्वोच्च न्यायालय ने हेट स्पीच के मामलों में सख्त रुख लेते हुए राज्य सरकारों को इसे रोकने की हिदायत दी है| सुप्रीम अदालत ने तो यहां तक कह दिया है कि ऐसी किसी भी घटना के लिए मुख्य सचिव को जिम्मेदार माना जाएगा| अदालत का रुख सही भी है| हेट स्पीच से समाज बटता है| शांति भंग होती है| ऐसी परिस्थितियां बनने से रोकने की हर कीमत पर कोशिश होना चाहिए|
हेट स्पीच, भड़काऊ, नफरत के भाषण क्यों दिए जाते हैं? इनके कारणों को समझना और उनको दूर करना ही हेट स्पीच रोकने की दीर्घकालीन रणनीति हो सकती है| हमारे संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता है| हर व्यक्ति को अपना धर्म, धर्म ग्रंथ और धार्मिक आचरण की आजादी है|
धर्म और धार्मिक आचरण पर कोई सरकार हस्तक्षेप नहीं करती| यहीं से हेट स्पीच की जड़ शुरू होती है| देश में हिन्दू मुस्लिम के बीच ही हेट स्पीच का मामला आता है| रुचिकर या अरुचिकर विषय उपस्थित होने पर अपने अपने ज्ञानपथ से उन्हें दूर रखने की प्रेरणा से जो दुख होता है उसे घृणा कहते हैं| हेट का जन्म किसी कारण के बिना नहीं हो सकता है| हेट तो प्रतिक्रिया स्वरूप पैदा होती है|
भारत के धर्मों में मूर्ति पूजा होती है, इस्लाम में देव पूजा से घृणा बताई गई है| आजकल हिंदू साधु संतों की ओर से आने वाली हेट स्पीच इसी तरह की हिन्दू विरोधी धारणाओं के जवाब जैसा है| इस तरह का धार्मिक विश्वास ही समस्या की जड़ है| अपना धर्म मानना स्वतंत्रता है लेकिन दूसरे के धर्म को घृणास्पद बताना कहां तक सही है? इस्लाम गैर मुस्लिमों को काफिर मानता है| इस्लाम के धर्म ग्रंथों में काफिर को दंड देने की बात साफ-साफ लिखी गई है| विकिपीडिया में इस्लाम में काफिर को दंड देने के संबंध में उनके धर्म ग्रंथों के प्रावधानों को हम जैसे को तैसा कोड कर रहे हैं|
काफ़िर को दण्ड-
(१) फिर, जब पवित्र महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिकों’ (मूर्तिपूजकों) को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। ( कुरान मजीद, सूरा 9, आयत 5)
(२) जिन लोगों ने हमारी ”आयतों” का इन्कार किया (इस्लाम व कुरान को मानने से इंकार), उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं” (कुरान सूरा 4, आयत 56)|
(३) ईसाइयों और यहूदियों के साथ मित्रता मत करो (सूरा 5, आयत 51)।
(४) काफिरों को जहाँ पाओ, उनको जान से मार दो (सूरा 2, आयत 191)।
(५) ईमान वालों, अपने आस-पास रहने वाले काफिरों के साथ युद्ध करो। उनको तुम्हारे अन्दर कटुता दिखनी चाहिए। (सूरा 9, आयत 123)
इसी तरह की सैकड़ों आयतों में इस्लाम या उसके सिद्धान्तों में विश्वास न करने वालों के साथ हिंसा का उपयोग करने की सलाह दी गयी है।
अरब की धर्म पुस्तकों में मूर्ति पूजन या देवाराधन को महापातक ठहराया गया है| भिन्न-भिन्न धर्मावलम्बियों में जो परस्पर घृणा देखी जाती है वह अधिकतर ऐसे ही आरोपों के कारण होती है| एक के आचार विचार से दूसरा नफरत करता है, तब उसकी दृष्टि यथार्थ में आचार विचार पर नहीं रहती, बल्कि इसी तरह के सामान्य मूलाधारों में से किसी पर रहती है| जिससे हम ईर्ष्या करेंगे वह हमारी ईर्ष्या को देखकर हम से ईर्ष्या नहीं बल्कि घृणा करेगा| घृणा के बदले घृणा ही मिलेगी, प्रेम कहां से आएगा?
ऐसा मजहब जिसके धर्मग्रंथ दूसरे धर्मावलंबियों को काफ़िर मानता हो, जिस मजहब के अनुयायियों को दूसरे धर्म के अनुयायियों से नफरत करना सिखाया जाता है| विधर्मियों को दंड देने की शिक्षा जिस मजहब में दी जाती है| उससे देश में टकराव नहीं होगा तो क्या होगा? जिस धर्म की कई बातें मानव धर्म के खिलाफ हों? उसे रोकने के लिए 21वीं सदी में भी लोग तैयार ना हो| किसी एक समुदाय की हेट स्पीच रोकने से क्या घृणा का वातावरण समाप्त हो जाएगा?
सुप्रीम अदालत और सरकारों को यह देखने की जरूरत है कि किसी भी धर्म पुस्तक में ऐसा कोई भी कंटेंट या दिशा निर्देश यदि भड़काऊ हैं और दूसरे धर्माबलम्बियों को दंडित करने के लिए हैं तो ऐसे कंटेंट इस देश में कैसे एलाऊ किए जा सकते हैं?सर्वोच्च न्यायालय ने जैसे अजान, मस्जिदों पर लाउडस्पीकर और हिजाब के मामलों में स्पष्ट दिशा निर्देश दिए हैं, उसी तरह धर्म पुस्तकों के हेट कंटेंट पर भी दिशानिर्देशों की देश को जरूरत है|
आज देश में जो सांप्रदायिक वातावरण बना है वह स्वाभाविक नहीं बल्कि प्रतिक्रिया स्वरुप है| प्रतिक्रिया ना हो इसके लिए जरूरी है कि नफरत, भड़काऊ और हेट कंटेंट को धर्म पुस्तकों से हटाने की पहल की जाए| हेट स्पीच और “हेटमास्फियर” एक पक्षीय कार्यवाही से कैसे रोका जा सकता है?
देश में घृणा का वातावरण समाप्त करने के लिए कानूनी कार्यवाही जरूरी है| भारतीय कानून में ऐसी कोई भी लिखित सामग्री, जो दो समुदायों में विभेद, तनाव पैदा करती हो, जो नियम सम्मत नहीं हो, के लिए दंड के प्रावधान हैं| किसी भी मनुष्य को किसी भी मान्यता के आधार पर काफिर और हत्या जैसा जघन्य आपराधिक कृत्य का संदेश देने वाला कोई भी दिशा-निर्देश क्या कानून और संविधान स्वीकार कर सकता है?