मध्यप्रदेश में माफिया के कब्जे से छुड़ाई गई 23 हज़ार एकड़ जमीन की खुशखबर कानून के राज की मुहर के रूप में आई है। इस छुड़ाई गई जमीन पर गरीबों के लिए घर बनाने की शुरुआत कल्याणकारी सरकार के संकल्प को पूरा कर रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अक्सर कहते हैं कि वे अपराधियों के लिए वज्र से कठोर और ईमानदार नागरिकों के लिए फूल से भी कोमल हैं। उनका यह कथन माफियाओं के खिलाफ मध्यप्रदेश में हो रही कार्यवाही के रूप में देखा जाता है।
किसी भी लोकतांत्रिक सरकार में माफिया के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। माफिया का खात्मा सरकार की आत्मा होती है। माफिया किसी भी प्रकार का हो वह डेमोक्रेटिक सरकार पर एक धब्बे के समान होता है। सरकारी जमीनों पर कब्जा माफियाओं के लिए सबसे आसान टारगेट माना जाता है। अब शायद मध्यप्रदेश में सरकारी जमीनों पर कब्जा सबसे कठिन काम कहा जा सकता है।
शहरों में विकास और लैंड मैनेजमेंट मास्टर प्लान से नियंत्रित होता है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पिछले करीब 20 सालों से मास्टर प्लान नहीं आ पाया है। किसी भी शहर के विकास की सुर-तान मास्टर प्लान के बिना सुनियोजित और लयबद्ध नहीं हो सकती। प्रदेश के और दूसरे शहरों के मास्टर प्लान भी समय से प्रकाशित नहीं हो सके हैं।
बिना मास्टर प्लान के विकास नियोजित कैसे हो सकता है? शहरों में अवैध कॉलोनियों का विकास निश्चित ही सरकारी जमीनों पर ही होता है। जनकल्याण की दृष्टि से सरकारों को अवैध कालोनियों के नियमितीकरण का अनैतिक निर्णय लेना पड़ता है। यदि मास्टर प्लान निर्धारित अवधि में सामने आते रहें तो विकास का नियोजन सुनियोजित तरीके से हो सकेगा।
सरकार द्वारा नियोजित विकास के जरिए गरीबों के लिए घर उपलब्ध कराए जा सकते हैं। झुग्गीमुक्त आवास योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत शहरों में मकान के निर्माण हो रहे हैं। इसके बावजूद शहरों में झुग्गियों की संख्या कम नहीं हो रही। यह बात समझ से परे है।
शहरों में लगातार आबादी का दबाव बढ़ता जा रहा है। इसीलिए केंद्र सरकार द्वारा स्मार्ट सिटी योजनाएं प्रारंभ की गई हैं। इन योजनाओं का लक्ष्य था कि शहरों में बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जाए। बढ़ रही आबादी के लिए नए-नए रहवासी इलाके विकसित किए जाएं। उपनगरों का विकास किया जाए। जब शहर में मास्टर प्लान ही नहीं होगा तो यह सारे डेवलपमेंट कैसे सुनियोजित ढंग से होना संभव होगा?
मास्टर प्लान के अभाव में नई सड़कों और अधोसंरचना के दूसरे साधनों का विकास प्रभावित होता है। राजधानी भोपाल में ही होशंगाबाद रोड पर निजी कालोनियों का तेजी से विस्तार हुआ है। इसके कारण ट्रैफिक का दबाव बहुत अधिक बढ़ गया है। प्रतिदिन होशंगाबाद रोड पर ट्रैफिक जाम एक आम समस्या हो गई है। इस रोड का कोई वैकल्पिक मार्ग भी उपलब्ध नहीं है। यद्यपि लोक निर्माण विभाग द्वारा डबल डेकर एलीवेटेड रोड बनाने के लिए प्रस्ताव की चर्चा शुरू हुई है। बुनियादी बात यह है कि शहरी विकास की प्रक्रिया थोड़ा सी भी अवरुद्ध होती है तो कई गंभीर समस्याएं सामने आती हैं।
मास्टर प्लान नहीं होने से शहरों में अनियोजित विकास, यातायात की समस्या, हरित क्षेत्र की समस्याएं लगातार बढ़ती जाती हैं। आपदा प्रबंधन योजनाएं भी इससे प्रभावित होती हैं। भवनों के निर्माण में फ्लोर एरिया अनुपात का दुरुपयोग होता है। सकरी गलियां, सर्विस लाइन में बाधा, दुर्घटना संभावित क्षेत्र और आग की दुर्घटनाएं होने की समस्या बनी रहती है। शहर की सुविधा और रेगुलेशन के लिए मास्टर प्लान को वैधानिक इंस्ट्रूमेंट के रूप में देखा जाता है।
मास्टर प्लान किसी भी शहर के विकास की सबसे बुनियादी जरूरत है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजधानी भोपाल का मास्टर प्लान 2005 से नहीं बन पाया है। मास्टर प्लान नहीं आने के पीछे कहीं भूमाफिया का कोई संगठित गिरोह तो काम नहीं कर रहा है? सरकार को इस दिशा में शीघ्रता के साथ कदम उठाने की जरूरत है। मास्टर प्लान के अभाव में भूमाफिया येन-केन प्रकारेण अपने हित साधने की कोशिश में लगा रहता है। शहरी नियोजन के लिए जो सरकारी अमला जवाबदार होता है उसके द्वारा भी उचित नियोजन इसलिए संभव नहीं हो पाता क्योंकि मास्टर प्लान उपलब्ध ही नहीं होता।
मध्यप्रदेश में भू माफियाओं पर कड़ी कार्यवाही का माहौल बना हुआ है। इस माहौल को सार्थकता तभी मिलेगी जब मास्टर प्लान समय पर हासिल होगा। बिना मास्टर प्लान के अनियंत्रित विकास आकार लेगा। इसके दुष्परिणाम यह निकलते हैं कि अवैध कालोनियां विकसित होती हैं जिन्हें बाद में विकसित करना पड़ता है। शहर में बढती आबादी का दबाव अब सरकारों के लिए मास्टर प्लान लागू कर शहरी विकास के नए-नए प्रयासों की अनिवार्यता बन गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विकास के प्रति प्रतिबद्धता से यह विश्वास मजबूत होता है कि राजधानी का मास्टर प्लान भी जल्दी ही लागू हो जाएगा।