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जाती मनुष्यता की जान कहते धर्म पर कुर्बान

सार

भारत की कृपा से पाकिस्तान से निकला बांग्लादेश भारतीयों पर ही जुल्म कर रहा है. वहां सत्ता पलट, जैसे हिंदुओं की कायापलट के मकसद से किया गया है. भगवान कृष्ण के विचारों को पूरी दुनिया में फैलाने वाले इस्कॉन को प्रतिबंधित करने की मांग हो रही है..!!

janmat

विस्तार

    हिंदुओं के घर जलाए जा रहे हैं. दुकानें लूटी जा रही हैं. अस्मिता ख़तरे में डाली जा रही है. वैसे तो बांग्लादेश भारत का मित्र देश माना जाता है, शत्रुता का वर्तमान परिवेश असहनीय पीड़ा पहुंचा रहा है. वहां इस्कॉन पर कट्टरता का तूफान है, तो यहां मस्जिद में मंदिर के निशान पर विवादों का तूफान बढ़ता ही जा रहा है.

   अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बाबरी मस्जिद से शुरू हुआ विवाद अब तो संभल और अजमेर शरीफ तक पहुंच गया है. काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के विवाद तो अदालतों में कई स्टेज पर आगे पहुंच गए हैं. संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के अदालत के आदेश की कार्यवाही पर भड़का दंगा मनुष्यता की कई जानें ले चुका है. मौतों पर ना सियासी संवेदनशीलता और ना ही सामाजिक शर्म दिखाई पड़ रहा है. इसके विपरीत लाशों की राजनीति कर भविष्य के लिए बहुमत का जुगाड़ बिठाया जा रहा है. 

    जगत में सब कुछ अनिश्चित है. निश्चित है, तो केवल मृत्यु. सारी संवेदना और चिंतन इससे पार निकलने का होना चाहिए. लेकिन सारा फोकस धन, वैभव, पद, प्रतिष्ठा की भौतिक उपलब्धियों पर सिमट गया है. जिस ढंग से धार्मिक स्थलों पर विवाद बढ़ रहे हैं, वह चिंतित कर रहे हैं.

    एक दो नहीं अनेकों स्थान पर मस्जिदों में मंदिर के चिन्ह देखें और महसूस किए जा रहे हैं. इतिहास में संस्कृति के साथ छेड़छाड़ के वर्तमान स्मारक विवाद बढ़ा रहे हैं. संस्कृति और सभ्यता से जुड़े विवाद या तो आपसी सहमति से सुलझाए जा सकते हैं, या कानून के दायरे में उनका निपटारा हो सकता है.

    संभल में अदालत के आदेश पर ही जामा मस्जिद में सर्वे का काम किया जा रहा था. इसी दौरान दंगा भड़काया गया. अब तो धीरे-धीरे वीडियो फुटेज के माध्यम से बहुत सारी चीज साफ-साफ दिखाई पड़ने लगी है. साजिश के ऑडियो भी वायरल हो रहे हैं. यहां तक कि छापों में हथियार भी जब्त हो रहे हैं.

    सबसे बड़ा सवाल कि किसी भी विवाद पर आधारित कोर्ट के ऑर्डर का सम्मान किया जाएगा या भीड़ का कानून चलाने की कोशिश की जाएगी. अंततः कानून ही अंतिम फैसला करेगा. अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर ही भव्य राम मंदिर का निर्माण संभव हो सका है. 

    ऐसी मान्यता है, कि विवादास्पद स्थानों या स्ट्रक्चर पर धार्मिक पूजा-पाठ, दुआ नहीं हो सकती. जिन स्थानों पर यह विवाद बना हुआ है, उनकी वर्तमान स्थिति किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल को तोड़कर निर्मित की गई है. ऐसी मान्यता पर न्यायिक कार्यवाही कोई फैसला करती है, तो उसका सम्मान हर देशवासी का कर्तव्य है. 

     अजमेर शरीफ दरगाह पर मंदिर होने का विवाद भी अदालत में पहुंच गया है. सर्वे की मांग करने वाली याचिका पर न्यायालय में संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए गए हैं. तथ्य और प्रमाणों पर न्यायिक प्रक्रिया से ना भागने की जरूरत है, ना भड़कने की जरूरत है और ना ही भ्रमित होने की आवश्यकता है. धर्म स्वयं धारण किया जाता है. 

    बंटने और कटने के बाद ही भारत खड़ा हुआ है. बहुत लंबे समय तक अल्पसंख्यकवाद सिस्टम पर हावी रहा. इसके कारण इतिहास ऐसा बनाया गया कि बहुसंख्यकों को लेकर ऐतिहासिक गलतियां की गईं. धार्मिक कानून को संवैधानिक मान्यता देने का शूल भी बहुसंख्यकों को चुभ रहा है. यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग देश में एक समान कानून की स्थापना का ही प्रयास है.

     सिस्टम की ऐतिहासिक भूलों के कारण ऐसा माहौल बना कि बहुसंख्यकों के धर्म की बात करने वालों को हेट माँगर्स कहा जाने लगा और अल्पसंख्यकवाद के पैरोंकारों को इंटेलेक्चुअल माना जाने लगा. कोई भी प्रगतिशील धर्म बदलते वक्त के साथ अपने को परिमार्जित करता है, जो धर्म इस दिशा में काम नहीं करता, वहां स्वाभाविक रूप से कट्टरता बढ़ती है और यही कट्टरता विवाद का कारण बनती है.

    मस्जिदों में मंदिरों के निशान ढूंढने और उनको विवाद का विषय बनाने से कहीं तो रुकना पड़ेगा. जब अदालतें ऐसे मामलों पर विचार करती हैं, तब ऐसा तो माना ही जा सकता है, कि कानून सम्मत ढंग से ही ऐसे विवादों का निराकरण हो रहा होगा. ऐसा तो नहीं हो सकता कि अदालती निर्णयों को सुविधा के हिसाब से मान्यता दी जाए. धार्मिक विवाद प्रगति में बाधा बनते हैं.

    धार्मिक विवादों का राजनीति से भी नाता होता है. ऐसे विवादों को हर राजनीतिक दल बहुमत के जुगाड़ के लिए उपयोग करता है. एक तरफ कट्टरता और दूसरी तरफ सहिष्णुता एक सीमा के बाद टकराहट तो पैदा ही करती है.

    हिंदू धर्म के देवी-देवता और प्रतीकों पर तो तरह-तरह की टिप्पणियां सामने आती हैं. फिर भी इस धर्म की सहिष्णुता विचारविमर्श से मामलों को सुलझाती है. लेकिन दूसरी तरफ धार्मिक टिप्पणी पर तलवारों से गला काटने करने की घटनाएं भी दिखाई पड़ती हैं. बांग्लादेश जैसी घटनाओं से भारत में भी घबराहट बढ़ती है. 

    विभिन्न धर्मों की जनसंख्या परिस्थितियों को बदलती है. शायद भारत में हिंदुओं और मुसलमानों की जनसंख्या में संतुलन को इसीलिए बहुत गंभीरता से लिया जाता है. मुस्लिम बहुल्य देशों में हिंदुओं के साथ आमतौर पर ऐसा ही व्यवहार हुआ है, जैसा अभी बांग्लादेश में हो रहा है. दूसरे देशों की ऐसी घटनाएं समुदायों के बीच संतुलन को बिगाड़ती हैं. सुरक्षा की भावनाओं को खंडित करती हैं और सुरक्षा के लिए सियासी एकजुटता के साथ ही एक हैं तो सेफ हैं, की सोच को प्रोत्साहित करती हैं.

    अस्तित्व का पंचतत्व पृथ्वी, जल, अग्नि आकाश और वायु ना हिंदू है ना मुस्लिम है. इन पांच तत्वों में प्रदूषण हर शरीर भोगता है. खुद के मालिक बनने की कोशिश धर्म है और दूसरों पर मालकियत जमाने की कोशिश सियासत है. सियासत ही धार्मिक विवादों की जड़ लगती है.

    धर्म के नाम पर मनुष्यता की जाती जान को धर्म के लिए कुर्बान होना कैसे माना जा सकता है. सबसे बड़ा मंदिर-मस्जिद हम खुद हैं. ऐसी सोच ही धार्मिक विवाद ख़त्म कर सकते हैं. अन्यथा हम समाप्त हो जाएंगे और विवाद चलते रहेंगे.