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कमलनाथ की इस यात्रा के पीछे कई मोड़ हैं और आगे भी...!

आशीष दुबे आशीष दुबे
Updated Tue , 08 Dec

सार

जो कमलनाथ कुछ घंटे पहले तक कांग्रेस की विपत्ति हो गए थे..अब संपत्ति हो गए..!! 

janmat

विस्तार

वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ की कांग्रेस से भाजपा की तरफ और भाजपा से कांग्रेस की तरफ आने की तथ्य-कथ्य यात्रा जाहिर तौर पर भले ही पांच या छह दिन का 'आयोजन' रही, लेकिन इस कई मोड़ हैं और संभवतः आगे भी आएं? जो कमलनाथ कुछ घंटे पहले तक कांग्रेस की विपत्ति हो गए थे और अब संपत्ति हो गए हैं। वे दिल्ली में अपने कोप-भवन में बैठकर श्रीराम नाम वाले झंडे से कितने संदेश देने की कोशिश करते रहे, यह उनकी छटपटाहट भी माना जा सकता है। 

यह झंडा कभी चढ़ता कभी उतरता रहा, लेकिन माना जा सकता है कि नाथ को अपना इकबाल फिर बुलंद करने के लिए पार्टी के भीतर ही नई शुरूआत करना होगी। उन्हें हमेशा की तरह अ-संदिग्ध बना रहना होगा।

फिलहाल तो नाथ खेमे ने यह कहकर उस अध्याय को बंद कर दिया है, कि नाथ कांग्रेस पार्टी में ही हैं, उन्होंने कहीं जाने की बात कब कही, या नाथ ने ही कहा कि जब कुछ होगा तो सबसे पहले आपको बताऊंगा..। मगर इस जवाब पर कई सवाल अभी भारी है, यानि जब कुछ था ही नहीं तो नाथ अचानक दिल्ली क्यों पहुंचे, उनके समर्थक क्यों दिल्ली-कूच करने लगे, बयान क्या कहते रहे तथा विधायक दिल्ली में क्यों इकट्ठा हुए? 

पार्टी अंदरखानों की मानें तो कमलनाथ और उनके दिल्ली दरबार के बीच विधानसभा चुनाव के बीच ही एक खाई खुद चुकी थी। नाथ के कुछ ऐसे कदम (निर्णय) थे, जो हाइकमान को रास नहीं आ रहे थे और हाइकमान ने कुछ ऐसा किया था कि नाथ को नागवार था। फिर नतीजों ने सारी कसर पूरी कर दी, नाथ का पद व रुतबा जाता रहा।

बताया जाता है कि हाइकमान के भेजे दूतों की भोपाल में ऐन चुनाव के पहले फजीहत हुई, और कथित रूप से वे बेघर हुए, यह कई दुरभिसंधियों की तरफ इशारा करती हैं। बाद में पार्टी के एक प्रवक्ता ने कई परोक्ष इशारे भी किए, नाथ नाराज हुए  और हाइकमान 'तटस्थ' रहा। इसके बाद नाथ चुनाव होते ही 'बाहर' चले गये। हालाकि यह बातें अब के बीते समय व हिस्सा व किस्सा हैं। कांग्रेस व नाथ के सामने अब एकदूसरे पर पुराना राब्ता व ऐतबार बनाने का वक्त है। 

जहां तक भाजपा की नाथ में 'रूचि' की बात है तो माना जा रहा है कि वह लोकसभा-लाभ का रिस्क लेती भी तो तब जब नाथ भी सिंधिया से 'बड़ा शो' करें। लेकिन नाथ खेमे के नेता विधायक आगे-पीछे होते रहे। संभवताः नाथ को लेकर ऐन वक्त फाइल बंद होने का किस्सा उन बयानों के इर्दगिर्द भी घूमता है, जिसमें मप्र में एक भाजपा नेता ने 'नाथ के लिए दरवाजे बंद', का बयान दिया, क्या यह मप्र भाजपा की भावना की अभिव्यक्ति थी, या हाइकमान उनसे कुछ बुलवाना चाहता था? 

दूसरी भाजपा नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा की नाराजी काबिलेगौर रही। उन्होंने सिख नरसंहार का जिक्र करके कहा कि सिख विरोधी दंगों के आरोपी लिए भाजपा में कोई जगह नहीं है। लिहाजा यह भी माना जा सकता है कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सिख भावना व पंजाब को ध्यान में रखकर इस फाइल को बंद किया।

शायद सभी बातें हमेशा अनुत्तरित रहें, फिलहाल कैफी आजमी की यह लाइनें नाथ के प्रति 'दोनों पार्टी तरफ' के रुख को रेखांकित करती है- 

'मैं यह सोचकर उसके दर से उठा था कि वह रोक लेगी मना लेगी मुझको,,,कदम ऐसे अंदाज से उठ रहे थे कि आवाज देकर बुला लेगी मुझको,, कि उसने रोका न मुझको मनाया न दामन ही पकड़ा न मुझको बिठाया। मैं आहिस्ता आहिस्ता चलता ही आया ।