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 पार्टियों को बहुत कुछ सिखा गया यह चुनाव

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 20 Jan

सार

मधुसूदन मिस्त्री ने कल घोषणा की कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में कुल 9385 वोट पड़े जिनमें से वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को 7897 वोट मिले और थरूर को 1072 वोट मिले, वहीं 416 वोट अमान्य करार दिये गए..!

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विस्तार

प्रतिदिन विचार-राकेश  दुबे

20/10/2022

और कांग्रेस ने अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन ही लिया | चुनाव को लेकर अक्सर आलोचना  की शिकार कांग्रेस ने भाजपा सहित अन्य दलों को आईना दिखाया है, जिनमें राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के नाम पर अक्सर मनोनयन ही होता है | पार्टी में भीतरी प्रजातंत्र के नाम पर खेमे –गुट, बनते-बिगड़ते रहते हैं | शिव सेना का उदहारण ताजा और सामने हैं | ख़ैर !कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव में हार गए हैं, लेकिन इससे पहले 2000 और 1997 में हुए पार्टी के शीर्ष पद के दो चुनावों में पराजित होने वाले प्रत्याशियों से अधिक वोट हासिल हुए हैं | मधुसूदन मिस्त्री ने कल घोषणा की कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में कुल 9385 वोट  पड़े जिनमें से वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को 7897  वोट मिले और थरूर को 1072 वोट मिले, वहीं 416  वोट अमान्य करार दिये गए। 

वैसे तो देश में कांग्रेस का मुकबला अपने को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाली भाजपा से हैं | भाजपा ने भी पिछले ही दिनों ‘उपयुक्तता’ के पैमाने को ध्यान में रखकर अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यकाल को बढ़ाया है |कांग्रेस के इस चुनाव से  भाजपा और उसके पैतृक संगठन को भी इस बारे में विचार करना चाहिए,क्योंकि देश की  आम जनता की अपेक्षा राजनीतिक दलों से सदैव पारदर्शिता की रही है, जो सही भी है |

कहने को भाजपा जिस पैतृक सन्गठन के ‘आदेश और आज्ञापालन’ की संस्कृति पर चलती है उसका कुनबा बड़ा है, परन्तु हर सन्गठन का पहला मन्त्र  ‘गोपनीयता’ है | इस कुनबे में 18  मुख्यमंत्री,29  राज्यपाल, और विभिन्न संगठनों में कार्यरत 15 करोड़ स्वयंसेवक हैं | पारदर्शिता और प्रजातांत्रिक व्यवहार की आवाज हर तरफ से आ रही  है |

कांग्रेस ने रास्ता दिखाया है, चुनाव के नाम पर ही सही , फ्रंटल संगठनों के प्रमुख, विभागों के प्रमुख, प्रकोष्ठ और सभी आधिकारिक प्रवक्ता “के लिए या उसके खिलाफ” प्रचार नहीं किया । एआईसीसी महासचिव/प्रभारी, सचिव, संयुक्त सचिव, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, कांग्रेस विधायक दल के नेता, फ्रंटल संगठनों के प्रमुख, विभागों के प्रमुख, प्रकोष्ठ और सभी आधिकारिक प्रवक्ता ने जाहिरा तौर पर “के लिए या उसके खिलाफ प्रचार नहीं” किया । काश देश के सभी दलों में चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी होती ?

वैसे तो देश में कांग्रेस का मुकबला अपने को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाली भाजपा से हैं | भाजपा ने भी पिछले ही दिनों ‘उपयुक्तता’ के पैमाने को ध्यान में रखकर अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यकाल को बढ़ाया है |कांग्रेस के इस चुनाव से  भाजपा और उसके पैतृक संगठन को भी इस बारे में विचार करना चाहिए,क्योंकि देश की आम जनता की अपेक्षा राजनीतिक दलों से सदैव पारदर्शिता की रही है, जो सही भी है |

भाजपा जिस पैतृक सन्गठन के ‘आदेश और आज्ञापालन’ की संस्कृति पर चलती है उसका कुनबा बड़ा है, परन्तु हर सन्गठन का पहला मन्त्र  ‘गोपनीयता’ है | इस कुनबे में 18  मुख्यमंत्री,29  राज्यपाल, और विभिन्न संगठनों में कार्यरत 15 करोड़ स्वयंसेवक हैं | पारदर्शिता और प्रजातांत्रिक व्यवहार की आवाज हर तरफ से आ रही  है |

कांग्रेस ने रास्ता दिखाया है, चुनाव के नाम पर ही सही , फ्रंटल संगठनों के प्रमुख, विभागों के प्रमुख, प्रकोष्ठ और सभी आधिकारिक प्रवक्ता “के लिए या उसके खिलाफ” प्रचार नहीं करेंगे। एआईसीसी महासचिव/प्रभारी, सचिव, संयुक्त सचिव, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, कांग्रेस विधायक दल के नेता, फ्रंटल संगठनों के प्रमुख, विभागों के प्रमुख, प्रकोष्ठ और सभी आधिकारिक प्रवक्ता “के लिए या उसके खिलाफ प्रचार नहीं” करेंगे।अगर वे किसी उम्मीदवार का समर्थन करना चाहते हैं, तो उन्हें पहले अपने संगठनात्मक पद से इस्तीफा देना होगा, उसके बाद वे प्रचार प्रक्रिया में भाग लेंगे। काश देश के सभी दलों में चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी होती ?

अब शिव सेन्ना की बात भी हो जाये | शिव सेना की विरासत की जंग को भले ही फौरी तौर पर सुलझ गई हो  , लेकिन असली राजनीतिक लड़ाई अभी शेष है। निर्वाचन आयोग ने उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे, दोनों गुटों को अलग-अलग नाम और चुनाव चिह्न आवंटित कर दिए हैं। दोनों ने अपनी-अपनी पार्टी के नाम में शिव सेना को भी शामिल किया है और बाला साहेब भी। जैसे, उद्धव ठाकरे के गुट का नाम शिव सेना उद्धव बाला साहेब ठाकरे है, तो एकनाथ शिंदे की पार्टी का बालासाहेबंची शिव सेना।  विरासत का असली फैसला राजनीतिक रूप से ही निकलेगा। लिहाजा, आने वाले दो-तीन वर्षों में, जब स्थानीय राजनीति परवान चढ़ेगी, तब यह पता चल सकेगा कि बाला साहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत आखिर किस गुट को मिली है।

कांग्रेस अध्यक्ष के इस चुनाव में  थरूर को कुल पड़े वैध मतों में से करीब १२ प्रतिशत वोट मिले। इससे पहले 2000  में हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में सोनिया गांधी के मुकाबले जितेंद्र प्रसाद ने किस्मत आजमाई थी। सोनिया को उस चुनाव में 7448  मत मिले थे, जबकि प्रसाद को केवल 94  वोटों के साथ करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था| थरूर ने चुनाव के बाद हार स्वीकार करते हुए और खरगे को बधाई देते हुए ट्वीट किया, 'एक हजार से अधिक सहयोगियों का समर्थन मिलना सम्मान की बात है

देश में छोटे- बड़े , नए –पुराने बहुत से राजनीतिक दल हैं और  भारत  विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है | इनमें से अधिकांश  में आतंरिक प्रजातंत्र और पारदर्शिता का अभाव है | जिसका परिणाम देश में धनबल, बाहुबल और कुख्यात जैसे विशेषण की सरकारें बनती है | अब तो एक नया चलन भी बढ़ रहा है, जिसमे पूरा दल एक -दो व्यक्तियों तक केन्द्रित है | इस केन्द्रीकरण से राष्ट्र हित नहीं ,व्यक्ति हित साधने की राजनीति होती है और ऐसी राजनीति का अगला पडाव “तानाशाही” होती है |देश हित में सभी राजनीतिक दलों से दलों के भीतर और बाहर पारदर्शिता अपेक्षित है |