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क्यों ख़फ़ा है ट्रम्प?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 23 May

सार

2025 में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत और मोदी के प्रति उनका रुख तल्ख होता जा रहा है, यह बदलाव कोई अचानक नहीं है, इसके पीछे देश और दुनिया से संबंधित कई कारण हैं, पर अब भारत-पाक युद्ध के बाद अचानक डोनाल्ड ट्रंप का रुख भारत के प्रति कुछ ज्यादा ही रूखा नजर आ रहा है..!!

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विस्तार

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल के दिनों में उन देशों के साथ प्रेम की पींगे बड़ाई है, जिनके साथ भारत के अच्छे रिश्ते नहीं हैं। इनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की शामिल हैं। यह भारत के लिए चिंता का विषय है। 

ऐसा लगता है कि पाकिस्तान में ट्रंप की दिलचस्पी केवल क्रिप्टो करेंसी के कारोबार तक ही सीमित नहीं है। उनके सहयोगियों ने हाल ही में इस्लामाबाद के साथ उनके परिवार की कंपनी के लिए क्रिप्टो करेंसी का सौदा किया था। ट्रंप की आंखों में भारत के लिए पहले जैसा प्यार नहीं रह गया है। इसको जानने के लिए अतीत को टटोलने की कोशिश करते हैं। ट्रंप और नरेंद्र मोदी के बीच पहले कार्यकाल (2017-2021) में गर्मजोशी भरे संबंध थे। जिन्हें हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप जैसे आयोजन याद होंगे, उन्हें पता होगा कि इन दोनों नेताओं की दोस्ती कैसे परवान चढ़ी थी।

2025 में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत और मोदी के प्रति उनका रुख तल्ख होता जा रहा है। यह बदलाव कोई अचानक नहीं है। इसके पीछे देश और दुनिया से संबंधित कई कारण हैं, पर अब भारत-पाक युद्ध के बाद अचानक डोनाल्ड ट्रंप का रुख भारत के प्रति कुछ ज्यादा ही रूखा नजर आ रहा है। इसके ठीक उलट ट्रंप पाकिस्तान के प्रति अपेक्षाकृत नरम दिखाई देते हैं। सवाल उठता है कि कि क्या पाकिस्तान का मोह ट्रंप को भारत से दूर कर रहा है? पाकिस्तान अमेरिका का बरसों दुलारा रहा है, पर अब चीन और रूस की गोद में जाकर बैठ गया है। ट्रंप ने जिस तरह पाकिस्तान को आईएमएफ से 2.4 बिलियन डालर का बेलआउट पैकेज दिलाया, वो यूं ही नहीं हुआ है। भारत के विरोध में यह तर्क देने के बावजूद कि इसका दुरुपयोग आतंकवाद के लिए हो सकता है, ट्रंप प्रशासन ने इस बेलआउट का समर्थन किया, जिसे भारत ने पाकिस्तान के प्रति नरमी के रूप में देखा। 

चीन और रूस के खिलाफ भारत का अमेरिका का खुलकर साथ न देना ट्रंप को अखरता है। कहा जा रहा है कि अमेरिका के बार-बार खुलकर कहने के बावजूद भारत चीन और रूस के सामने खुलकर अमेरिका के साथ नहीं आ रहा है। अमेरिका और ट्रंप के भारत से चिढऩे का सबसे बड़ा कारण यह है। अमेरिका चाहता है कि एशिया में चीन और रूस से मुकाबले के लिए भारत उसके साथ आए। पर भारत ने रूस और चीन के साथ संबंधों को संतुलित रखा है। रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत ने तटस्थ रुख अपनाया और रूसी तेल (13 डालर/बैरल की छूट पर) खरीदना जारी रखा, जो वैश्विक तेल कीमतों को प्रभावित करता है। ट्रंप ने रूस के प्रति नरम नीति अपनाई, लेकिन भारत की स्वतंत्रता उन्हें अखरती है, क्योंकि यह अमेरिका के वैश्विक प्रभाव को सीमित करती है।