भोपाल: बांधवगढ़ में 10 हाथियों की मौत रहस्य बना हुआ है। सीएम मोहन यादव ने फॉरेस्ट अफसर की जांच पर सवाल खडे कर दिए हैं। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री यादव एक्शन मोड में आ गए है। पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ और फील्ड डायरेक्टर पर गाज गिरने की संभावना है।
मुख्यमंत्री यादव का कहना है कि कोदो के खाने से हाथी मरे, यह मैंने पहले कभी नहीं सुना। तीन दिन हो गए पर वैज्ञानिक अभी तक कारण नहीं खोज पाए यह बहुत दुखद है। मुख्यमंत्री ने 24 घंटे में हाथियों की मौत से संबंधित जांच रिपोर्ट तलब की है। हालांकि से चार दिन रिपोर्ट आने की बात कही जा रही है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर शनिवार को वन राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार, एसीएस अशोक वर्णवाल और वन बल प्रमुख असीम वास्तव अधिकारी बांधवगढ़ जा रहें हैं।
सीएम यादव ने दोषी अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के भी निर्देश दिए हैं। बांधवगढ़ में 10 हाथियों की मौत ने मुख्यमंत्री मोहन यादव को भी झकझोर दिया। शुक्रवार को आपात बैठक बुलाई और बैठक में फॉरेस्ट अफसरों द्वारा बताई जा रहे हाथियों की मौत के कारण पर संदेह जताया है। उल्लेखनीय है कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 29 अक्टूबर से हाथियों की 4 हाथियों की मौत की खबर फैली थी और छह हाथियों के बीमार होने की सूचना पर वन विभाग ने पशु चिकित्सकों की टीम लेकर डेरा डाला था।
पशु चिकित्सकों की टीम ने बीमार छह हाथियों का इलाज शुरू किया जिनमें से एक स्वस्थ होकर जंगल चला गया लेकिन उनमें से चार हाथी 30 अक्टूबर को मर गए और दो हाथी की 31 अक्टूबर को मौत हो गई। कुल मिलाकर बांधवगढ़ में 10 हाथियों की मौत हो गई और मौत का कारण अभी भी रहस्य बना हुआ है।
हाथियों की मौत का कारण कोदो के माइको टॉक्सीन
पोस्टमॉर्टम की प्राथमिक रिपोर्ट के अनुसार बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में तीन दिन में दस हाथियों की मौत की वजह कोदो से पैदा होने वाले माइको टॉक्सीन से हुई है। काफी मात्रा में मृत हाथियों के शरीर में पाया गया है। विस्तृत पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के लिए रायबरेली और सागर की लैबोरेटरीज को सैम्पल भेजे गए हैं। विस्तृत रिपोर्ट के बाद हाथियों की वास्तविक मौत के कारणों का पता चल सकेगा। एपीसीसीएफ वन्यप्राणी एल कृष्णमूर्ति ने बताया कि 29 को 4 हाथी, 30 को 4 हाथी और कल यानी 31 को 2 हाथी की मौत हो चुकी है। सभी हाथियों का जो वेटनरी की टीम इलाज करने के लिए आई थी, उनसे हमारा काफी डिस्कशन हुआ है।
उन्होंने, जो पोस्टमार्टम किया है उनका कहना है कि हाथियों के पेट के अन्दर से काफी मात्रा में कोदो निकला है। जंगल के अंदर खेतों में लगे कोदो-कुटकी में माइकोटॉक्सिन (एक प्रकार का कवक विष) बन गए थे। डॉक्टरों ने हाथियों के पीएम के दौरान पेट के अंदर से इंफेक्टेड कोदो पाया है।
रिटायर्ड सीसीएफ उठाए पार्क प्रबंधन पर सवाल
हाथियों की मौत को लेकर सेवानिवृत मुख्य वन संरक्षक डॉ एसपीएस तिवारी पार्क प्रबंधन की कार्य शैली पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि आख़िर ऐसा क्या हुआ कि 10 जंगली हाथी की मौत हो गई और पार्क प्रबंधन को पूर्व से हथियों के एक्टिविटी के बारे में जानकारी नहीं हो सकी। मौत का कारण तो अभी निश्चित नहीं हो पाया है परंतु यह बात प्रारंभिक रूप से मालूम हो रहा है कि ज़हरीला पदार्थ खाने से मृत्यु हुई है। सवाल यह है कि क्या इको समितियां निष्क्रिय हो गई..?
क्या अधिकारी और कर्मचारी वहां के स्थानीय लोगों से संपर्क तोड़ चुके है। यदि इको समितियां सक्रिय होती तो गांव के लोग लोकल बीटगार्ड को ज़रूर बतलाते कि हाथी बीमार दिख रहे है। और शायद समय रहते इनका उपचार होता और 10 हाथी नहीं मरते। मुखबिर तंत्र का ह्रास एवं वन समितियों का निष्क्रिय होना ही इस असामयिक मृत्यु का मुख्य कारण समझ में आ रहा है। मुखबिर तंत्र का ह्रास एवं वन समितियों का निष्क्रिय होना ही इस असामयिक मृत्यु का मुख्य कारण समझ में आ रहा है।
जनता को प्रबंधन से नहीं जोड़ा गया
डॉ तिवारी ने लिखा है कि प्रदेश में लगभग 15608 वन समितियों का गठन संयुक्त वन प्रबंधन के तहत हुआ है। 1051 इको समितियां है। इन समितियों की निरंतर बैठक एवं विकास तथा सुरक्षा राशि का इनके खाते में डाल कर स्थानीय जनता को रोज़गार देने का प्रावधान भी है परंतु कालांतर में इस विषय को ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। अज प्रदेश में 10 जंगली हथियो के मरने से वन एवं वन्य प्राणी प्रबंधन पर सवालिया निशान खड़ा होता है।
शासन द्वारा गलत पदस्थापना भी जिम्मेदार
वर्तमान में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में जो टाइगर की मौतों और उसके बाद लगातार हो रही हाथियों की मौतों के लिए प्रबंधन पूर्ण रूप से जिम्मेवार है। प्रबंधन में जिन लोगों की पदस्थिति की गई है, जैसे गौरव चौधरी, फील्ड डायरेक्टर, उनका वन्य प्राणी प्रबंधन में कोई अनुभव नहीं है। उनके द्वारा लिए गए गलत निर्णयों के कारण आज यह स्थिति बनी है और फिर यह दुर्घटनाएं लगातार हो रही हैं। यही नहीं, वन मंत्रालय के अधिकारियों के गलत निर्णयों के कारण ही इस तरह की घटनाएं हो रही है।
वन मंत्रालय के आदेश पर जब पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ के पद पर वीएन अंबाड़े को पदस्थ किया गया तब भी उनकी अनुभवहीनता पर सवाल उठने लगे थे, क्योंकि इस पद पर वन्य प्राणी एक्सपर्ट आईएफएस अधिकारी एवं पीसीसीएफ शुभरंजन सेन को सुपरशीट कर दिया गया था। इस घटना के बाद से ही एसीएस अशोक वर्णवाल की अपने पराएं के आधार पर अधिकारियों की पोस्टिंग पर सवाल उठने लगे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र गुप्ता ने वन विभाग में पीपीपी ( पॉलिटिकल पॉवर और पैसा ) के आधार पर अधिकारियों की पोस्टिंग के आरोप लगाए हैं।