धर्म सूत्र 12: जीने के लिए दुकांदार बनो, बेचना सीखो: अतुल विनोद


स्टोरी हाइलाइट्स

Are you spiritual or religious, social worker or service class or are you the person who wants to get ahead in his life, want to be prosperous and happy? Whatever you are, these things are of your use.

धर्म सूत्र 1२ : जीने के लिए दुकांदार बनो, बेचना सीखो   बेचना(दुकानदारी,सेल्स)पाप नहीं … बेचकर ही चीन, अमेरिका और जापान अमीर देश बने|  आप आध्यात्मिक हैं या धार्मिक, समाजसेवी हैं या सर्विस क्लास या फिर आप वो इंसान हैं जो अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ना चाहते हैं, सम्पन्न और सुखी बनना चाहते हैं? आप जो भी हैं ये बातें आपके काम की हैं|  हमारे देश में दुकानदारी(सेल्स) शब्द को नेगेटिव बना दिया गया है| ऐसा लगता है मानो दुकानदारी करना पाप हो| बेईमानी, छल, कपट का पर्याय बना| दुकानदार शब्द वास्तव में सबसे पवित्र शब्द है| दुकानदार और दुकानदारी से ही दुनिया चल रही है|  कोई नेता पत्रकार या अफसर कुछ गलत करता है तो उसे हम क्या कहते हैं अरे दूकानदार है?  तो क्या दुकानदारी गलत है| ये “दुकानदारी” का अपमान है यदि आप उसे अनैतिक काम से जोड़ते हैं| दुकानदारी तो सृष्टि का वो सिद्धांत है जिससे हम सब इन्सान कहलाते हैं| सोचिये यदि दुनिया से लेनदेन का सिद्धांत हटा दिया जाए तो क्या होगा?  अराजकता!, विध्वंश, लूट, हत्या, बलात्कार? यदि किसी ने पाप का देन किया है और इसके बदले सजा का लेन न हो तो? जी हाँ बेचने और खरीदने का सिद्धांत ही दुनिया का मूल सिद्धांत है यानि दुकानदारी|  दूकानदार क्या करता है? जो देता है उसके बदले उचित मूल्य प्राप्त करता है?  कर्म और धर्म भी दुकान ही है … जैसा करोगे वैसे भरोगे …. जैसा दोगे वैसा मिलेगा| जितना दोगे उतना मिलेगा| आप, मैं, हम, सब, यहाँ तक की भगवान भी, सब दुकानदार हैं|  भगवान को दुकानदार कहना कुछ लोगों को बुरा लगेगा क्योंकि उन्हें दुकानदारी में पाप दिखता है| जबकि दुकानदारी ही भगवान् का धर्म है|  इस दूकान शब्द से परहेज क्यों? बेचने में संकोच क्यों? ईश्वर ने हमे इस नियम के रूप में सबसे बड़ी सौगात दी है| जो देश इस नियम का पालन कर रहे हैं वे तरक्की कर रहे हैं|  भारत इस नियम की अवहेलना करता रहा है इसलिए नीचे जाता गया| हमने धर्म, अध्यात्म का नाम लेकर लेनदेन, बिजनेस, सेल्स, बिक्री को कोसना शुरू कर दिया इसलिए हम पीछे रह गये|  हमारे कुछ धर्म गुरु, अध्यात्म गुरु कहते हैं मेरे पास आओ में कुछ नहीं लेता, मैं दुकानदार नही, में धर्म अध्यात्म को बेचता नहीं| आप चले जाते हैं क्यूंकि आपको मुफ्त में कृपा मिलती दिखती है, लेकिन मित्रो यहाँ मुफ्त में कुछ नहीं मिलता, घर और आश्रम तो बाबाजी को भी चलाना है| आश्रमों में आपके रहने बैठने और भोजन का इंतज़ाम भी करना है कहाँ से आएगा? आप ही से आएगा| ये अलग है कि आप शुल्क नही देना चाहते तो वो पहले सब कुछ मुफ्त में देंगे| दीक्षा भी मुफ्त में मिलेगी| लेकिन बाद में ये आहसान आपको वो सब करने को मजबूर करेगा जो आपके बजट से बाहर होगा| कभी गौशाला तो कभी अनाथाश्रम| आपसे पिछले दरवाजे से आपको दी गयी कृपा से ज्यादा वसूला जाएगा|  उन्हें मालूम हैं कि वे दूकान चला रहे हैं दूकान चलाना पाप नहीं लेकिन लोग इसे गलत मानते हैं तो क्या करें? मूल्य निर्धारित कर दें तो कितना अच्छा हो| आपको पता रहे आपको जो मिल रहा है उसके बदले आपको क्या देना है| फिर मुफ्त की चीज़ का क्या भरोसा?  इस दुनिया में सबको सब बेचना और खरीदना ही है| मुफ्त में यहाँ कुछ भी नहीं|  कौन नहीं बेच रहा? सब बेच रहे हैं नेता जनता को सपने बेच रहा है? अभिनेता अपनी कला और मुस्कान, माता, पिता, बच्चे सब बेच और खरीद रहे हैं|  यहाँ कर्मों की भी दुकान है, अच्छे कर्मों से अच्छा मिलेगा बुरे से बुरा|  आपको कर्मों का जितना मूल्य होगा उतना ही पुण्य पाप आपको मिलेगा| इसलिए बेचने से परहेज मत करो| बस बेचो, अच्छी चीज़ें बेंचो| दरिद्रता, गरीबी का सबसे बड़ा कारण बेचने से परहेज है|  यदि नौकरी पेशा हो तो पहले अपनी मेहनत से स्किल खरीदो, एडुकेशन खरीदो, कला खरीदो… भले ये सिर्फ पैसे से नहीं खरीदे जा सकते लेकिन आपका परिश्रम भी तो मूल्य ही है|  आज तक जो भी लोग तरक्की के शिखर पर पहुचे हैं उन्होंने लेनदेन के कुछ नियम बताये हैं| आप अपनी कला, व्यवहार,शिक्षा जो भी बेचना चाहें उत्साह से बेचें| इमानदारी से बेचें, अखंडता से बेचें, जो दे रहे हैं उसका उतना ही दाम लें जितना उसकी वर्थ है|  रिश्ते में हम देते कम हैं लेना ज्यादा चाहते हैं| मन से, दिल से, अंदर की गहराइयों से, प्रेम, सेवा और समर्पण का देन करें, ऐसा हो ही नहीं सकता कि प्रकृति इसके बदले आपको इसके बराबर का लेन न दे|  बच्चे, माता पिता,  सास बहू सब में बराबर का लेनदेन होता है| आप जैसे भी हैं आज वो आपके पिछले देन का नतीजा है|  हम चीन को गलियां देते हैं लेकिन उसकी तरक्की का कारण क्या है? उसकी बेचने की कला! वो हमे सब कुछ बेच रहां है और हम खरीद रहे हैं? हम क्यों नही बेचते इसलिए क्यूंकि हमने बेचने को लेकर हीनता की ग्रंथि पाल रखी है| हम खरीदने को भी बुरा मानते हैं इसलिए क्योंकि फ्री पर यकीन करते हैं, खैरात की इच्छा वाले को प्रकृति कैसे सम्पन्न बना दे?  खरीदने, बेचने पर जो देश या उसके लोग जब गर्व करेंगे तब वो तरक्की करेगा| खरीदने और बेचने से नफरत मत कीजिये|  व्यापार कीजिये जो चाहते हो वही बेचो| बेचने पर शर्मिंदा मत हो|अपनी छोटी से छोटी बेचने योग्य चीज़ को भी बेच डालो|  हमारे पास प्रेम है, ज्ञान है, वस्तुएं हैं, उन्हें दो यदि आपको सीधे मूल्य नहीं मिलेगा तो प्रकृति देगी|  दुनिया के सबसे बड़े देश कौन हैं? अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, जापान| आज ये कहाँ हैं? जहाँ हैं वहन इसलिए क्यूंकि ये बेचना जानते हैं| गरीब, अविकसित वो हैं जो बेचना नहीं जानते|  इस भ्रम में न रहो कि वे लोग महान हैं जो बेचते नहीं जो लोग सेवा सहायता दान कर रहे हैं वे भी बिक्रेता हैं वो ये देकर आत्म संतुष्टि खरीद रहे हैं| आत्मा की प्रसन्ना खरीदने के लिए वो अपनी सेवा बेच रहे हैं|  हमारा किसान समृद्ध क्यों नही है? इसलिए क्यूंकि वो उगाना तो जानता है बेचना नहीं| जो अनाज, सब्जी बाजार में 20 रूपये किलो बिकती है वो 5 रूपये किलो में बेच देता है| जो शर्ट एक दर्जी 200 रूपये में बनाकर दे देता है बाज़ार में उस पर अपना ब्रांड लगाकर अमेरिकी कम्पनी 2000 में बेच देती है|  हमारे यहाँ बेचने को किस तरह हेय नज़रों से देखा जाता है| इसका उदारहण बाबा रामदेव के प्रति लोगों का नजरिया है? बाबा तो  “दुकानदार” है|  मानो वो कोई चोरी या बेईमानी कर रहा हो?  बाबा ने 1000 करोड़ कमा लिए ? इसमें क्या ऐतराज है? भारत का पैसा भारत की कम्पनी के पास जा रहा है क्या बुराई है|  "उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः! न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः इस श्लोक में श्री कृष्ण क्या कहते हैं उद्यम करो| यानी उद्योग, व्यापार .. दूकान चलाओ “मुंह” खोल कर बैठे शेर को हिरण का भोजन नहीं मिलता|  क्या हम अमेज़न, फेसबुक के मालिकों को दूकानदार बेईमान या फ्रॉड कहते हैं नहीं|  ये हमारी सोच है| किसी विदेशी व्यक्ति से हम कुछ भी फ्री में एक्स्पेक्ट नही करते उनकी लग्ज़री लाइफ से हमें जलन नहीं होती| हमे जलन होती है अपनों से|  इस देश का उद्धार होगा जब लोग सेल्स के सृष्टि के नियमों को समझ जायेंगे| जब हम लेन देन के शुद्ध नियमों के आधार पर काम करेंगे| जब हम एक गरीब को उसकी सेवा और श्रम का पर्याप्त मूल्य देंगे| तब हम एक समरस देश का निर्माण कर पाएंगे| जहाँ सेल्स नही वहां शोषण है? सदियों तक गरीबों का शोषण इसलिए हुआ क्योंकि उनकी सेवा का मूल्य तय नहीं था| लेन ज्यादा था देन कम था| अपने पास पहले बेचने योग्य चीज़ें इकठ्ठी करें फिर उसे उत्साह भरोसे और निष्ठा से बेचें|  सही लेन देन के फोर्मुले को समझें और सुखी हो जाएँ| यही धर्म सूत्र है|