क्या पिण्ड में पूरा ब्रम्हांड समाहित होता है ?... क्यूँ कहा जाता है? क्या देव/दानव/ पीठ/तीर्थ सब मनुष्य के अंदर हैं?


स्टोरी हाइलाइट्स

हम सब ने सुन रखा है कि जो कुछ ब्रह्मांड में है वही पिंड में है| सनातन साहित्य कहता है कि जो कुछ भी हम बाहर ढूंढते हैं वही हमारे अंदर मौजूद है| म......

क्या पिण्ड में पूरा ब्रम्हांड समाहित होता है ?... क्यूँ कहा जाता है? क्या देव/दानव/ पीठ/तीर्थ सब मनुष्य के अंदर हैं? ATUL VINOD:- "यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे" हम सब ने सुन रखा है कि जो कुछ ब्रह्मांड में है वही पिंड में है| सनातन साहित्य कहता है कि जो कुछ भी हम बाहर ढूंढते हैं वही हमारे अंदर मौजूद है| मनुष्य को ब्रह्मांड की प्रतिमूर्ति बताया गया है| जैसे शरीर का एक डीएनए,  वृक्ष का एक बीज, उसकी पूरी संरचना, गुणसूत्र और स्वभाव का ब्लूप्रिंट है| उसी तरह मनुष्य भी इस ब्रह्मांड का ब्लूप्रिंट है|  मनुष्य के अंदर ब्रह्मांड की उत्पत्ति से लेकर आज तक का संपूर्ण ज्ञान मौजूद है| इसका वैज्ञानिक पहलू भी है|  हम सब ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने वाले परमपिता परमेश्वर के अंश है|  विज्ञान कहता है कि हम सब उसी गॉड पार्टिकल(डार्क मेटर) से मिलकर बने हैं| जो ब्रह्मांड की शुरुआत से पहले भी मौजूद था और बाद में भी मौजूद रहेगा| भारतीय योग दर्शन में  जिन लोकों की चर्चा की गई है ,  उनमें 7 प्रमुख है| पृथ्वी से ऊपर 7 लोक और पृथ्वी के नीचे 7 लोक| पृथ्वी से ऊपर सातों लोक हमारे सात चक्रों में स्थित हैं | मूलाधार में भूलोक, स्वाधिष्ठान में भुवर्लोक,  नाभि में स्वर्गलोक, हृदय में महर्लोक, कंठ में जनलोक, ललाट में तपलोक  और ब्रह्मरंध्र में सत्य लोग है| पृथ्वी के नीचे के 7  लोक हैं वो पंजे से लेकर कटि तक मौजूद हैं| पृथ्वी से नीचे के लोक अधोलोक/नागलोक/उपस्थान । विशेष— पाताल सात माने गए हैं । पहला अतल, दूसरा वितल, तीसरा सुतल, चौथा तलातल, पाँचवाँ महातल, छठा रसातल और सातवाँ पाताल । सात और सात मिलाकर 14 लोक मिलकर 14 भुवन कहलाते हैं| मनुष्य इन 14 भुवनों में अपने प्रारब्ध  को भोगने आता है| जब व्यक्ति को इन भुवनों का ज्ञान अपने शरीर के अंदर हो जाता है तो वो सुख दुख से परे हो जाता है| शरीर के अंदर ही सात दीप और सात समुद्र है, सप्त द्वीप : जम्बूद्वीप · प्लक्षद्वीप · शाल्मलद्वीप · कुशद्वीप · क्रौंचद्वीप · शाकद्वीप · पुष्करद्वीप · सात सागर हैं : लवण का सागर,इक्षुरस का सागर,सुरा का सागर,घृत का सागर,दधि का सागर,क्षीर का सागर,मीठे जल का सागर इसी तरह शरीर में अष्ट कुलाचल पर्वत, तीर्थ और देवताओं के स्थान मौजूद हैं| शरीर में ही 15 तिथि,  27 नक्षत्र, राशि 28 योग, ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र, मंडल, तैंतीस कोटि देवता सब अंगों में अपने-अपने स्थान पर निवास करते हैं| शरीर में ही पंच प्राण, नाद,  बिंदु, कला, ज्योति षट चक्र, मेरुदंड, महापीठ स्थित है| शरीर के हृदय आकाश में अनंत गंधर्व, किन्नर, यक्ष, विद्याधर, अप्सरा आदि देवता निवास करते हैं| अनेक तरह के तीर्थ यहां पर हैं| यहां पर ब्रह्मा विष्णु शिव स्वयं विराजमान हैं| इन सब का प्रकाश हमेशा हृदय में होता रहता है| ब्रह्मांड में जो सारे गुण बाहर है वही इस शरीर के अंदर हैं| शिव संहिता में शिव कहते हैं कि जो कुछ बाहर ब्रह्मांड में है वही सब तुम्हारे शरीर रूपी पिंड में भी है| यदि मुक्ति चाहिए अंतर आकाश में प्रवेश करना पड़ेगा| शरीर के अंदर ही गंगा जमुना सरस्वती मौजूद हैं| इडा नाड़ी गंगा है पिंगला यमुना है और सुषुम्ना सरस्वती है| इन तीनों नाड़ियों का संगम त्रिवेणी योग कहलाता है| यहीं से कुंडलिनी जागरण की यात्रा शुरू होती है|