किसान आन्दोलन हुआ एक्सपोज, यह सरकार और मोदी के खिलाफ खेल है -सरयूपुत्र मिश्रा


स्टोरी हाइलाइट्स

किसान आन्दोलन हुआ एक्सपोज, यह सरकार और मोदी के खिलाफ खेल है: किसान आंदोलनकारियों द्वारा भारत बंद का आवाहन सफल तो नहीं कहा जा सकता।.....

किसान आन्दोलन हुआ एक्सपोज यह सरकार और मोदी के खिलाफ खेल है -सरयूपुत्र मिश्रा किसान आंदोलनकारियों द्वारा भारत बंद का आवाहन सफल तो नहीं कहा जा सकता। आंदोलनकारी जिस तरह का आचरण और व्यवहार कर रहे हैं, उससे आंदोलन की पवित्रता पर ही सवाल खड़े हो गए। कोई भी आंदोलन खास उद्देश्य से किया जाता है और आंदोलन के मुद्दों पर विचार विमर्श का रास्ता निकाला जाता है। कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन अब तक ऐसी धारा मैं गया है, कि आंदोलन का मूल स्वरूप ही भटक सा गया है। दिल्ली में बैठे आंदोलनकारी बंगाल के चुनाव में कूद पड़े। वहां किसान महापंचायत और सभाएं कर भाजपा को हराने की अपील कर रहे हैं। आंदोलनकारियों ने पंजाब और हरियाणा में मुकेश अंबानी के जिओ मोबाइल टावर तोड़े। बताइए टावर तोड़ने का किसान आंदोलन से क्या संबंध है? 26 जनवरी को दिल्ली में जिस तरह की घटनाएं हुई, उसका आंदोलन के मुद्दों से क्या संबंध है? आंदोलन को लेकर विश्व के कई देशों में भारत के खिलाफ अभियान चलाया गया. यह कौन सी ताकते हैं जो आंदोलन के नाम पर दुनिया में भारत की छवि खराब कर रही हैं? अब जब आंदोलनकारी नेता खुलेआम भाजपा के विरोध में बंगाल में उतर गए हैं तो आंदोलन का असली मकसद सामने आ गया है। कृषि कानूनों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने विशेषज्ञों की समिति गठित की है. समिति के सामने किसान नेता मुद्दों पर बात करने से कतराते रहे हैं। ऐसा लगता है कि आंदोलनकारी नेताओं का उद्देश्य बंगाल चुनाव तक आंदोलन को खींचना और भाजपा के विरोध में देश में एक माहौल बनाना था । भाजपा और नरेंद्र मोदी का विरोध गुजरात में मुख्यमंत्री रहते ही इस स्तर पर किया गया कि देशवासियों ने उस व्यक्ति के बारे में समझना शुरू किया और आज नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं । भारत में आंदोलन की लंबी परंपरा है। हमने तो आंदोलन से ही अपनी आजादी पाई है। आजाद भारत में भी कई आंदोलन हुए और आंदोलनों के कारण देश की दिशा बदली लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में आने के बाद जितने भी आंदोलन हुए हैं वह मुद्दों से ज्यादा व्यक्ति या विचारधारा के विरोध में किए गए लगते हैं। मोदी के पहले देश में जिस भी विचारधारा के लोगों ने शासन किया या शासन से उपकृत रहे, उन सभी ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसी स्थिति आएगी जब उनकी विरोधी  विचारधाराका सत्ता पर कब्जा हो जाएगी. जब उन्हें दिखा कि जनमत भी उसी विचारधारा का समर्थन कर रहा है, तो फिर देश में नकारात्मक भाव पैदा करने के लिए एक माहौल तैयार किया गया। पहले सांप्रदायिक होने का आरोप मढ़ा गया, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, सांप्रदायिकता का कोई प्रभाव नहीं दिखा तो फिर एनआरसी और सीए के नाम पर आंदोलन खड़े किए गए। उन्हें भी जब सफलता नहीं मिली तो भारत की आत्मा किसानों के नाम पर आंदोलन का षड्यंत्र रचा गया। हम इसे षड्यंत्र इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि किसान कभी इतने संसाधन जुटाकर आंदोलन नहीं कर सकते. आईटी का उपयोग कर सोशल मीडिया पर देश को बदनाम करने का काम भी किसान नहीं कर सकता । किसान अपने मुद्दों के अलावा राजनीति में खुलकर किसी पार्टी का विरोध करने के लिए सामने नहीं आ सकता। बंगाल में किसान नेताओं में भाजपा का विरोध कर इस आंदोलन को ही राजनीतिक बना दिया है। आंदोलनजीवी शब्द इस बीच में काफी चर्चा में रहा । इसका मतलब यह है की जिसकी रोटी-रोज़ी जिस आधार पर निर्भर होती है, वह उसका ही जीवी होता है. जैसे कि अपने श्रम से जीवन चलाने वाले श्रमजीवी कहे जाते हैं. वैसे ही आंदोलन खड़ा करना जिनको रोजगार देता है. वह आंदोलनजीवी कहे जाते हैं। फसल कटाई और बिक्री के समय यह कौन से किसान हैं जो आंदोलन कर रहे हैं? इसको देख कर तो ऐसा लगता है कि किसान आंदोलन के पीछे आंदोलनजीवी ही काम कर रहे हैं। कोई व्यक्ति या व्यवस्था नापसंद है उसका मतलब यह तो नहीं हो सकता कि देश को ही नापसंद करने जैसे कृत्य किए जाएं। देश को बदनाम किया जाए और देश के विकास में शामिल उद्योगपतियों को निशाना बनाया जाए । बंगाल चुनाव और किसान आंदोलन का परिणाम अब शायद चुनाव परिणाम नतीजे के साथ ही आएंगे. अगर बंगाल के परिणाम भाजपा के पक्ष में आ गए तो आंदोलन के नेता किस मुंह से अपने आंदोलन को देश के किसानों का आंदोलन बता सकेंगे।