हिडिम्बा की कहानी हिडिम्बा की ज़ुबानी |


स्टोरी हाइलाइट्स

  हिडिम्बा की कहानी हिडिम्बा की ज़ुबानी |   राजा,ब्राह्मण और स्त्री के पास उपहार लेकर ही जाना चाहिए। इस नीति वाक्य के साथ ही मेरे योद्धा पुत्र घटोत्कच ने राक्षसराज अलायुध (अलांबुस) का कटा हुआ मस्तक दुर्योधन के रथ में फेंक दिया। दुर्योधन भौंचक्का हो गया। महाभारत युद्ध के चौदहवें दिन घटोत्कच को उतारा तो कर्ण के विरूद्ध है परन्तु वह सामने आते जा रहे योद्धाओं के मस्तकों को काटे जा रहा है। यह युद्ध रात्रि में लड़ा जा रहा है। मेरे और भीम के इस पुत्र को रात्रि युद्ध में प्रवीणता प्राप्त है। अलांयुध पाण्डवों को शत्रु मानता है। इसीलिए वह दुर्योधन का पक्षधर है। हिडिम्ब वन के स्वामी राजा हिडिंब की बहन हूँ मैं। इस वन में जिस समय पाण्डवों से मिली,प्रथम दृष्टि में ही अपने भाई के संभावित भोज्य पदार्थ भीम को अपना हृदय हार बैठी। माता कुंती का वात्सल्य मिला और भैया युधिष्ठिर की उदारता के परिणाम स्वरूप मैंने भीम को प्राप्त कर ही लिया। वन में हमारे संसर्ग ने महाबली घटोत्कच को जन्म दिया। जिसका कौरवों और पाण्डवों के बीच लड़े गये इस भयंकर युद्ध में बलिदान हो गया। मेरे पुत्र की वीरता का उल्लेख इसलिए आवश्यक हो गया है क्योंकि वह न होता तो पराक्रमी कर्ण की वैजयंती शक्ति द्वारा अर्जुन का वध भी हो सकता है। इस प्रत्यक्ष युद्ध में कृष्ण ने कूटनीति के अंतर्गत मेरे पुत्र का उपयोग कर अपने सखा अर्जुन को घातक वैजयंती से तो बचा लिया। परन्तु दूसरे भाई भीम के इस पुत्र का बलिदान करने में संकोच भी नहीं किया। मेरा पौत्र अंजन पर्व भी इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया। वह भी अपने यशस्वी वीर पिता घटोत्कच के साथ कँधे से कँधा मिलाकर युद्धरत रहा। उसने भी घातक से घातक शस्त्रों का उपयोग किया है। मेरी पाण्डवों से भेंट की कथा भी बड़ी विचित्र है। मैं हिडिम्ब के आदेश पर महाबली भीम की जिन विशाल भुजाओं के माँस का भक्षण कर लेने की दृष्टि से उसके पास आई हूँ कुछ समय पश्चात उन्हीं भुजाओं के आलिंगन में समा गई। पाण्डव अपनी माता कुँती के साथ वारणावत (लाक्षाग्रह) की घटना के बाद जो उत्तर प्रदेश के मेरठ के समीप वन की है,स्वयं को जला हुआ बताकर छिपते-छिपाते वर्तमान गुजरात के काठियावाड़ में ओसम पर्वत स्थित राक्षसाधीन हमारे वन में प्रवेश कर रहे हैं। अब थके हारे यह छहों सदस्य वन में निढ़ाल होकर निद्रामग्न हैं। भूख से पीडि़त मेरे भाई ने इन्हें देखा। विशाल आकृति वाले मेरे इस भाई हिडिम्ब ने जो वन का स्वामी है,मुझको आदेश दिया है कि मैं विशाल बाहु वाले हृष्ट-पुष्ट भीम का वध कर उसका माँस भक्षण हेतु लेकर आऊँ। यद्यपि भूखी तो मैं भी हूँ और मेरी रूचि माँस भक्षण में है भी परन्तु भीम के स्वस्थ,सुन्दर,सुडौल शरीर को देखकर मेरे उदर की क्षुधा से अधिक शरीर की क्षुधा बढऩे लगी। मेरे यह बताने पर कि मैं तुम्हें (भीम को) मारकर क्षुधा शाँत करने आई हूँ और शेष माँस भाई हिडिम्ब के भक्षण हेतु ले जाऊँगी-वीर,भयहीन और साहसी भीम ने व्यंगात्मक ढंग से अपनी दोनों भुजायें फैलाकर स्वयं को मृत्यु हेतु प्रस्तुत करने में संकोच नहीं किया। परन्तु देह से स्वस्थ और यौवन के द्वार पर दस्तक दे रहा मेरा यौवन तो शारीरिक क्षुधा के अधीन हो गया। मैं भीम पर आकर्षित हो गई। मैंने भीम के समक्ष प्रणय निवेदन किया। भीम को अपने भाई के उग्र स्वभाव और क्षुधा के कारण विकल हो रहे उसके शरीर तंत्र का भय बताते हुए इस प्रस्ताव पर सहमत करने में लग गई कि वह मुझको अपना ले। शीघ्रता भी करे अन्यथा क्रोधित मेरा भाई उन छहों का वध करके भक्षण कर जाएगा। हमारे वार्तालाप को सुन रही उनींदी माता कुँती ने पहले तो मुझ को संस्कारों और मर्यादाओं का पाठ पढ़ाया किंतु अंतत: मेरी प्राकृतिक काम पिपासा और मेरे निर्दोष स्पष्ट प्रस्ताव के प्रति वे उदार हो गईं। उन्होंने युधिष्ठिर से बातचीत की। थोड़े प्रतिवाद के पश्चात वह भी आधे-अधूरे मन से भीम के प्रति मेरे इस प्रस्ताव पर सहमत हो गए। यद्यपि शेष भाई अर्जुन-नकुल और सहदेव चुपचाप पड़े-पड़े कभी क्रोध में तो कभी व्यंग में मुझको देखते रहे। चिढ़ाते रहे। इस बीच मेरा भाई भी आ पहुँचा। काफी समय तक जब मैं नहीं लौटी तो क्षुधा से व्याकुल वह वीर राक्षस राज स्वयं ही आ गया। उसने आव देखा न ताव। आते ही भीम पर सीधा आक्रमण कर दिया। किंतु भीम ने द्वंद युद्ध में पटक-पटक कर मेरे भाई का वध ही कर दिया। अब मैं स्वतंत्र हूँ। अकेली। अंतत: माता कुँती ने भी मेरे प्रति सहृदय होकर भीम को भी सहमत कर लिया। इस अनुबंध के साथ कि प्रथम प्रसव के पश्चात मैं उनसे असबद्ध हो जाऊँगी। मैं भी  सहमत हो गई। मेरे और पाण्डवों के इस प्रथम सम्मेलन स्थल के समीप ही मुनि शालिहोत्र का आश्रम है। मैं तो वन क्षेत्र के प्रत्येक बिंदु से परिचित हूँ,उन्हें आश्रम के समीप ले जा रही हूँ। युधिष्ठिर ने अनाम बन कर मुनि से भेंट की और उनकी अनुमति प्राप्त कर आश्रम के समीप ही कुटीरों का निर्माण प्रारंभ कर दिया। उन्हें मुनि का संपूर्ण आर्शीवाद प्राप्त हो गया है। मुनि शालिहोत्र ने पाण्डवों को भोजन भी उपलब्ध करवाया। काठियावाड़ में गोंडल के महालग्राम पाटणवाल के समीप ओसम नाम का पर्वत है। पर्वत का पूर्व भाग हिडिम्ब टोंक कहा जाता है। इसी पर मातृमाता का मंदिर है। पर्वत पर चढऩे के लिये सीढिय़ाँ बनीं हैं,देवी का मंदिर एक गुफा में है। गुफा में छत्तीस वर्गफुट का एक छोटा कुण्ड है जिसका जल कभी सूखता नहीं है। पाण्डव यहीं अपनी माता के साथ वनवास बिताने आये हैं। यहीं भीम ने मेरे भाई हिडिम्ब का वध किया। मेरा भीम से विवाह भी इसी टोंक पर हुआ है। मैं अपने प्रिय से मिलकर प्रसन्न हूँ। शनै: शनै: माता कुँती भी मेरे प्रति और भी उदार होती जा रही हैं। मैं,भीम को लेकर वन क्षेत्र में नवीन पर्यटन स्थलों और प्राकृतिक प्रपातों और सरोवरों में ले जाने लगी। हम दिन भर साथ-साथ रहते और माता की आज्ञानुसार सूर्यास्त के पूर्व ही कुटीर में वापस आ जाते। हमारे इस मिलन की परिणिति से,मैं गर्भवती हो गईं। एक दिन माता कुँती भी मेरे गर्भवती होने के तथ्य से परिचित हो गईं। उन्होंने मुझ पर विशेष ध्यान देना प्रारंभ कर दिया। मैंने केश रहित स्निग्ध घट जैसे सिर के हृष्ट पुष्ट और विकराल शिशु को जन्म दिया। उसका नामकरण किया-घटोत्कच। अनुबंध के अनुसार मैं घटोत्कच को लेकर चल दी। भीम को मैंने वचन दिया है कि बड़ा होने पर मैं उसको महान योद्धा बनाऊँगी एवं जब कभी भी आवश्यकता होगी उनकी सेवा में प्रस्तुत रहेगा,वन में लौट गई। पाण्डव भी बिना बताये दुर्योधन से बचते हुए अपने अभियान में निकल पड़े। परन्तु अब युद्ध सम्मुख है। मेरा पुत्र अपनी सशक्त राक्षस सेना और पुत्र अंजन पर्व सहित अपने पिता भीम की सहायतार्थ प्रस्तुत है। उसने भयंकर युद्ध किया। काका अर्जुन का जीवन सुरक्षित रखने के श्रीकृष्ण के प्रयास में अपनी आहूति दे दी।   लेखक - रमेश तिवारी