हॉफ का संदेश -जनता के फोन नहीं उठाते फॉरेस्ट अफसर


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स्टोरी हाइलाइट्स

हॉफ श्रीवास्तव का कहना है कि '"कुछ डीएफओ और अधीनस्थ एसडीओ और आरओ जनता का फोन नहीं उठाते हैं। यह बेहद आपत्तिजनक और अवांछनीय है..।"

भोपाल: गुरुवार को आईएफएस अफसरों के व्हाट्सप्प ग्रुप पर वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव ने चेतावनी भरे लहजे में इंग्लिश में एक मैसेज पोस्ट किया। इसमें हॉफ श्रीवास्तव का कहना है कि '"कुछ डीएफओ और अधीनस्थ एसडीओ और आरओ जनता का फोन नहीं उठाते हैं। यह बेहद आपत्तिजनक और अवांछनीय है।"

वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव प्रशिक्षण पर्यटन की यात्रा से गुरुवार को ही भोपाल लौटे है। लौटते ही दोपहर को अफसरों के व्हाट्सएप ग्रुप में इंग्लिश में एक पोस्ट किया। 

"Time and again it is being brought to my notice that certain DFOs and subordinate SDOs and ROs do not pick the call from the public.
This is highly objectionable and undesirable.
Please ensure that this doesn’t happen in your Division."

इस मेसेज के हिंदी तजुर्मा के अनुसार हॉफ ने लिखा कि "बार-बार मेरे संज्ञान में लाया जा रहा है कि कुछ डीएफओ और अधीनस्थ एसडीओ और आरओ जनता का फोन नहीं उठाते हैं। यह बेहद आपत्तिजनक और अवांछनीय है। कृपया सुनिश्चित करें कि आपके डिवीजन में ऐसा न हो।" इस मैसेज को पढ़कर चार-छः आईएफएस अफसरों ने 'जी' लिखकर और हाथ जोड़ने की इमेज़ संदेश के नीचे पोस्ट कर दी। ज्यादातर सीनियर ऑफिसर्स ने उसे पढ़कर कोई रिएक्शन नहीं दिया। ऐसा लगा, जैसे उन्होंने वन बल प्रमुख के संदेश को इग्नोर कर दिया। 

रिटायरमेंट के 1 महीने पहले ही हकीकत से हुए रूबरू..

महकमे ख़ासकर फील्ड के अफसरों में इतनी ठसक रहती है कि वे आम पब्लिक को छोड़ अपने से सीनियर अधिकारियों का भी फोन नहीं उठाते है। उनमें यह ठसक पोस्टिंग के साथ आ जाती है। 1988 बैच के आईएफएस असीम श्रीवास्तव जनवरी 24 में वन बल प्रमुख बने और अब जुलाई 25 में सेवानिवृत होने जा रहे हैं। सेवानिवृत होने के दो महीने पहले उन्हें ज्ञात हो पाया कि अफसर जनता का फोन नहीं उठाते हैं। खैर, देर आए पर दुरुस्त आए कि कहावत को चरितार्थ करते गुरुवार को संदेश पोस्ट किया।

जंगल महकमे नहीं रहा प्रोटोकॉल..

जंगल महकमे के अफसरों के बीच प्रोटोकॉल नहीं है। वर्ष 2021 के बाद से प्रोटोकॉल टूटने लगा। इसकी शुरुआत एसीएस फारेस्ट से हुई। एसीएस फारेस्ट वन विभाग के मुखिया को बाईपास कर फील्ड के अफसरों से सीधे अपने दरबार में बुलाने लगे। एसीएस फारेस्ट का अनुशरण वन विभाग के कैम्पा, विकास और संरक्षण के प्रमुख करने लगे हैं। इससे उनके निजी और शासकीय निहितार्थ साधे जाने लगे। इसका चलन बढ़ा और प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ने लगी। 

कुछ महीने पहले कई सर्किल में पदस्थ वन संरक्षकों ने लिखित में मुख्यालय को शिकायत पत्र लिखा है कि डीएफओ उनकी नहीं सुनते हैं। दिलचस्प तथ्य भी है कि यह सारे पत्र प्रशासन एक अथवा मुख्यालय के बाबू एक किनारे पटक देते हैं। खैर दो महीने के सेवकाल में वन पर प्रमुख कितना ठीक कर पाते हैं, यह उनकी क्षमता पर सवाल खड़े हो रहे हैं?