मैं खड़ा इस पार अक्सर सोचता उस पार क्याजो पढ़ा है - Dinesh Malaviya “Ashk”


स्टोरी हाइलाइट्स

कोई कुछ कहता तो कोई दूसरा कुछ कह रहासोचता रहता हूँ लेकिन इनका है आधार क्या।

  मैं खड़ा इस पार अक्सर सोचता उस पार क्या जो पढ़ा है , जो सुना , वो दूसरा संसार क्या। कोई कुछ कहता तो कोई दूसरा कुछ कह रहा सोचता रहता हूँ लेकिन इनका है आधार क्या। शब्द तो कितने चलन मे हैं जिन्हें सुनता रहा मोक्ष क्या, जन्नत है क्या और मगरिफत,भवपार क्या। वक्त के अनुरूप बदले नयम, परिभाषा सभी युग मे हर बदला नहीं है आचरण,व्यवहार क्या। आदमी जैसा था वैसा ही रहा, बदला नहीं आ चुके न इस धरा पर पयंबर, अवतार क्या। जो हुआ स्थित स्वयं मे, पार द्वंद्वों के गया क्या उसे फिर लाभ-हानि, जीत क्या है हार क्या। जो नहीं कर पा रहा है प्यार बंदों से यहाँ वो ख़ुदा से भी करेगा निष्कपट व्यवहार क्या।