हिन्दू धर्म (Hindu Religion) का जीवन में महत्व 


स्टोरी हाइलाइट्स

हिन्दू धर्म (Hindu Religion) का जीवन में महत्व 
हिन्दू धर्म का आधार पुस्तकीय सिद्धान्त नहीं है यह तो दैनिक जीवन में किए जाने वाले आचरणों की व्यवस्था है। हिन्दू धर्म व्यक्ति और समाज में परस्पर संबंध स्थापित करता है। यहाँ सामाजिक आस्थाओं और आकांक्षाओं के अनुकूल आचरण करने से जहाँ व्यक्ति का कल्याण होता है, वहीं समाज में शान्ति तथा व्यवस्था बनी रहती है। इन्हीं दशाओं में व्यक्ति और समाज की निरन्तर प्रगति होती है|समाज के लिए कल्याणकारी इन आचरणों का निष्ठा से पालन कर व्यक्ति अपना जीवन सार्थक करता है। जीवन की सार्थकता ही प्रत्येक हिन्दू का लक्ष्य होता है हिन्दू धर्म एक व्यावहारिक धर्म है, सैद्धान्तिक नहीं। 


हिन्दू धर्म की अवधारणा:"भारतीय जीवन और विकास का रहस्य है|आचार व्यवहारों की किसी सीमा तक सुव्यवस्था, विश्वास तथा मानव जीवन के चार उद्देश्यों- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के लिए संतुलित प्रयोग। कुल मिलाकर भारतीय सभ्यता की यह अनन्य देन है- प्रत्येक व्यक्ति, जाति, वर्ण तथा व्यवस्था के लिए धर्म की भावना, जीवन की आवश्यकताओं के अनुरूप कुछ कर्तव्यों का पालन एवं उनकी पूर्ति कर उनसे परे पहुँचना यही धर्म है।

"धर्म शब्द की उत्पत्ति 'धृ' धातु से हुई है। धृ का अर्थ होता है धारण करना,रखना अथवा होना। हिन्दू धर्म व्यक्ति से अपेक्षा रखता है कि वह सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत उन कर्तव्यों का पालन करे जिनकी अपेक्षा समाज रखता है।धर्म चारों वर्ण एवं चारों पुरुषार्थों से सम्बन्धित, पालन करने योग्य सम्पूर्ण कर्तव्य है।"धर्म एक धारणा अथवा आस्था नहीं है। यह जीवन की एक विधि या आचरणों की व्यवस्था है, जो कि व्यक्ति के रूप में तथा समाज के एक सदस्य के रूप में जीवन्तता प्रदान करता है। यह व्यक्ति के व्यवहारों को नियमित करता है तथा व्यक्तित्व का विकास करता है।

 धर्म का अर्थ उस आचरण से है जो समय के अनुकूल हो। हिन्दू धर्म चूँकि सैद्धान्तिक नहीं व्यवहारात्मक है, इसलिए धर्म को परिभाषित हुए मात्र यह कहना उपयुक्त होगा कि- "धर्म सम्पूर्ण जीवन प्रणाली से सम्बन्धित नियमों, कार्य-प्रणालियों और विधियों की एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके ईश्वरीय होने की आस्था प्रचलित है तथा जो समय व स्थान के अनुकूल है।" धर्म एक जीवन पद्धति है, जो मनुष्य को नियमों कार्य प्रणालियों और विधि-निषेधों से संयमित और नियमित कर उसे नैतिक, मान्य और पूज्य बनाता है।