यहूदी धर्म (Judaism): मान्यता, इतिहास और तथ्य-यहूदी धर्म


स्टोरी हाइलाइट्स

यहूदी धर्म विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से है, तथा दुनिया का प्रथम एकेश्वरवादी धर्म माना जाता है। यह सिर्फ एक धर्म ही नहीं ...यहूदी धर्म (Judaism)

यहूदी धर्म यहूदी धर्म (Judaism): मान्यता, इतिहास और तथ्य-यहूदी धर्म यहूदी धर्म विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से है, तथा दुनिया का प्रथम एकेश्वरवादी धर्म माना जाता है। यह सिर्फ एक धर्म ही नहीं बल्कि पूरी जीवन पद्धति है। जो कि इस्राइल और हिब्रू भाषियों का राजधर्म है। इस धर्म में ईश्वर और उसके नबी यानि पैग़म्बर की मान्यता प्रधान है। इनके धार्मिक ग्रन्थों में तनख़, तालमुद तथा मिद्रश प्रमुख हैं। यहूदी मानते हैं कि यह सृष्टि की रचना से ही विद्यमान है,यहूदियों के धार्मिक स्थल को मन्दिर व प्रार्थना स्थल को सिनेगॉग कहते हैं। ईसाई धर्म व इस्लाम का आधार यही परंपरा और विचारधारा है। इसलिए इसे इब्राहिमी धर्म भी कहा जाता है। Judaism, monotheistic religion developed among the ancient Hebrews. Judaism is characterized by a belief in one transcendent God who revealed himself to Abraham, Moses, and the Hebrew prophets and by a religious life in accordance with Scriptures and rabbinic traditions. Judaism is the complex phenomenon of a total way of life for the Jewish people, comprising theology, law, and innumerable cultural traditions. यहूदी धर्म (JUDAISM): मान्यता, इतिहास और तथ्य यहूदियों के जीवन की हर अवस्था, हर हफ़्ता, हर दिन और दिन की हर गतिविधि, अर्थ से भरी हुई होती है. वह अर्थ यहूदी धर्म की व्यावहारिक शिक्षाओं से मिला है जिन्हें हलाख़ा कहते हैं, जिसका अर्थ “मार्ग” होता है. यहूदियों का एकेश्वरवादी धर्म है, जो यह मानता है कि ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव मानव गतिविधियों और इतिहास द्वारा होता है. यह उपस्थिति कुछ मान्यताओं और मूल्यों की अभिव्यक्ति है, जो कर्म, सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति में दृष्टिगोचर होती है. यहूदी धर्म की मान्यता यहूदी धर्म का मानना है कि यहूदी समुदाय का दिव्य के साथ प्रत्यक्ष सामना होता है और स्थापित होने वाला यह संबंध, बेरित, अटूट है और यह समूची मानवता के लिए महत्त्वपूर्ण है. ईश्वर को ‘तोरा प्रदायक’, यानी दिव्य प्रदायक के रूप में देखा जाता है. अपने पारंपरिक व्यापक रूप में ‘हिब्रू ग्रंथ’ और यहूदी मौखिक परंपराएं, धार्मिक मान्यताएँ रीति-रिवाज और अनुष्ठान, ऐतिहासिक पुनर्संकलन और इसके आधिकारिक ग्रंथों की विवेचना है. ईश्वर ने दिव्य आशीष के लिए यहूदियों का चुनाव करके उन्हें मानवता तक इसे पहुँचाने का माध्यम भी बनाया और उनसे तोरा के नियमों के पालन और विश्व के अन्य लोगों के गवाह के रूप में काम करने की अपेक्षा की. यहूदी धर्म के अन्य तत्त्व मोजेज़ के साथ उभरे. इनमें यह मूल मान्यता भी शामिल है कि नैतिक चयन की कुशलता ही मानव जाति को परिभाषित करती है. इसीलिए सभी व्यक्ति ईश्वर के साथ एक प्रतिज्ञा द्वारा जुड़े हैं. यह एक ऐसा संबंध है, जिसे यहूदी उदाहरण और प्रमाण द्वारा सामने रखते हैं. मनुष्य के पास ईश्वर के क़ानून के आज्ञापालन (अच्छाई) और आज्ञा का उल्लंघन (बुराई), दो विकल्प हैं और इसी संदर्भ में वह किसी एक का नैतिक चुनाव करता है. पाप को क़ानून या तोरा का जान-बूझकर किया गया उल्लंघन माना जाता है और तोरा की ओर पुनः वापस जाना एक विमर्शित चयन कहा जाता है. यही नहीं, मनुष्य की नैतिक प्रवृत्ति न्यायपूर्ण समाज की स्थापना तक विस्तृत और उससे गुंथी है. कानान पर विजय को ‘पलायन’ हेतु ईश्वर के हस्तक्षेप और सहायता के एक अंग के रूप में देखा जाता है. तब फ़िलीस्तीन जैसे नए शत्रु सामने आए और ‘न्यायाधीशों की पुस्तक’ में उल्लिखित परिवर्तन के दौर की शुरुआत हुई. इज़राइल की 12 बिखरी हुई जनजातियों को बुजुर्गों या मत के दृढ़ समर्थकों के नेतृत्व में एकजुट होने का अवसर मिला. जॉर्डन नदी के दोनों ओर बहुत से पूजा स्थल और वेदियाँ स्थापित की गईं और प्रतिज्ञापत्र की मंजूष, जिसे अक्सर शिलो में ही रखा जाता था, चल वस्तु मानी गई थी. क्या है यहूदी धर्म का इतिहास ऐसा माना जाता है कि यहूदी धर्म के संस्थापक इब्राहीम 20वीं शताब्दी ई. पू. के मध्य में उत्तरी मेसोपोटामिया से कानान चले गए थे. वहाँ से इब्राहीम के अर्द्ध ख़ानाबदोश वंशज और उनके पुत्र इसाक और जेकब, जो तब तक 12 यहूदी परिवार बन चुके थे, मिस्र चले गए, जहाँ उन्हें कई पीढ़ियों तक ग़ुलाम बनाकर रखा गया और ई.पू 13वीं शताब्दी में वे वहाँ पलायन करके इज़राइली कानान लौटे. यहूदी धर्म की तरह धर्माध्यक्षों का धर्म भी युगों-युगों तक विविध विदेशी विचारो के संपर्क में आया, इनमें मारी, उगारित, बेबिलोनिया, मेसोपोटामिया और मिस्र के प्रभाव सम्मिलित हैं. इज़राइली ईश्वर को विश्व का सृजनहार माना जाता है, जिसकी खोज इब्राहीम ने नहीं की थी, परंतु वह ईश्वर के साथ प्रतिज्ञाबद्ध हुए थे. ईश्वर ने इब्राहीम के साथ अपने वायदे मोजेज़ के माध्यम से पूरे किए, जिन्होंने पलायन का नेतृत्व किया और माउंट सिनाई में इज़राइल पर और प्रतिज्ञाओं का दायित्व रखा और अपने साथियों को कानान ले आए. धर्माध्यक्षों की कहानियों के अनुसार, कानान में बसना ईश्वर द्वारा प्रतिज्ञा पालन का अभिन्न अंग है. मिस्र में ग़ुलाम बने रहने के अनुभव से केवल उक्त मान्यता की नहीं, इसकी भी पुष्टि हुई कि इज़राइली ईश्वर क्षेत्रीय सीमाओं से परे समूची पृथ्वी का ईश्वर है. यहूदी और यहूदत का अर्थ प्राचीन मेसोपोटामिया में सामी मूल की विभिन्न भाषाएँ बोलने वाले अक्कादी, कैनानी, आमोरी, असुरी आदि कई खानाबदोश कबीले रहा करते थे. इन्हीं में से एक कबीले का नाम हिब्रू था. वे यहोवा को अपना ईश्वर और अब्राहम को आदि-पितामह मानते थे. उनकी मान्यता थी कि यहोवा ने अब्राहम और उनके वंशजों के रहने के लिए इस्त्राइल प्रदेश नियत किया है. प्रारम्भ में गोशन के मिस्त्रियों के साथ हिब्रुओं के सम्बंध अच्छे थे, परन्तु बाद में दोनों में तनाव उत्पन्न हो गया. अत: मिस्त्री फराओं के अत्याचारों से परेशान होकर हिब्रू लोग मूसा के नेतृत्व में इस्त्राइल की ओर चल पड़े. इस यात्रा को यहूदी इतिहास में ‘निष्क्रमण’ कहा जाता है. इस्त्राइल के मार्ग में सिनाई पर्वत पर मूसा को ईश्वर का संदेश मिला कि यहोवा ही एकमात्र ईश्वर है, अत: उसकी आज्ञा का पालन करें, उसके प्रति श्रद्धा रखें और 10 धर्मसूत्रों का पालन करें. मूसा ने यह संदेश हिब्रू कबीले के लोगों को सुनाया. तत्पश्चात् अन्य सभी देवी-देवताओं को हटाकर सिर्फ़ यहोवा की आराधना की जाने लगी. इस प्रकार यहोवा की आराधना करने वाले ‘यहूदी’ और उनका धर्म ‘यहूदत’ कहलाया. यहूदियों के पैगम्बर यहूदी धर्म की मानता है कि ईश्वर अपना संदेश पैगम्बरों के माध्यम से प्रेषित करता है. यहूदी लोग अब्राहम, ईसाक और जेकब को अपना पितामह पैगम्बर, मूसा को मुख्य पैगम्बर तथा एलिजा, आयोस, होसिया, इजिया, हजकिया, इजकील, जरेमिया आदि को अन्य पैगम्बर मानते हैं. यहूदी धर्म एकेश्वरवाद पर आधारित है. उनका ईश्वर ‘यहोवा’ अमूर्त, निर्गुण, सर्वव्यापी, न्यायप्रिय, कृपालु और कठोर अनुशासनप्रिय है. अपनी आज्ञाओं के उल्लंघन होने पर वह दंड भी देता है. इतना ही नहीं, यहूदी लोग यहोवा की आज्ञाओं में सैन्य कृत्यों का भी संदेश पाते हैं. यहोवा उनको धर्म रक्षा के लिए सैन्य संघर्ष का भी आदेश देता है. क्या है दस धर्म सूत्र यहूदी धर्म में 10 धर्माचरणों का विशेष महत्त्व है, जिनका पालन करने पर यहोवा की अनुपम कृपा प्राप्त होती है. ये दस धर्म सूत्र निम्न हैं- मैं स्वामी हूँ तेरा ईश्वर, तुझे मिस्त्र की दासता से मुक्त कराने वाला. मेरे सिवा तू किसी दूसरे देवता को नहीं मानेगा. तू अपने स्वामी और अपने प्रभु का नाम व्यर्थ ही न लेगा. सबाथ (अवकाश) का दिन सदैव याद रखना और उसे पवित्र रखना.छ: दिन तू काम करेगा, अपने सब काम, किन्तु सातवाँ दिन सबाथ का दिन है. याद रखना कि छ: दिन तक तेरे प्रभु ने आकाश, पृथ्वी और सागर तथा उन सबमें विद्यमान सभी कुछ की रचना की, फिर सातवें दिन विश्राम किया था. अत: यह प्रभु के विश्राम का दिन है. इस दिन तू कोई भी काम नहीं कर सकता. अपने माता-पिता का सम्मान कर, उन्हें आदर दे ताकि प्रभु प्रदत्त इस भूमि पर तू दीर्घायु हो सके. तू हत्या नहीं करेगा. तू परस्त्री, परपुरुष गमन नहीं करेगा. तू चोरी नहीं करेगा. तू अपने पड़ोसी के ख़िलाफ़ झूठी गवाही नहीं देगा. तू अपने पड़ोसी के मकान, पड़ोसी की पत्नी, पड़ोसी के नौकर या नौकरानी, उसके बैल, उसके गधे पर बुरी नज़र नहीं रखेगा. यहूदियों के धर्मग्रंथ यहूदियों के बीच अनेक धर्मग्रंथ प्रचलित हैं, जिसमें कुछ प्रमुख हैं… तोरा,जो बाइबिल के प्रथम पाँच ग्रंथों का सामूहिक नाम है और यहूदी लोग इसे सीधे ईश्वर द्वारा मूसा को प्रदान की गई थी. तालमुड, जो यहूदियों के मौखिक आचार व दैनिक व्यहार संबंधी नियमों, टीकाओं तथा व्याख्याओं का संकलन है. इलाका, जो तालमुड का विधि संग्रह है. अगाडा,जिसमें धर्मकार्य, धर्मकथाएं, किस्से आदि संग्रहीत हैं. तनाका, जो बाइबिल का हिब्रू नाम है, आदि. 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