क्या है कोरोना का बाइप्रोडक्ट, क्या भगवान् का ही केवल आसरा-सरयूसुत मिश्रा


स्टोरी हाइलाइट्स

क्या है कोरोना का बाइप्रोडक्ट, क्या भगवान् का ही केवल आसरा -कोरोना ने सरकारों की भूमिका और व्यवस्था के बहुत कमज़ोर पक्ष को उजागर कर दिया है.......

क्या है कोरोना का बाइप्रोडक्ट क्या भगवान् का ही केवल आसरा -सरयूसुत मिश्रा कोरोना ने सरकारों की भूमिका और व्यवस्था के बहुत कमज़ोर पक्ष को उजागर कर दिया है. जिंदगी में धन-संपत्ति सहित सब कुछ होते हुए भी कुछ न कर पाने की विवशता के चलते मौत का जो वीभत्स और क्रूर स्वरूप दिखा है उससे लगने लगा है कि अब भगवान के अलावा किसी का भी सहारा या विश्वास नहीं बचा है. अस्पतालों में जगह खाली नहीं है. महामारी से बचने के लिए जो इंजेक्शन है वह मिल नहीं रहा है. लोग अपने परिजनों की जीवन रक्षा के लिए इंजेक्शन तलाशते भटक रहे हैं. अखबारों और न्यूज़ चैनल पर जो दृश्य दिखाई पड़ रहे हैं, वे डरावने हैं. ऑक्सीजन की आपूर्ति हो नहीं पा रही है. ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों की मौतें हो रही हैं. इन्हीं मौतों के बीच जिंदगी में धन जुटाने के लिए कुछ लोग इंजेक्शन की भी कालाबाजारी कर रहे हैं. सरकार हर रोज नए नए निर्देश जारी कर रही है. कभी लॉकडाउन तो कभी कर्फ्यू लगाकर जागरूकता के नाम पर डर का एक माहौल पैदा किया जाता है. शनिवार और रविवार को पूरे प्रदेश में लॉक डाउन रहेगा. अब गुरुवार-शुक्रवार को बाजारों पर नजर डालिए तो सामान्य से अधिक भीड़ नजर आएगी. लॉकडाउन नहीं होता तो सामान्य रूप से बाजारों में उतनी भीड़ नहीं होती. अस्पतालों में मरीजों के इलाज की व्यवस्था, ऑक्सीजन का प्रबंध, महामारी के लिए जरूरी इंजेक्शन की उपलब्धता में तो सरकार की भूमिका दिखाई नहीं पड़ रही है. कुछ अस्पताल मनमाने ढंग से मरीजों से पैसे वसूल रहे हैं. अस्पतालों में बिस्तर नहीं होने से गलियारों में लोग इलाज करा रहे हैं. इंदौर में रेडमेसिविर के लिए 7 घंटे तक लाइन में लगे, फिर भी खाली हाथ लौटे. दुकानों पर बोर्ड लगा दिए गए हैं कि इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है. इंजेक्शन की कीमत 10 से 15 हज़ार वसूली जा रही है. जिस तरह से कोरोना महामारी बढ़ती जा रही है, हर दिन नए मरीज मिल रहे हैं, उसको देखते हुए व्यवस्थाएं तो लगभग चरमरा हो गई हैं. अस्पताल में न तो बिस्तर हैं न इंजेक्शन और दवाएं. यहां तक कि ऑक्सीजन भी मिलना दूभर हो गया है. जिन लोगों की कोरोना से मौत हो रही है, उनके अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी भी खत्म हो रही हैं. मध्यप्रदेश के संदर्भ में पिछले दिनों एक बड़े नौकरशाह ने पत्रकार वार्ता में  कहा कि अस्पतालों के सामने चैलेंज है. हर रोज अखबारों में मौतों के जो आंकड़े छप रहे हैं, वह सरकार के आंकड़ों से भिन्न हैं. इसका मतलब है कि सरकार यह भी बताने की स्थिति में नहीं है कि कोरोना से कितनी मौतें हुई हैं. हर दिन उच्च स्तरीय बैठक होती है. कभी नीचे अस्पताल स्तर तक बैठक भी हो तो बेहतर होगा. आज हालात ऐसे हो गए हैं कि लोगों का व्यवस्था और सरकार से भरोसा डगमगाने लगा है. लगता है जैसे सब कुछ भगवान भरोसे चल रहा है. दुर्भाग्य से कोरोना महामारी लग गई तो फिर भगवान ही बचाए तो बचाए, व्यवस्था और सरकार के प्रबंधों से तो कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है. लोग कोरोना गाइडलाइन का पालन करें यह तो बहुत जरूरी है, और जो लोग अपने आप को बेमौत मरने से बचाना चाहते हैं, उन्हें तो मास्क लगाना ही चाहिए. कोई भी सरकार व्यवस्थाओं और संसाधनों की कमी या अव्यवस्था के कारण हुई एक की मौत की जिम्मेदारी से कैसे बन सकती. सवाल यह है की व्यवस्थाएं चरमरा क्यों रही हैं. क्या सरकार और प्रशासन केवल दिखावटी प्रबंधन पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और वास्तविक रूप से जो व्यवस्थाएं की जाना चाहिए उनकी अनदेखी हो रही है?कोरोना महामारी से जिन लोगों ने अपने परिजनों को खोया है और यह मौतें अस्पताल में बिस्तर नहीं होने से या इंजेक्शन नहीं होने से या ऑक्सीजन नहीं मिलने से हुई हैं, वह तो प्रशासन का आपराधिक कृत्य ही माना जाएगा. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरी संजीदगी के साथ इस आपदा से निपटने में जुटे हुए हैं. मुख्यमंत्री को व्यवस्था की गड़बड़ियों के कारण होने वाली हर मौत का प्रशासन से हिसाब लेना चाहिए. ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रबंध की कमी के कारण कोई मौत न हो. मौत तो शाश्वत सत्य है. हर व्यक्ति को वक्त आने पर मरना है. कोरोना ने तो हमको समझा दिया है कि इस महामारी में कोई अमीर है ना कोई गरीब है, न कोई शासक है न प्रशासक. महामारी ने किसी को नहीं छोड़ा है. इसलिए कर्तव्य के प्रति ईमानदारी कोरोना का बायप्रोडक्ट होना चाहिए.