लक्ष्य-साधना में बाधक, वास्तव में सहायक हैं
-दिनेश मालवीय
किसी भी फील्ड में व्यक्ति को अपनी मंजिल आसानी से नहीं मिलती. इसमें अनेक तरह की बाधाएं आती हैं. जो जितना बड़ा लक्ष्य लेकर चलता है, उसके मार्ग में बाधाएं भी उतनी ही बड़ी आती हैं. इनमें कुछ बाधाएं तो किसी
परिस्थिति के कारण पैदा होती हैं तो, कुछ बाधाएं साधक से ईर्ष्या रखने वाले लोग पैदा करते हैं.
साधक अक्सर यह गलती कर बैठता है कि जो लोग उसके मार्ग में बाधा पहुँचा रहे हैं या उसके खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं, वह उन्हें अपना विरोधी मानने लगता है. इससे उसकी साधना में और अधिक बाधा पैदा हो जाती है. वह
इसके कारण अपने मन की स्थति को बिगाड़ लेता है,जिसके कारण उसका सब किया-धरा गुड़ गोबर हो जाता है. साधक के लिए हमेशा महापुरुषों ने यही
मार्गदर्शन दिया है कि बाधा पहुँचाने वालों को अपना साधक नहीं, बल्कि सहायक मानों. ईश्वर की इच्छा से ही वे साधक की परीक्षा लेने के लिए आते हैं.
सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र से महर्षि विश्वामित्र का क्या विरोध था? कुछ भी नहीं. लेकिन उनके कारण हरिश्चंद्र को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ा! अंत में यह भेद खुलता है कि हरिश्चन्द्र की ईश्वर द्वारा विश्वामित्र के माध्यम से परीक्षा ली जा रही थी.
इस सम्बन्ध में अन्य भी अनेक दृष्टांत हैं. लेकिन महाराष्ट्र के महान संत एकनाथ के जीवन का एक प्रसंग बहुत उपयुक्त है. एकनाथजी का नियम था कि वह रोज़ाना नदी पर नहाने जाते थे. उनसे द्वेष रखने वाले एक व्यक्ति का घर
रास्ते में पड़ता था. एक दिन जब एकनाथ स्नान करके लौट रहे थे, तो उस व्यक्ति ने अपनी खिड़की पर खड़े होकर उनके ऊपर थूंक दिया, जिससे उनका स्नान बेकार हो गया और वह अशुद्ध हो गये. वह फिर से स्नान करके आये, तो उस व्यक्ति ने फिर उन पर थूंक दिया. ऐसा इक्कीस बार हुआ.
एकनाथ ने उस व्यक्ति पर न तो गुस्सा किया और न उससे कुछ अपशब्द कहे. उनके मन का संतुलन और शांति यथावत रहे. एकनाथजी के इस व्यवहार पर वह व्यक्ति
नीचे उतर कर आया और उसने पूछा -“महाराज मैंने आपके चित्त की शान्ति को भंग करने की इतनी कोशिश की, लेकिन आप शांत बने रहे.”
एकनाथजी ने कहा-“ मैंने तो कुछ भी ख़ास काम नहीं किया है. तुम्हारे जैसा उपकारी और सहायक भाग्य से ही कभी-कभी मिलता है. तुम्हारे कारण आज मुझे 21 बार पवित्र नदी में स्नान का मौका मिला. मेरे जीवन में ऐसा पहली बार हुआ कि मैंने एक दिन में 21 बार इस तरह पवित्र स्नान किया हो.
वह व्यक्ति बहुत शर्मिंदा हुआ और उनसे क्षमा याचना करके उनका शिष्य बन गया.
इस प्रकार के अनेक उदाहरण हमारे इतिहास और शास्त्रों में भरे पड़े हैं. दुनिया में भारत की आध्यात्मिक श्रेठता का परचम लहराने वाले स्वामी विवेकानंद को हमारे ही देशवासियों ने क्या-क्या अच्छा-बुरा नहीं किया.
उनकी “पत्रावली” में सबकुछ पढने को मिल जाएगा. श्रीरामचरितमानस जैसी अमर कृति रचने वाले संत तुलसीदास को कुछ कम परेशान नहीं किया गया. लेकिन ये लोग कभी इससे विचलित नहीं हुए और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे.
आप किसी भी फील्ड में आगे बढ़ना चाहते हैं, तो बाधाओं और बाधाएं पैदा करने वालों की न चिंता कीजिये और न उनके प्रति बैर भाव रखिये. यह आपकी अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठा की परीक्षा के लिए होता है. ये लोग बाधक नहीं,
सहायक हैं. उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रखिये, कि उन्होंने आपके संकल्प को और मजबूत करने में मदद की.