इक दास्ताने-ग़म रही है ज़िन्दगी हमारी टिक सकी ज़्यादा नहीं कोई ख़ुशी हमारी। - दिनेश मालवीय "अश्क"


स्टोरी हाइलाइट्स

इक दास्ताने-ग़म रही है ज़िन्दगी हमारीटिक सकी ज़्यादा नहीं कोई ख़ुशी हमारी।

इक दास्ताने-ग़म रही है ज़िन्दगी हमारी टिक सकी ज़्यादा नहीं कोई ख़ुशी हमारी। रह जाएगा यहीं सब जो भी यहाँ हमारा जाएँगी साथ केवल नेकी-बदी हमारी। करती यही यह दुनिया झूठ और फरेब हमसे काम आयी इनके आगे दीवानगी हमारी। यह तौर दोस्ती का बतलाओ क्या सही है हमने कही तुम्हारी तुमने कही हमारी। तुम ले के आ रहे हो भर भर जो मय के प्याले तुम जानते नहीं है क्या तिश्नगी हमारी। जिसके लिए लिखी थी उसको सुना न पाया किस काम की भला फिर यह शायरी हमारी। उसने ज़रा क्या कह दिया मुझको ज़हीन शायर तब से रुकी नहीं है पल भर तब से हँसी हमारी।