स्टोरी हाइलाइट्स
आजकल पूरे देश में भारतीय संस्कृति के आराध्य देव भगवान गणेश का महोत्सव चल रहा है. विघ्न विनाशक श्री गणेश का यह उत्सव.....
गणेश उत्सव को मन का उत्सव बनाए
-सरयूसुत मिश्रा
आजकल पूरे देश में भारतीय संस्कृति के आराध्य देव भगवान गणेश का महोत्सव चल रहा है. विघ्न विनाशक श्री गणेश का यह उत्सव दस दिनों तक चलता है. ग्यारहवें दिन अनंत चतुर्दशी को महोत्सव का समापन होता है .चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक चलने वाले गणेश उत्सव की इन दिनों चारों तरफ धूम मची है.
हमारे देश में गणेश उत्सव की परंपरा बहुत पुरानी है. पहले लोग घरों में गणेश बिठाते थे .शिवाजी महाराज के बालपण में निकालने उनकी मां जीजाबाई गणेश उत्सव का त्यौहार मनाती थीं. पेशवा शासनकाल में गणेश उत्सव का स्वरूप व्यापक हुआ.
बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव को सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाना शुरू किया. तिलक के प्रयासों से गणेश उत्सव को राष्ट्रीय पहचान मिली. महाराष्ट्र से शुरू हुआ गणेश उत्सव आज पूरे देश में मनाया जाने लगा है. यहां तक कि विदेशों में भी गणेश उत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुई है.
बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव के सार्वजनिक समारोह को राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से प्रारंभ किया. आजादी की लड़ाई में गणेश उत्सव राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया. इस उत्सव के माध्यम से छूआछूत दूर करना और समाज में लोगों को संगठित करने के साथ ही आम आदमी को ज्ञानवर्धक भी किया जाता था. अनेक सुन्दर सांस्कृतिक होते थे, जिनके माध्यम से लोगों को सत्य और अच्छे चरित्र की शिक्षा मिलती थी.
भगवान श्रीगणेश हिंदुओं के आदि आराध्य देव हैं. हिंदुओं में कोई भी पूजा हो, धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ हो, विवाह समारोह या कोई अन्य समारोह, इसके निर्विघ्न संपन्न होने के लिए सबसे पहले श्रीगणेश की पूजा की जाती है.
इस वर्ष गणेश उत्सव कोरोना के भय के कारण थोड़ा सीमित में स्वरूप में मनाया जा रहा है. बाल गंगाधर तिलक ने जिस भावना और एकता के लिए सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की थी, उसको हमारे फिल्मी नायक और जननायक धीरे धीरे कमजोर जैसा कर रहे हैं. मीडिया, खासकर टीवी और अखबारों में चित्र और वीडियो में में हमारे नायक दिखावे को ज्यादा प्राथमिकता देने लगे हैं.
गणेश उत्सव के शुभारंभ चतुर्थी के दिन से एक दिन पहले हर शहर में जननायक गणेश की मूर्तियां सर पर लेकर ढोल धमाकों के साथ घर ले जाते हैं. यह नायक इस अवसर पर चित्र खिंचवाने और अखबारों में छपवाने कल लोभ संवरण नहीं कर पाते. दूसरे दिन अखबारों में ऐसे चित्र देखकर लोगों में ऐसा भाव विकसित होता है , कि हमारे नेता गणेश पूजन में वास्तव में विश्वास रखते हैं कि केवल मीडिया अटेंशन के लिए ऐसा करते हैं.
मुंबई में तो हर फिल्मी नायक अपने घर में गणेश बढ़ाते हैं और उसको बाकायदा अपनी पिया टीम के माध्यम से प्रचारित भी करते हैं. यहां तक की कुछ दूसरे धर्मों के फिल्मी नायक भी इस अवसर को अपनी महानता के लिए उपयोग करने से भी नहीं चूकते.
वे यह साबित करने का कोई भी प्रयास नहीं छोड़ते कि कैसे उनका दूसरे धर्म में भी अटूट विश्वास है. वे हर धर्म का सम्मान करते हैं.
यह अच्छी बात है कि हर व्यक्ति को एक दूसरे के धर्म का सम्मान करना चाहिए,लेकिन दिखावे और पाखंड के लिए ऐसा करना उनके स्वयं के धर्म का अपमान जैसा है. धर्म निजी चीज है, व्यक्ति की निजी आस्था है. इसको पब्लिक करने की क्या आवश्यकता है?
एक और विकार यह देखने में आ रहा है कि पहले ऐसे उत्सवों और त्यौहारों पर आयोजन भले बहुत भव्य और आकर्षक न होते थे, लेकिन लोग भाव के साथ उस देवता के संदेशों पर चिंतन मनन और जीवन में उतारने का प्रयास करते थे.
भगवान गणेश को विघ्नविनाशक माना जाता है. अगर आज के संदर्भ में देखा जाए, तो लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में जो लोग नेतृत्व कर रहे हैं,
उनका दायित्व है कि वे आम जनता के लिए ऐसी परिस्थितियां निर्मित करें, जिसमें कम से कम वे कर सकें. आशय यह है इन नेताओं को स्वयं विघ्न विनाशक की भावना अपने भीतर समाहित करने की जरूरत है ,भले ही वे भगवान गणेश की पूजा करें या न करें.
टीवी और अखबारों में अपने चित्र छपवाने से भले ही ऐसे लोगों को उनके पद- प्रतिष्ठा और धन का अहम संतुष्ट होता हो, लेकिन समाज में इससे नकारात्मक संदेश जाता है. भगवान श्रीगणेश कई स्वरूप माने जाते हैं. वक्रतुंड, एकदंत, महोदर ,गजानन, विघ्नराज जैसे कई स्वरूप में भगवान गणेश ने असुरों का संघार किया, उनके अहंकार को भंग किया. हमारे सभी देवता अहंकार, क्रोध लोग आदि को छोड़ने की प्रेरणा और संदेश देते हैं.
हम भाव के साथ देवताओं के उत्सव और त्योहार मनाएं और उनके संदेश को जीवन में उतारें तो उससे हमारा स्वयं का अहंकार क्रोध और लोग कम होगा. जीवन में यह साधना सतत करने से धीरे-धीरे उपलब्धि होगी और दिखावे और पाखंड स्वटी: दूर हो जाएगा. इससे आत्म कल्याण के साथ समाज कल्याण और जनकल्याण भी सुनिश्चित हो सकेगा.
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