मत्स्य पुराण संक्षेप
-दिनेश मालवीय
वैष्णव सम्प्रदाय के पुराणों में इस पुराण का बहुत महत्त्व है. इसमें वैष्णव पंथ के व्रत, पर्व, तीर्थ, दान, राजधर्म और वास्तुकला से सम्बंधित बहुत उपयोगी ज्ञान समाहित है. इसमें 14 हज़ार श्लोक हैं.
‘विष्णु पुराण’ के पहले अध्याय में ‘मत्स्यावतार’ की कथा दी गयी है. इसीके आधार पर इसका यह नाम पड़ा है. प्रारंभ काल से पहले एक छोटी मछली मनु महाराज की अंजुलि में आती है. वह उसे अपने कमण्डल में डाल लेते हैं. धीरे-धीरे मछली अपना आकार बढ़ाती जाती है. सरोवर और नदी भी उसके लिए छोटे पड़ जाते हैं. तब मनु उसे सागर में छोड़कर उससे पूछते हैं कि वह कौन है.
मत्स्य रूप में भगवान मनु से कहते हैं कि प्रलय काल में तुम मेरे सींग में अपनी नौका को बांधकर सुरक्षित ले जाना और श्रृष्टि की रचना करना. मनु भगवान को पहचान कर उनकी स्तुति करते हैं. मनु प्रलय काल में मत्स्य भगवान् द्वारा अपनी सुरक्षा करते हैं. फिर ब्रह्मा द्वारा मानसी सृष्टि होती है, लेकिन अपनी उस श्रृष्टि का कोई परिणाम न देखकर दक्ष प्रजापति मैथुनी-श्रृष्टि का विकास करते हैं.
इसके बाद इस पुराण में मनवंतर, सूर्य वंश, चन्द्र वंश, यदु वंश, क्रोष्टु वंश, पुरु वंश, कुरु वंश और अग्नि वंश आदि का वर्णन आता है. इसमें ऋषि-मुनीयों के वंशों का भी उल्लेख है. इसमें ‘राजधर्म’ और ‘राजनीति’ का बहुत श्रेष्ठ वर्णन है. प्राचीन काल में राजा का विशेष महत्त्व होता था. इसलिए उसकी सुरक्षा का बहुत ध्यान रखना पड़ता था. इसके सम्बन्ध में इस पुराण में बहुत व्यावहारिक ज्ञान दिया गया है. इसके अनुसार, राजा को अपनी सुरक्षा के विषय में हमेशा सतर्क और शंकालु रहना चाहिए. बिना परीक्षण करे भोजन नहीं करना चाहिए. सोने से पहले शैया की अच्छी तरह जाँच कर लेनी चाहिए. भीड़ या जलाशय में अकेले नहीं जाना चाहिए. अनजान स्त्री से सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए.
इस पुराण में छह दुर्गों के निर्माण की बात कही गयी है- धनु दुर्ग, मही दुर्ग, नर दुर्ग, वार्क्ष दुर्ग, जल दुर्ग और गिरि दुर्ग. आपातकाल के लिए दुर्ग में सेना और प्रजा के लिए भरपूर खाद्य सामग्री, हथियार और दवाओं का भण्डार होना चाहिए. उसे एकाएक किसी पर भी विश्वास नहीं करना चाइये.
‘मत्स्य पुराण’ में पुरुषार्थ पर विशेष रूप से बल दिया गया है. जो व्यक्ति आलसी होता है और कर्म नहीं करता, वह भूखों मरता है. इसमें स्थापत्य कला का भी सुंदर विवेचन किया गया है. इसमें उस काल के 18 वास्तुशिल्पिओं के नाम दिए गये हैं, जिनमें विश्वकर्मा और मय के नाम उल्लेखनीय हैं. इस पुराण में सबसे अच्छा घर उसे बताया गया है, जिसमें चारों ओर दरवाजे और दालान होते हैं. देवालय और राजनिवास के लिए ऐसा ही भवन सही माना जाता है. इसी तरह अन्य तरह के भवनों का भी उल्लेख है. राजा का निवास कैसा होना चाहिए, यह भी इसमें बताया गया है. घर में प्रवेश महूर्त देकहकर करना चाहिए.
इस पुं में प्राकृतिक शोभा को बढाने का उपदेश दिया गया है. इसमें कहा गया है कि हिमालय पर्वत तपस्वियों कि पूरी तरह रक्षा करने वाला है. यह काम-भावना रखने वालों के लिए बहुत दुर्लभ है. इसमें हिमालय की शोभा का बहुत मनोरम वर्णन किया गया है.
‘मत्स्य पुराण’ का सबसे महत्वपूर्ण आख्यान ’सत्यवान-सावित्री’ की कथा है. पतिव्रता स्त्रियों में सावित्री की गणना सबसे पहले होती है. उसने अपनी सच्ची लगन, दूरदृष्टि, बुद्धिमत्ता और पतिप्रेम के कारण अपने मृत पति को यमराज के पाश से मुक्त करवा लिया था.
इसके अलावा, इसमें देवी और विष्णु की उपासना, वाराणसी और नर्मदा नदी का महात्म्य, मंगल-अमंगल सूचक शकुन, स्वप्न विचार, अंग फडकने और उसके संभावित फल, व्रत, तीर्थ और दान आदि की महिमा का वर्णन आख्यानों के माध्यम से किया गया है.
इस पुराण में ‘नरसिंह अवतार’ की कथा, भक्त प्रहलाद को विष्णु के विराट रूप के दर्शन, देवासुर संग्राम और दोनों तरफ के वीरों का वर्णन भी बहुत कल्पनाशीलता के साथ किया गया है. इस पुराण का काव्य तत्व भी बहुत सुंदर है. वर्णन शैली बहुत सहज है. अनेक स्थलों पर शब्द व्यंजना की सुन्दरता बहुत ही उत्कृष्ट है.
इस पुराण की एक विशेषता यह भी है कि इसमें आयुर्वेद चिकित्सा का बहुत अच्छा ज्ञान दिया गया है. कौन सी जड़ी-बूटी किस रोग में काम आती है, इसका विस्तार से वर्णन हैं. इसमें देवताओं की मूर्तियों के निर्माण की पूरी प्रक्रिया और उनके आकार-प्रकार का पूरा ब्यौरा दिया गया है. हर देवता की मूर्ति के अलग-अलग लक्ष्ण बताये गये हैं. उनके विशेष चिन्हों का विवरण भी दिया गया है.