साल में सिर्फ़ नाग पंचमी पर ही खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर, जानें मान्यता और खासियत


Image Credit : X

स्टोरी हाइलाइट्स

उज्जैन में नागों से जुड़ा एक मंदिर है, जिसका नाम नागचंद्रेश्वर मंदिर है, नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थापित है..!!

हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन आमतौर पर हरियाली तीज के दो दिन बाद आता है और इस साल यह 29 जुलाई को मनाया जा रहा है। यह दिन भगवान शिव और नाग देवता की पूजा को समर्पित है। 

मान्यता है कि नागों की पूजा करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं और दुष्टों व सर्पों के भय का नाश होता है। इस दिन महिलाएं भी अपने भाइयों और परिवार के कल्याण के लिए नाग देवता की पूजा करती हैं।

मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा और उनका रुद्राभिषेक करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। दरअसल, ऐसा करने से व्यक्ति कालसर्प दोष से मुक्त हो जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नाग को भगवान शिव के आभूषणों में से एक माना जाता है। वहीं, महाकाल नगरी उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर भी इसी परंपरा का प्रतीक माना जाता है, जो साल में केवल एक बार नाग पंचमी के दिन ही 24 घंटे के लिए खुलता है। आइए जानते हैं नागचंद्रेश्वर मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं और मान्यताएं क्या हैं।

नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थापित है और खास बात यह है कि यह मंदिर भक्तों के लिए केवल 24 घंटे के लिए ही खुलता है। दरअसल, इस मंदिर के साल में एक बार खुलने के पीछे एक पौराणिक कथा है।

कथा के अनुसार, नागों के राजा तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। नागराज तक्षक की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उसे अमरता का वरदान दिया। लेकिन यह वरदान मिलने के बावजूद, नागराज तक्षक प्रसन्न नहीं हुआ। उसने भगवान शिव से कहा कि वह सदैव उनके सानिध्य में रहना चाहता है। 

इसलिए उसे महाकाल वन में रहने की अनुमति दी जाए। महाकाल वन में रहने की अनुमति देते हुए भोलेनाथ ने उसे यह भी वरदान दिया कि वह उनके एकांत में विघ्न नहीं डालेगा, इसी कारण यह मंदिर वर्ष में केवल एक बार नाग पंचमी के दिन ही खुलता है।

श्री महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंजिल पर श्री नागचंद्रेश्वर का एक दुर्लभ स्वरूप स्थापित है, जिसे नागराज तक्षक का निवास स्थान कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में नागचंद्रेश्वर के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति किसी भी प्रकार के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है।

नागचंद्रेश्वर मंदिर के कपाट खुलने के साथ ही त्रिकाल पूजा का भी विधान है। त्रिकाल का अर्थ है तीन अलग-अलग समय पर की जाने वाली पूजा। जिसमें पहली पूजा महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा मध्य रात्रि 12 बजे पट खुलने के बाद की जाती है। नाग पंचमी के दिन दूसरी पूजा दोपहर 12 बजे प्रशासन की ओर से अधिकारियों द्वारा की जाती है। 

वहीं, शाम 7:30 बजे भगवान महाकाल की संध्या आरती के बाद तीसरी पूजा मंदिर समिति की ओर से महाकाल मंदिर के पुजारी द्वारा की जाती है। फिर मध्य रात्रि 12 बजे आरती के बाद मंदिर के पट फिर से सालभर के लिए फिर से बंद कर दिए जाते हैं।