गुरुपूर्णिमा के परम पावन महापर्व पर आइए जानते है, महान गुरुभक्त बालक की कथा.. दिनेश मालवीय 


स्टोरी हाइलाइट्स

गुरुपूर्णिमा के परम पावन महापर्व की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं। यह भारतीय संस्कृति का सबसे अनूठा पर्व है जिसमे शिष्य अपने गुरु के प्रति..

गुरुपूर्णिमा के परम पावन महापर्व पर आइए जानते है, महान गुरुभक्त बालक की कथा.. दिनेश मालवीय  गुरुपूर्णिमा के परम पावन महापर्व की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं। यह भारतीय संस्कृति का सबसे अनूठा पर्व है जिसमे शिष्य अपने गुरु के प्रति औपचारिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। गुरु भी आज विशेष आशीर्वाद देते हैं। हम एक ऐसे महान गुरुभक्त बालक की कथा लेकर आये हैं, जो युगों के बाद आज भी गुरुभक्ति का श्रेष्ठतम आदर्श माना जाता है। आशा है कि इससे आपके ह्रदय मे अपने सद्गुरु के चरणों मे अनुराग बढ़ेगा। आप उनकी सच्चे मन से सेवा और उनके वचनों का पूरी निष्ठा से पालन करने की ओर प्रेरित होंगे। प्राचीनकाल मे आयोदधौम्य नाम के एक ऋषि थे। उनके तीन शिष्य थे, जिनमे आरुणी नाम का शिष्य बहुत विशिष्ट था। गुरु बहुत परिश्रमी थे और वह शिष्यों को भी श्रम का महत्व व्यवहारिक रूप से समझाते थे। उनसे ख़ूब परिश्रम करवाते थे। उनके कठोर अनुशासन के कारण उनके आश्रम मे बहुत कम शिष्य रहते थे। एक दिन बहुत मूसलाधार बारिश हो रही थी। गुरुजी ने आरुणी से कहा कि तुम बारिश के पानी को  खेत मे ही रोकने के लिये मेढ़ बांध आओ। आरुणी खेत पर गया। बारिश इतनी तेज़ थी कि खेत मे ख़ूब पानी भरा था। उसमे बनी एक ऊँची मेड़ पानी के तेज़ वेग के कारण कट गयी। आरुणी ने फावड़े की मदद से आसपास की मिट्टी लेकर उस कटी हुयी मेड़ पर डाला। लेकिन बार बार मिट्टी पानी के तेज़ प्रवाह के कारण बह जाती थी। उसने बहुत मेहनत की, लेकिन उस कटाव को नहीं भर पाया। उसके लिये गुरु की आज्ञा सर्वोपरि थी। उसका पलन हर हाल मे करना था। उसे एक उपाय सूझा। उसने फावड़े को एक तरफ रख दिया और मेड़ के कटाव पर ख़ुद लेट गया। उसके लेटने से पानी का प्रवाह रुक गया। थोड़ी देर बाद बारिश रुक गयी। लेकिन खेत मे पानी भरा हुआ था। अगर वह उठता तो पानी बह जाता। इसलिए वह चुपचाप वैसे ही लेटा रहा। वहीं पड़े पड़े रात हो गयी। जब रात तक आरुणी लौटकर नहीं आया तो गुरुजी शिष्यों को साथ लेकर उसकी खोज मे चल दिये। वह कहीं दिखाई नहीं दिया तो उन्होंने उसका नाम लेकर आवाज़ दी। दूर से पड़े पड़े ही उसने बताया कि वह मेड़ बना हुआ है। गुरुजी वहां पहुंचे तो देखा कि पानी रोकने के लिये आरुणी मेड़ बनकर पड़ा है। उन्होंने उससे उठ जाने को कहा। वह उठ गया। अपनी आज्ञा के पालन के लिये आरुणी की इतनी निष्ठा देखकर ऋषि का हृदय भर आया। उन्होंने उसे छाती से चिपटा लिया। उसे चूमकर आशीर्वाद दिया कि तुझे बिना पढ़े ही सब विद्या आ जायेगी। तुम परम भगवतभक्त बनोगे आज से तुम उद्दालक के नाम से जाने जाओगे। aruni ki gurubhakti इस प्रकार गुरु की आज्ञा के प्रति पूर्ण निष्ठा से बालक आरुणी ऋषि उद्दालक बन गया। आज लोग अक्सर यह कहते मिलते हैं कि अब पहले जैसे ऋषि कहाँ मिलते हैं। लेकिन आरुणी जैसे शिष्य भी अब कहाँ हैं। यदि मन मे सच्ची निष्ठा हो तो सब कुछ आज भी मौजूद है। गुरु कोई व्यक्ति नहीं होता। गुरुतत्व किसी शरीर मे प्रकट होता है लेकिन शरीर न रहने पर वह समाप्त नहीं होता। आइये, हम अच्छा शिष्य बनने का संकल्प लें आरुणी को अपना आदर्श बनाकर गुरुसेवा मे संलग्न हों। कहीं भी कुछ ख़त्म नहीं हुआ है। ज़रूरत है तो सच्ची प्यास और निष्ठा की। यह भी जानें:अध्यात्म के मार्ग पर गुरु ही साक्षात ईश्वर हैं,  गुरु वाक्य पर दृढ़ विश्वास रखने वाले पाते हैं परम लक्ष्य.. दिनेश मालवीय