वन मंत्री रावत के लिए पुलिस और माफियाओं से अधिकारी एवं कर्मचारियों को प्रोटेक्ट करना बड़ी चुनौती


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स्टोरी हाइलाइट्स

मुख्यालय से लेकर फील्ड तक बदलाव की आवश्यकता..!!

भोपाल: प्रदेश कांग्रेस के आयातित नेता रामनिवास रावत को मोहन सरकार में वन मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण विभाग मिल गया है किन्तु नई जिम्मेदारी में कई बड़ी चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो वन माफियाओं और सीनियर अधिकारी की जांच किए बिना ही पुलिस द्वारा संगीन अपराधों में दर्ज किया जा रहे प्रकरण से प्रोटेक्ट करना है। हाल ही में वन मंत्री के गृह जिले से सटे मुरैना में पुलिस द्वारा कर्मचारियों पर आपराधिक दर्ज किए गए हैं, जिसे लेकर वन बल प्रमुख डॉ. असीम श्रीवास्तव ने राज्य शासन को पत्र भी लिखा है। रावत के वन मंत्री बनने पर अधिकारियों एवं कर्मचारियों की बड़ी अपेक्षाएं हैं कि वे करते रहेंगे।

राज्य सरकार में मुख्यमंत्री के बाद वन मंत्री रावत एकमात्र ऐसे कैबिनेट मिनिस्टर हैं, जिनकी हुकूमत प्रदेश में 94,689 वर्ग किमी अधिसूचित वन क्षेत्र तक चलती है। संरक्षण शाखा से एकत्रित आकड़ों के मुताबिक वन एवं वन्य प्राणियों की सुरक्षा में हर साल वनकर्मियों के साथ मारपीट के 20-30 प्रकरण दर्ज हो रहे है। पिछले तीन सालों में जंगलों की सुरक्षा में आधा दर्जन वनकर्मियों को अपनी जान तक गंवाने पड़े है। यही नहीं, विदिशा, रायसेन, गुना, शिवपुरी, मुरैना, भिंड, ग्वालियर, नरसिंहपुर, बालाघाट, बैतूल, छिंदवाड़ा, सागर, दमोह, बुरहानपुर, वन मंडलों में 2 दर्जन से अधिक वन कर्मचारियों पर माफिया प्राणघातक हमला कर चुके हैं। पिछले 6 महीने से बुरहानपुर वन मंडल में अवैध कटाई कर अतिक्रमण करने का सिलसिला जारी है। अतिक्रमण माफिया बड़ी संख्या में बुरहानपुर के नेपानगर, नावरा रेंज सहित रेंजों में लगातार अतिक्रमण कर रहे हैं। 

सीआरपीसी की धारा 197 के तहत वन कर्मियों को प्रोटेक्शन दिया गया है कि गोलीबारी की घटना में तब तक एफआईआर दर्ज नहीं होगी जब तक राजपत्रित ऑफिसर की जांच रिपोर्ट न जाए। बुरहानपुर के बाद लटेरी गोलीकांड में वन कर्मियों पर बिना जांच के आईपीसी की धारा 302 और 307 के तहत एफआईआर दर्ज कर दी गई। मुरैना में भी पुलिस ने वन कर्ममचरियों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कर लिए हैं, जिसे लेकर वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव को राज्य शासन को पत्र लिखना पड़ा। वन मंत्री के रूप में रावत को आगे बढ़कर कर्मचारियों कर्मचारियों का आरक्षण करना चाहिए। 

संगठित गिरोह को संरक्षण देती पुलिस..

जंगलों में संगठित आपराधिक गिरोह सक्रिय है। वन विभाग के अधिकृत आंकड़ों के मुताबिक टिंबर माफिया और अतिक्रमण माफिया की बदौलत हर साल ढाई सौ हेक्टेयर जंगल साफ हो रहा है। यही नहीं, टिंबर माफिया प्रदेश में सागौन की अवैध कटाई कर 100 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करता है। श्योपुर, भिंड, और ग्वालियर में खनिज माफिया सक्रिय हैं उनके पुलिस और सत्ता दल के नेताओं से कारोबारी संबंध है। यही वजह है कि खनिज माफिया के गुर्गों द्वारा फर्जी रिपोर्ट पर पुलिस वन कर्मचारियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर उन्हें भयभीत और प्रताड़ित करती आ रही है।

क्या अफसर और सप्लायर्स के नेक्सस को तोड़ पाएंगे?

वन मंत्री रावत के लिए दूसरी बड़ी चुनौती डेढ़ दशक से स्थापित अफसर और सप्लायर्स के नेक्सस को तोड़ पाने की है। राज्य सरकार के स्पष्ट निर्देश है कि वायर वेट, चैनलिंक और पोल की खरीदी में लघु उद्योग निगम को प्राथमिकता दें किंतु 95% खरीदी जेम्स और ई टेंडर से हो रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि लघु उद्योग निगम की दर और जेम (GEM) की दरों में डेढ़ गुना अंतर है। यानी लघु उद्योग निगम में वायरवेट किधर 83 रुपए से लेकर 85 रुपए तक निर्धारित की गई है। जबकि जेम (GEM) में ₹150 तक है। सरकार की मंशा यह भी है कि लघु और मध्यम उद्यमियों को इस कारोबार से जोड़ा जाए।

मुख्यालय से लेकर फील्ड के अफसर टेंडर की शर्तों में ऐसी शर्ते जुडवा देते हैं जिसके चलते लघु और मध्यम उद्यमी प्रतिस्पर्धा की दौड़ से बाहर हो जाते हैं। सरकार के अन्य विभाग में टेंडर विभागीय वेबसाइट पर अपलोड कर दी जाती है किंतु वन विभाग में यह परंपरा नहीं है। प्रतिस्पर्धियों का कहना है कि सभी डीएफओ को अपने वन मंडल के प्रत्येक टेंडर विभागीय वेबसाइट पर अपलोड करें।

 चहेती फर्म को उपकृत करने जोड़ देते हैं नई शर्तें..

* 10 प्रकार के आईएसओ सर्टिफिकेट। वैसे यह सर्टिफिकेट केवल ऑफिस मैनेजमेंट के लिए जारी किया जाता है। इसका प्रोडक्ट से कोई लेना-देना नहीं रहता।

* 50 लाख तक के वर्क आर्डर पर 3 से 5 करोड़ रुपए का टर्नओवर मांगा जा रहा है। जो कि लघु एवं मध्यम उद्यमी कैसे पूरी कर सकता है?

* इपीएफओ का प्रमाण पत्र तब जारी किया जाता है जब किसी भी संस्था में 20 से अधिक कर्मचारी काम करते हो और उनका प्रोविडेंट फंड कटता हो। छोटे और मध्यम सप्लायर इसे कैसे पूरी कर सकते है?

* हर टेंडर को विभाग की अधिकृत वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए।

* पूरे प्रदेश के लिए मुख्यालय स्तर पर टेंडर की शर्तें एक समान बनाई जानी चाहिए। चूंकि नेक्सस के हिस्सा मुख्यालय के सीनियर अफसर भी हैं, इसलिए इस पर पहल नहीं की जा रही है।

प्रशासनिक प्रोटोकॉल को लागू करना की चुनौती..

वन मंत्री रावत के लिए वन विभाग में प्रशासनिक प्रोटोकॉल को लागू करने की भी चुनौती है। डेढ़ दशक में जंगल महकमे में प्रशासनिक प्रोटोकॉल पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। प्राय: यह देखा जा रहा है कि अपने निजी मिशन को पूरा करवाने के लिए अपर मुख्य सचिव अथवा मुख्य सचिव मुख्यालय के सीनियर अफसर को बायपास करते हुए सीधे फील्ड पर तैनात डीएफओ, सीएफ और सीसीएफ को मंत्रालय तलब करते हैं और उन्हें अपना एजेंडा थमा देते हैं। एसीएस के एजेंट को पूरा करने के चक्कर में डीएफओ अपने इमिजेट बॉस को इग्नोर करने लगते है। जबकि प्रशासनिक प्रोटोकॉल के तहत अपर मुख्य सचिव अथवा प्रमुख सचिव केवल वन प्रमुख के जरिए ही फील्ड के अधिकारियों से शासकीय बिजनेस करवाना चाहिए।

प्रोटोकॉल का यही नियम मुख्यालय में पदस्थ है..

पीसीसीएफ अधिकारियों को भी करना चाहिए। पिछले कुछ सालों से देखा या जा रहा है कि कैंपा पीसीसीएफ और विकास शाखा के प्रमुख सीधे डीएफओ से संवाद कर रहे हैं जिसके कारण वे अपने सीनियर वन संरक्षक के आदेशों की नाफरमानी करते आ रहें है। इस संबंध में वन बल प्रमुख डॉ श्रीवास्तव को आंतरिक प्रशासनिक प्रोटोकॉल लागू कराना चाहिए।

फील्ड से लेकर मुख्यालय के कई पद प्रभार में..

लंबे समय से मुख्यालय से फील्ड तक कई महत्वपूर्ण पद खाली पड़े हुए है। इन पदों को भरने के लिए मैनेजमेंट कोटे से भरने के प्रयास भी हुए किंतु सफल रहे। नए वन मंत्री रावत के सामने यह भी चुनौती है कि प्राइम पदों पर एक दशकों से मैनेजमेंट कोटे से पदस्थापना की प्रथा में संशोधन करते हैं यह फिर पुरानी प्रथा को आत्मसात करेंगे। 

वर्तमान में मुख्यालय में एपीसीएफ कैंपा, एपीसीएफ वन्यप्राणी, एपीसीएफ भू-अभिलेख, एपीसीएफ वित्त, एपीसीएफ वन विकास निगम और लघुवनोपज संघ, वन संरक्षक  बैतूल सर्किल, फील्ड संचालक बंधवगढ़, सीएफ सीइओ एमएसपी पार्क, फील्ड डायरेक्टर पेंच, अनुसंधान एवं विस्तार में बैतूल, सागर, जबलपुर, रीवा, रतलाम, झाबुआ और सिवनी में वन संरक्षक के पद रिक्त है। इसके अलावा जबलपुर, अनूपपुर, दतिया, टीकमगढ़, उत्तर बैतूल, उत्तर सिवनी, टीकमगढ़, और नार्थ बालाघाट में डीएफओ के पद रिक्त हैं। यह सभी रिक्त पद प्रभार में संचालित किया जा रहे हैं। शासकीय इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट की तरह वन विभाग में भी प्रभार देने का खेल चल रहा है। इसके अलावा राजनीतिक रसूख रखने वाले डीएफओ मैनेजमेंट कोटे से 2 से 3 सालों से एक ही पद पर जमे हैं।