भगवान में वापस जाना उच्चतर अवस्था है या निम्नतर?


स्टोरी हाइलाइट्स

यह जगत इतने पैशाचिक भावों से क्यों भरा हो? वह इतना और तृप्तिकर क्यों हो? इसके पक्ष में बहुत हुआ तो इतना ही कहा जा सकता है कि ..

भगवान में वापस जाना उच्चतर अवस्था है या निम्नतर? योगमतावलंबी दार्शनिकगण इस बात के उत्तर में दृढ़तापूर्वक कहते हैं, "हाँ! वह उच्चतर अव्यवस्था है।" वे कहते हैं कि— मनुष्य की वर्तमान अवस्था एक अवनत अवस्था है। इस धरती पर ऐसा कोई धर्म नहीं जो कहता हो कि मनुष्य पहले की अपेक्षा आज अधिक उन्नत है। इसका भाव यह है कि मनुष्य प्रारंभ में शुद्ध और पूर्ण रहता है फिर उसकी अवनति होने लगती है और एक अवस्था ऐसी आ जाती है जिसके नीचे वह और भ्रष्ट नहीं हो सकता। तब वह पुनः अपना वृत्त पूरा करने के लिए ऊपर उठने लगता है। उसे वृत्त की पूर्ति करनी ही पड़ती है। वह कितने भी नीचे क्यों ना चला जाए अंत में उसे वृत्त का उपरी मोड़ लेना ही पड़ता है। अपने आदिकारण भगवान में वापस जाना ही पड़ता है। मनुष्य पहले भगवान से आता है मध्य में वह मनुष्य के रूप में रहता है और अंत में पुनः भगवान के पास वापस चला जाता है। यह हुई द्वैतवाद की भाषा।अद्वैतवाद की भाषा में या भाव व्यक्त करने पर कहना पड़ेगा कि—" मनुष्य भगवान है और घूम फिर कर फिर उन्हीं में लौट जाता है।" यदि हमारी वर्तमान अवस्था ही उच्चतर अव्यवस्था हो तो संसार में इतने दुख-कष्ट, इतनी सब भयावह घटनाएँ क्यों भरी पड़ी है? यदि यही उच्चतर अव्यवस्था हो तो इसका अवसान क्यों होता है? जिसमें भ्रष्ट और पतन होता हो वह कभी भी सबसे ऊँची अवस्था नहीं हो सकती। यह जगत इतने पैशाचिक भावों से क्यों भरा हो? वह इतना और तृप्तिकर क्यों हो? इसके पक्ष में बहुत हुआ तो इतना ही कहा जा सकता है कि— *इसमें से होकर हम एक उच्चतर रास्ते में जा रहे हैं पुनः उन्नत अवस्था प्राप्त करने के लिए हमें इसमें से होकर गुजरना पड़ रहा है।