बिहार के संत -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

बिहार के संत -दिनेश मालवीय बिहार भारत की ऐसी परम पवित्र भूमि है, जिसकी माटी ने विश्व को गौतम बुद्ध और भगवान् महावीर सहित अनेक तपोनिष्ठ संत दिए. इस धरा पर बड़ी संख्या में प्राचीन ऋषियों ने गंगा तट पर साधना करते हुए परम चेतना को प्राप्त किया. यह वही भूमि है, जहाँ के नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय थे जहाँ दुनिया भर के विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने आते थे.धर्माध बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय की सारी पुस्तकों को जलाकर इसे तबाह कर दिया था. भगवान बुद्ध और महावीर के विषय में तो दुनियाभर में इतना लिखा जा चुका है कि जिसका कोई हिसाब ही नहीं है. कुछ वर्ष पहले झारखण्ड राज्य बनने के बाद बिहार से वह अलग हो गया, लेकिन इसकी संत परम्परा में दोनों ही राज्यों की आध्यात्मिक विभूतियों को शामिल किया जा रहा है. संत धरनीदास- यह बिहार की धरती पर बहुत उच्चकोटि के संत हुए हैं. परम चेतना सम्पन्न इस संत ने समाज से ऊँच-नीच का भेदभाव मिटाकर समरसता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. इनकी रचनाएँ “प्रेमप्रकाश” और “शब्द्प्रकाश” आध्यात्मिक साहित्य की अनमोल धरोहर हैं.वह स्वामी रामानंद की परम्परा के संत थे. उनकी अच्छी शिक्षा हुयी थी और राजा माँझी के दरबार में उन्हें नौकरी भी मिल गयी. लेकिन उनके अन्दर आध्यात्मिक चेतना बहुत कम उम्र से ही जागी हुयी थी, लिहाजा उन्होंने नौकरी छोड़ कर अपना जीवन ईश्वर की भक्ति और समाज सेवा को समर्पित कर दिया. इन्होंने धरनी पंथ की स्थापना कि, जिसने समाज के बुराइयों को दूर करने की दिशा में बहुत अच्छा काम किया. संत दरिया साहब- यह एक महान संत थे. इन्होंने दरिया पंथ की स्थापना की. इनकी रचना “दरिया ग्रंथावली” बहुत लोकप्रिय है. क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होने के बाबजूद उन्होंने कभी जातिगत भेदभाव को नहीं माना. उनके अधिकतर अनुयायी पिछड़ी कही जाने वाली जातियों के थे. वह कहते थे कि सभी प्राणियों में ईश्वर की ज्योति है. वह गुणों से अतीत, अजर और अमर है.                                           संत दरिया साहब दरिया साहब ने शब्द की साधना पर बल दिया. उन्होंने कुण्डलिनी जागरण की विधियाँ बतायीं और नाम महिमा पर बहुत जोर दिया. उन्होंने बाहरी आचारों और पाखंडों का खंडन किया. उनके अनुसार राम, कृष्ण,ब्रह्मा, विष्णु सभी में वही एक ज्योति है. सरभंग सम्प्रदाय- इसे ‘अघोर’ और ‘औघड़’ पंथ की ही एक शाखा माना जाता है. इसका प्रसार अधिकतर चंपारण, सारण, मुजफ्फरपुर आदि हैं. सरभंग का शाब्दिक अर्थ समदर्शिता है. इसमें जाति, सगुण-निर्गुण,पंथ और सम्प्रदाय के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता. इसकी स्थापना एक वैदिक ऋषि सरभंग ने की थी, जिनका जिक्र रामायण और रामचरितमानस में भी मिलता है. इस पंथ के दो भाग हैं- 1. निरबानी परम्परा, जिसमें स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है. 2. घरवारी परम्परा, जिसमें स्त्रियों को दीक्षित होने की इजाजत है. साधक गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए ईश्वर की भक्ति कर सकते हैं. इस पंथ में बड़ी संख्या में दूसरे धर्म के लोगों ने भी दीक्षा ली. सरभंग पंथ के लोग सगुण और निर्गुण दोनों की उपासना करते हैं. इसी निर्गुण को कुछ लोग ‘अलख’ या ‘निरालम्ब’ भी कहते हैं. मैथिलि रामायण- भक्त कवि चंदा ने “मैथिलि रामायण” की रचना की. इसकामुख्य आधार ‘अध्यात्म रामायण’ और ‘श्रीरामचरितमानस’ है. इन्होंने भक्तिमय, सात्विक और सदाचारी जीवन का आदर्श समाज के सामने प्रस्तुत किया. उनके द्वारा रचित मैथिल रामायण में बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है. यह रागों में लिपिबद्ध होने के कारण गाने में आसान है. इसी कारण यह इस प्रान्त के लोककंठ में बस गयी. इस रामायण ने समाज में समरसता लाने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया. महर्षि मेंहिदास परमहंस- यह सहरसा जनपद के एक कायस्थ परिवार में जन्मे थे. परिवार ने इन्हें रामानुग्रह लालदास नाम दिया था, जो आगे चलकर ‘मेंहिलाल’ कर दिया गया. इन्होंने सद्गुरु बाबा देवी साहब से दीक्षा ली. परमहंसजी ने भागपुर में गंगा तट पर अपना आश्रम स्थापित किया.                                             महर्षि मेंहिदास परमहंस उन्होंने वेद और अन्य शास्त्रों का गहन अनुशीलन किया. इनके तेरह ग्रंथ प्रदिद्ध हैं. इन्होंने श्रीरामचरितमानस, वेद, उपनिषद, भागवत, गीता, शिवसंहिता और महाभारत के विभिन्न प्रसंगों की समयानुसार व्याख्या कर उनके सही संदेश को लोक में पहुँचाया. उन्होंने महान संतों के जीवन और उनसे जुड़े प्रसंगों की भी बहुत सुंदर व्याख्या कर लोकमानस में धर्म और भक्ति की लौ को जगाया. उन्होंने किसी भी प्रकार के भेदभाव को मानने से साफ़ इंकार कर समाज में समरसता को बढ़ावा दिया. संतमत सत्संग- बिहार की निर्गुण साधना में ‘संतमत सत्संग’ की अपनी खास जगह है. इस मत के प्रवर्तक बाबा देवी साहब थे. महर्षि मेंहिदास उनके पाँच प्रमुख शिष्यों में शामिल थे.